आगरा के पर्यावरणविदों और नदी कार्यकर्ताओं ने शहर की बिगड़ती हालत को लेकर गंभीर चेतावनी दी है। ताजमहल के शहर में बजती यह खतरे की घंटी दरअसल पूरी दुनिया के सामने मौजूद पर्यावरणीय संकट की ओर इशारा करती है। जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण और अंधाधुंध विकास से धरती को बचाने के लिए तुरंत ठोस कदम उठाने की जरूरत है।
पर्यावरणविद डॉ देवाशीष भट्टाचार्य कहते हैं, "आगरा की हवा और पानी की गंदगी, सूखती नदियां और घटते हरे-भरे इलाके पूरी दुनिया के सामने मौजूद चुनौतियों का एक छोटा सा नमूना पेश करते हैं। यमुना नदी जो शहर की जीवनरेखा रही है, आज मौत के कगार पर पहुंच चुकी है। नदी का सूखा हुआ तल और रेत-कीचड़ से भरी तलहटी हवा को जहरीला बना रहा है, जिसमें गाड़ियों से निकलने वाला धुआं हालात को और बिगाड़ रहा है।"
Read in English: Environmental crisis signals urgent need for action
ताज ट्रैपेज़ियम जोन के ताजा आंकड़े बताते हैं कि हवा में जहरीले कण सुरक्षित सीमा से तीन गुना ज्यादा हैं। सल्फर डाइऑक्साइड और नाइट्रोजन डाइऑक्साइड का स्तर भी लगातार बढ़ रहा है। यह जहरीली हवा न सिर्फ आगरावासियों की सेहत के लिए खतरा है, बल्कि ताजमहल जैसी विश्व धरोहर को भी नुकसान पहुंचा रही है जो धूल और धुएं की चादर में लिपटता जा रहा है।
जैव विविधता विशेषज्ञ डॉ मुकुल पांड्या के मुताबिक "इस संकट की जड़ में अनियंत्रित उद्योगीकरण और अव्यवस्थित शहरीकरण है। पैसा कमाने की होड़ ने जीवन की गुणवत्ता को पूरी तरह बिगाड़ दिया है। नगर निगम द्वारा पानी के रिसने वाली जगहों को सीमेंट और कंक्रीट से ढकने के कारण बारिश का पानी जमीन में नहीं जा पा रहा, जिससे भूजल स्तर लगातार गिर रहा है।"
स्थानीय रिवर कनेक्ट कैंपेन के सदस्यों ने प्रकृति के पंचतत्वों के बीच सामंजस्य बहाल करने पर जोर दिया है। उन्होंने कम इस्तेमाल, रीसाइक्लिंग और ‘यूज़ एंड थ्रो’ संस्कृति को छोड़ने की अपील की। साथ ही, शहरों में वर्षा जल संचयन को अनिवार्य बनाने और प्रकृति के अनुकूल नीतियां बनाने की मांग की।
हालात की गंभीरता को देखते हुए विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि अगर अभी नहीं चेते तो आने वाले दिनों में स्थिति और भयावह हो सकती है। सामाजिक कार्यकर्ता पद्मिनी कहती हैं कि बढ़ती गाड़ियां और फैक्ट्रियों का धुआं ग्लोबल वार्मिंग को बढ़ावा दे रहा है। जलवायु परिवर्तन से असामान्य मौसम, पानी की कमी और पारिस्थितिकी तंत्र को गंभीर खतरा पैदा हो गया है। यमुना की दुर्दशा दरअसल दुनियाभर की नदियों की त्रासदी का हिस्सा है जो प्रदूषण और अत्यधिक दोहन से मर रही हैं।
इस संकट से निपटने के लिए तत्काल कई कदम उठाने की जरूरत है। प्रकृति प्रेमी हरि दत्त शर्मा कहते हैं कि सरकारों और नगर निकायों को उद्योगों और वाहनों पर सख्त नियम बनाने होंगे। साथ ही, साफ ऊर्जा और सार्वजनिक परिवहन को बढ़ावा देना होगा।
हरित कार्यकर्ता प्रदीप के मुताबिक शहरी योजनाओं में हरित क्षेत्रों और पानी के रिसाव वाली जगहों को प्राथमिकता देनी होगी। पानी की बचत को एक सामाजिक आदत बनाना होगा। हर व्यक्ति को कम बर्बादी, रीसाइक्लिंग और टिकाऊ जीवनशैली अपनानी होगी।
संदेश साफ है कि धरती को बचाने के लिए सबको मिलकर काम करना होगा। चाहे वो सरकारी नीतियां हों या हमारी रोजमर्रा की जिम्मेदारियां। अगर अभी संजीदा होकर कदम उठाएं तो हम संतुलन बहाल कर सकते हैं, अपनी विरासत बचा सकते हैं और आने वाली पीढ़ियों के लिए एक बेहतर धरती छोड़ सकते हैं।






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