बिहार में बदल रहा है सियासी हवा का रुख…!

 

बिहार में मानसून की बारिश के बाद विधानसभा चुनाव की तैयारियां जोरों पर होंगी लेकिन इस वक्त सियासी हवा का रुख तेजी से बदल रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ऑपरेशन सिंदूर के बाद बिहार में रैलियां करके अपनी मुहिम की शुरुआत कर दी है।

राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन, जिसमें भारतीय जनता पार्टी, जनता दल यूनाइटेड, और लोक जनशक्ति पार्टी शामिल हैं, एकजुट और आत्मविश्वास से भरा नजर आता है। एनडीए को लगता है कि यह फिर से सत्ता में आएगा, लेकिन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का भविष्य अभी अनिश्चित है।

दूसरी तरफ, लालू प्रसाद यादव की राष्ट्रीय जनता दल और उसका इंडिया गठबंधन बिखरा हुआ दिखता है। इनके पास कोई साफ सियासी कहानी नहीं है, सिवाय मुस्लिम-यादव वोटों पर फोकस करने के। एनडीए को ध्रुवीकरण की सियासत से वैचारिक बढ़त मिल रही है। चिराग पासवान इस बार खास नजर में हैं, जो तेजस्वी यादव के खिलाफ मजबूत दावेदार दिखते हैं। भाजपा ने अपना होमवर्क पूरा कर लिया है, और खबर है कि उनके उम्मीदवारों की लिस्ट लगभग तैयार है। लेकिन, हिंदुस्तानी चुनाव हमेशा अनिश्चित होते हैं, और यह साफ नहीं है कि सत्ता विरोधी लहर का कितना असर होगा।

बिहार मामलों के जानकार प्रो. पारस नाथ चौधरी का कहना है कि एनडीए की स्थिति मजबूत है। लालू यादव का असर अब खत्म हो चुका है। उनकी सेहत और वक्त के साथ उनकी बातें अब लोगों को प्रेरित नहीं करतीं। उनके बेटे तेजस्वी यादव को कुछ न्यूज़ चैनल भले ही लोकप्रिय बताएं, लेकिन यह दावा बेबुनियाद है। तेजस्वी सिर्फ मुस्लिम-यादव वोटों तक सीमित हैं। हैरानी की बात यह है कि यादव समुदाय का एक बड़ा हिस्सा एनडीए की तरफ झुक रहा है। अगर राजद दूसरे सामाजिक समूहों को साथ नहीं ले पाया, तो उसकी हार तय है।

तेजस्वी की बातों में संस्कार की कमी और गैरजरूरी तीखी बयानबाजी उनकी कमजोरी है। वह अभी तक लालू की छाया से बाहर नहीं निकल पाए हैं, और मुख्यमंत्री जैसे बड़े पद के लिए उनमें वह गंभीरता नहीं दिखती। इसके अलावा, इंडिया गठबंधन के कांग्रेस जैसे बाकी साथी बिहार में कोई खास ताकत नहीं रखते हैं।

दूसरी ओर, एनडीए में बीजेपी, जदयू, और लोजपा का गठजोड़ इतना मजबूत है कि उसे हराना मुश्किल लगता है। ऑपरेशन सिंदूर के बाद मोदी की लोकप्रियता और बढ़ी है, जिससे एनडीए की स्थिति और पक्की हो रही है। लोग ज्यादातर एनडीए को ही पसंद कर रहे हैं। युवाओं और दलित वोटरों के बीच चिराग पासवान की ताजा अपी, उन्हें तेजस्वी के खिलाफ मजबूत बना रही है। उनकी करिश्माई शख्सियत और मोदी के विजन के साथ जुड़ाव एनडीए को और ताकत देगा।

लेकिन, बिहार के चुनाव आसान नहीं हैं। सत्ता विरोधी लहर अब भी एक बड़ा सवाल है। बिहार में बेरोजगारी, बुनियादी ढांचा, और बाढ़ जैसी समस्याएं लोगों को नाराज कर सकती हैं। अगर एनडीए उम्मीदवारों के चयन में गलती करता है या स्थानीय मुद्दों को नजरअंदाज करता है, तो उसकी बढ़त कम हो सकती है। नीतीश कुमार का भविष्य भी एक सवाल है—क्या वह मुख्यमंत्री बने रहेंगे या उनकी जगह कोई और लेगा? हालांकि, भाजपा का गठबंधन यह जोखिम लेने को तैयार नहीं है।

प्रो. चौधरी कहते हैं कि “मोदी का गठबंधन जीत की ओर बढ़ रहा है।” पटना का मीडिया भी यही मानता है कि लालू का जादू खत्म हो चुका है, और तेजस्वी के पास एनडीए को टक्कर देने की ताकत नहीं है। एनडीए की एकजुटता, ध्रुवीकरण की सियासत, और मोदी की लोकप्रियता उसे मजबूती दे रही है। अगर राजद कोई नई रणनीतिक या बड़ा सामाजिक गठजोड़ नहीं बना पाया, तो उसका रास्ता मुश्किल है। फिलहाल, बिहार की सियासी हवा एनडीए के पक्ष में जोरों से बह रही है।

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