लाख कोशिशों के बावजूद महात्मा गांधी के जीवन आदर्श और गांधीवादी विचारधारा से भारत की वर्तमान राजनैतिक व्यवस्था के कप्तान मुक्ति नहीं पा सके हैं। कांग्रेसियों ने कभी गांधी को जीया ही नहीं, और हिंदुत्ववादी विचारकों को हमेशा गांधी नाम से ही घिन या चिढ़ ही रही।
गांधी का कद छोटा करने के लिए, तमाम छोटे-बड़े आकार के नेताओं को बाजार में उतारा गया, लेकिन दुनिया ने उन्हें नहीं स्वीकारा। अभी भी विदेश से कोई भी नेता आता है तो उसे सरकार सबसे पहले राज घाट ले जाकर गांधी जी को दंडवत कराती है। हकीकत यह है कि वैचारिक सोच के स्तर पर विश्व दो भागों में विभाजित हो चुका है। एक गांधी-समर्थक और दूसरा गांधी-विरोधी।
Read in English: Enduring relevance of Mahatma Gandhi's ideology
मौजूदा समय में पश्चिमी एशिया और उत्तरी यूरोपयुद्ध की विभीषिका से जूझ रहे हैं। लेकिन, एक बड़ा सच यह है कि युद्ध और हिंसा से कभी कोई मसला स्थायी तौर पर हल नहीं हुआ है। इसके उलट, गांधी बढ़ती हिंसा, प्रति हिंसा, नफरत, द्वेष, आतंकवाद, और भय के साये में कुलबुलाती मानवता की मजबूरी बन चुके हैं।
लखनऊ के बाबा राम किशोर कहते हैं कि गांधी को समझकर जिंदगी में ढालना आज के नेताओं के वश की बात नहीं है। जितने भी राज नेता और धार्मिक गुरु धनाड्यों की शादी में शामिल होते हैं, उनको गांधीवाद से प्रेम प्रदर्शन करने का ढोंग करना भी नहीं चाहिए। एक लिहाज से देखें तो अच्छा ही हुआ कि गांधी समय से पहले ही चले गए, वरना आजादी बाद के नेताओं के कुकर्मों को देखकर उनका आखरी वक्त बेहद तकलीफदायक हो सकता था।
महात्मा गांधी एक ऐतिहासिक महापुरुष ही नहीं, बल्कि एक विचारधारा हैं, जिन्हें न तो भुलाया जा सकता है और न ही दरकिनार किया जा सकता है। महात्मा गांधी की प्रासंगिकता के बारे में सवालों के बावजूद, एक राजनीतिक रणनीतिकार और अहिंसक प्रतिरोध तकनीकों के प्रवर्तक के रूप में गांधी का योगदान अद्वितीय है। हम अब उन्हें केवल 2 अक्टूबर और 30 जनवरी को ही याद करते हैं। साथ ही, उनकी शिक्षाओं को चरखा चलाने, भजन सुनाने और खादी को छूट पर बेचने जैसे प्रतीकात्मक गतिविधियों तक सीमित कर देते हैं।
महान वैज्ञानिक आइंस्टीन ने एक बार कहा था कि आने वाली पीढ़ियों को यह विश्वास करने में कठिनाई होगी कि गांधी जैसा व्यक्ति जीता जागता कभी अस्तित्व में था। अपनी मृत्यु के दशकों बाद, गांधी अपने ही देश में एक किंवदंती और मिथक बन गए हैं। उनके शब्दों और कार्यों को काफी हद तक भुला दिया गया है।
आज आधुनिक भारत में पाखंड और झूठ ने जब अपनी जड़ें जमा ली हैं। गांधी की प्रासंगिकता पर प्रश्नचिह्न लगाने वालों की जमात में तेजी से इजाफा हो रहा है। दुनिया, खासकर गरीब देशों को सामाजिक-आर्थिक समस्याओं और मानव मनोविज्ञान के बारे में गांधी की अंतर्दृष्टि की जरूरत है। उनके अहिंसक प्रतिरोध के तरीकों ने कपट और धोखे पर निर्भर आधुनिक राज्यों की कमजोरी को प्रदर्शित किया है।
सत्याग्रह, उपवास और हड़ताल के उनके तरीकों को आगे बढ़ाने के लिए अहिंसक प्रतिरोध सहित गांधीवादी मूल्यों पर फिर से विचार करने का समय आ गया है, जो आज भी प्रासंगिक हैं। गांधी के विचार 21वीं सदी के लिए ही हैं।
दुर्भाग्य से, अहिंसक आंदोलनों का दायरा बढ़ाने में हम असफल रहे हैं, और गांधीवादी संस्थान, जिसे चर्च ऑफ गांधी, कहा जाने लगा है, बिना किसी नई सोच के हर जगह कुकुरमुत्तों की तरह फैल गए हैं।
वर्तमान में उस भ्रामक तर्क का मुकाबला करने का समय आ गया है, जो प्रचारित करता है कि किसी राष्ट्र की प्रतिष्ठा उसके लोगों की भलाई के बजाय उसकी सैन्य शक्ति से मापी जाती है।
वास्तव में, वैश्विक स्वास्थ्य विशेषज्ञ इस बात पर जोर देते हैं कि अच्छी सेहत का निर्धारण स्वास्थ्य क्षेत्र के प्रत्यक्ष नियंत्रण से बाहर के कारकों जैसे शिक्षा, आय और रहने की स्थिति से होता है। यह गांधी के कल्याण के प्रति समग्र दृष्टिकोण से मेल खाता है।
आइए..., गांधी की शिक्षाओं और मूल्यों पर फिर से विचार करें और प्रतीकात्मक इशारों से आगे बढ़कर सार्थक कार्रवाई करें। दुनिया को आज उनकी अहिंसा, प्रेम, भाईचारे की पहले से कहीं ज़्यादा ज़रूरत है।






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