जनता पहचाने चुनावों से पहले बांटी जाने वाली ‘रेवड़ियों’ की असलियत

देशभर में अब यह सामान्य बात हो गई है कि चुनावी प्रक्रिया के दौरान प्रत्येक पार्टी और उसके नेता जनता को लुभाने के लिए अनेक अव्यावहारिक प्रलोभन देने लगते हैं। क्या इस प्रकार का प्रचलन एक ईमानदार जीवन जीने को तत्पर जनता के साथ न्याय है?

ईमानदार जनता देश की प्रगति एवं देश के सर्वांगीण विकास के लिए कर का भुगतान करती है, जिससे देश की समस्त जनता लाभान्वित हो सके। निर्धन जनता का उत्थान आवश्यक है, परन्तु महज चुनावी जीत के लिए लुभावनी घोषणाओं से यह संभंव नहीं होगा।

प्रायः यह देखा जाता है कि अधिकांश चुनावी घोंषणाएं मीडिया में सुर्खियां बटोरने के लिए ही होती हैं, क्योंकि वे धरातल पर उतर ही नहीं सकतीं। हालांकि, जनता जरूर कई बार इन झांसों में आकर वोट दे आती है। परन्तु, अब धीरे-धीरे जनता भी जागरूक हो रही है और उन्हें ऐसी सभी घोंषणाओं का संज्ञान होना शुरू हो गया है कि अंतत: इससे उनको कोई लाभ नहीं होता है।

इसके इतर, यदि येन-केन-प्रकारेण इन सब चुनावी घोषणाओं का क्रियान्वन हो भी जाता है तो प्रदेश का समस्त विकास कार्य अवरुद्ध होने लगता है और प्रदेश कुछ ही समय में कंगाली की राह पर अग्रसर हो जाता है। हिमाचल प्रदेश इसका ताजातरीन उदाहरण है। हाल ही में वहां मौजूदा कांग्रेस सरकार को इसके चलते कर्मचारियों की तनख्वाह देने तक के लाले पड़ गए।

दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार का भी यही हाल है। मुफ्त बिजली और मुफ्त पानी की राह पर जनता को लाकर खड़ा कर देने के बाद अब वही जनता लाइनों में लगी हुई दिखती रहती है।  

अगामी कुछ दिनों में महाराष्ट्र और झारखंड में चुनाव होने हैं। वहां भी हर दल के नेता जनता के सामने ऐसे ही लोक-लुभावन वादों का झड़ी लगा रहे हैं। महाराष्ट्र की वर्तमान सरकार ने चुनावों की घोषणा से दो दिन पहले जनता को आकर्षित करने के लिए अनेक ऐसी घोषणाएं की हैं।

अब सवाल यह उठता है कि क्या इन नेताओं को अपने कार्यकाल में किए हुए विकास कार्यों पर विश्वास नहीं हैं? महाराष्ट्र में ही प्रत्येक गाय पालक को 50 रुपये प्रतिदिन प्रति गाय भुगतान, वृद्ध महिलाओं को बसों में निःशुल्क यात्रा, निर्धन महिलाओं को साड़ी व रसोई के बर्तन, राज मिस्त्रियों को उनके नए औजार, मदरसों में कार्यरत अध्यापको को वेतन वृद्धि तथा नेताओं द्वारा संचालित ट्रस्टों को भूमि अनुदान की घोषणाएं की गई हैं।

यह अचम्भित करने वाला विषय है कि अक्सर इस तरह की योजनाओं का जिक्र सरकारों द्वारा प्रस्तुत किए गए उनके पिछले बजट के प्रावधानों में नहीं होता है। जब बजट में इनका कोई प्रावधान नहीं था, तो इनका लाभ अब जनता को कैसे और कब तक मिलेगा और साथ ही यह स्पष्टता भी जरूरी है कि चुनाव की घोषणा के पश्चात जनता को किस प्रकार इन योजनाओं से लाभान्वित कराया जाएगा।

नेताओं से यह गुजारिश है जनता को चुनावी रेवड़ियां बांटना अतिशीघ्र बन्द करें और प्रदेश व देश को ऊंचा उठाने के विषय में व्यवहारिक व श्रेष्ठ योजनाएं बनाकर उनको अविलम्ब क्रियान्वित करें।

(लेखक आईआईएमटी विश्वविद्यालय के कुलाधिपति हैं और यहां व्यक्त विचार उनके स्वयं के हैं।)

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