गौ-अर्थव्यवस्था और जैविक खेती है भारत का भविष्य

भारत में गाय अर्थव्यवस्था के महत्व को नकारा नहीं  जा सकता। विशेषकर, बृज मंडल जैसे क्षेत्र में गौ माता केवल पशुधन नहीं हैं, बल्कि उन्हें पवित्र माना जाता है। गौधन क्षेत्र की पशुपालन अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता रहा है। गायों की पूजा और सम्मान करने की पारंपरिक प्रथा आगरा और मथुरा जिलों की संस्कृति और परंपराओं में गहराई से निहित है।

उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ सरकार ने गौधन के महत्व को पहचानते हुए ग्रामीण अर्थव्यवस्था को समर्थन देने के लिए इससे संबंधित विभिन्न योजनाओं को लागू किया है। गोबर की खाद का उत्पादन, हजारों गायों को आश्रय प्रदान करना और पहचान के लिए गायों को टैग करने जैसी पहल अर्थव्यवस्था के इस अभिन्न पहलू को संरक्षित करने के लिए सरकार की प्रतिबद्धता को उजागर करती हैं।

Read in English: Cow Economy and Organic Farming are the future of India

रमेश बाबा द्वारा संचालित बरसाना जैसी गौशालाएं गाय की देखभाल के लिए एक प्रमुख केंद्र के रूप में काम करती हैं और स्थानीय अर्थव्यवस्था में अपना महत्वपूर्ण योगदान देती हैं। आगरा के दयालबाग क्षेत्र में भी कई बड़ी गौशालाएं हैं। आगरा नगर निगम ने भी इस बार दीपावली पर गोबर से बनी मूर्तियों और दीपकों की बिक्री को जमकर प्रोत्साहित किया।

इसके अलावा, गाय के गोबर की खाद और कम्पोस्ट के इस्तेमाल से जैविक खेती को बढ़ावा देने से न केवल पर्यावरण को लाभ होता है, बल्कि हानिकारक रासायनिक खादों पर निर्भरता भी कम हो रही है। पारंपरिक प्रथाओं को आधुनिक तकनीकों के साथ एकीकृत करके, बृज मंडल क्षेत्र अपनी सांस्कृतिक पहचान को संरक्षित करते हुए और टिकाऊ कृषि को बढ़ावा देते हुए विकास की चुनौतियों का समाधान कर रहा है।

भारत में गाय की अर्थव्यवस्था ग्रामीण विकास के लिए एक मॉडल के रूप में कार्य करती है, जो मवेशियों, कृषि और सामुदायिक कल्याण के बीच सहजीवी संबंध पर जोर देती है। गायों के कल्याण को प्राथमिकता देना और उनकी आर्थिक क्षमता का लाभ उठाना क्षेत्र के लिए अधिक टिकाऊ और समृद्ध भविष्य का मार्ग प्रशस्त कर सकता है।

कुछ साल पहले आगरा के पूर्व मंडलायुक्त प्रदीप भटनागर ने मथुरा जिले को गौक्षेत्र घोषित किया था, लेकिन कोई इसके बाद इस मामले में कोई कार्रवाई नहीं की गई। गौ-अर्थव्यवस्था को अब ग्रामीण विकास के व्यावहारिक मॉडल के रूप में मान्यता मिल रही है और जिले में कई योजनाएं क्रियान्वित की जा रही हैं।

संरक्षक संत रमेश बाबा द्वारा संचालित बरसाना की गौशाला 50,000 से अधिक गायों के साथ सबसे बड़ी है। राधा कुंड में, 65 वर्षीय जर्मन महिला पद्मश्री सुदेवी 1600 से अधिक घायल और बीमार गायों के साथ एक गौशाला चलाती हैं। सुदेवी चाहती हैं कि किसान कुछ गायें रखकर अपनी आय बढ़ाएं। वह कहती हैं कि सरकार को गायों का गोबर वापस खरीदना चाहिए ताकि किसानों के लिए गाय पालना आकर्षक हो सके।

मथुरा और वृंदावन शहरों में मवेशियों के चरागाहों को मुक्त करने के लिए कई कदम उठाए गए हैं, और मवेशियों के लिए अधिक चरागाह विकसित करने के लिए यमुना नदी के किनारे अतिक्रमण को ध्वस्त किया गया है।

चूंकि रासायनिक उर्वरकों के अत्यधिक उपयोग से स्वास्थ्य संबंधी बहुत सी समस्याएं पैदा हो रही थीं और खेतों की उर्वरता खत्म हो रही थी, इसलिए गोबर की खाद और कम्पोस्ट या वर्मीकम्पोस्ट का उपयोग जैविक खेती को बड़े पैमाने पर बढ़ावा देने में मदद कर सकता है।

बृज मंडल के संतों का कहना है कि बृज की पहचान जंगलों और गायों से है और दोनों ही खतरे में हैं। परंपरा को आधुनिक तकनीकों के साथ एकीकृत करना होगा और विकास की चुनौतियों का सामना करने के लिए नए उत्तर तलाशने होंगे।

वृंदावन के हरित कार्यकर्ता जगन नाथ पोद्दार बताते हैं कि जैविक खेती ही आगे बढ़ने का रास्ता है और इसे बनाए रखने के लिए हमें पशुधन की आवश्यकता है। बृज क्षेत्र में कई गौशालाएं हैं और गायों की संख्या एक लाख से अधिक है। एकत्र किए गए गोबर से गोबर गैस को बढ़ावा मिल सकता है, मिट्टी को समृद्ध किया जा सकता है और रासायनिक उर्वरकों पर निर्भरता कम हो सकती है। 

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