सोने की शक्ल में लॉकर में कैद हमारा अर्थ तंत्र...!


दीवाली पर भारत में सोने की ऐसी लहर लेकर आई है कि सारे पुराने रिकॉर्ड टूट गए। धनतेरस के दिन ही करीब 60 हज़ार करोड़ रुपये का सोना-चांदी बिका, पिछले साल से 25 फीसदी ज़्यादा! हालांकि मात्रा में कुछ कमी रही, पर कीमतें आसमान छू गईं, सोना 1.15 से 1.32 लाख रुपये प्रति 10 ग्राम और चांदी 1.57 से 1.72 लाख रुपये किलो तक पहुंच गई।

देशभर में 30 से 50 टन सोना खरीदा गया। इस बार सिक्कों और छड़ों की मांग बढ़ी, क्योंकि गहनों की खरीद कुछ कम हुई। साफ है, अनिश्चित दौर में लोग फिर उसी पुराने ‘सेफ इन्वेस्टमेंट’ की तरफ लौट रहे हैं, सोना।

Read in English: Gold obsession locks trillions of rupees in vaults

दुनियाभर में महंगाई, अमेरिका-चीन की तनातनी और मध्य-पूर्व में तनाव ने लोगों के मन में डर बैठा दिया है। ऐसे वक़्त में सोना फिर भरोसे की निशानी बन गया है। पर, असल बात यह है कि सोना एक अनुत्पादक संपत्ति है, यह न ब्याज देता है, न अर्थव्यवस्था को बढ़ाता है। बस तिजोरियों में पड़ा रहता है, जैसे किसी पुरानी याद की तरह।

भारत के घरों और मंदिरों में करीब 25 हजार टन सोना जमा है, जिसकी कीमत करीब तीन ट्रिलियन डॉलर है। सोचिए, यह रकम देश की जीडीपी का लगभग 90 फीसदी है! अगर इस सोने को किसी तरह अर्थव्यवस्था में लाया जाए, तो न जाने कितने कारखाने, सड़कें बन सकती हैं और नौकरियों के दरवाजे खुल सकते हैं। लेकिन अफ़सोस, शादी-ब्याह के बाद ज़्यादातर गहने बैंक लॉकरों में सोते रहते हैं, बेकार, बेजान और बिना इस्तेमाल।

चीन को पीछे छोड़कर, भारत अब दुनिया का सबसे बड़ा ज्वेलरी ख़रीदार बन चुका है। यह आयात से आता है, यानी हमारी विदेशी मुद्रा पर बोझ। रुपया दबाव में आता है, व्यापार घाटा बढ़ता है। भले ही रिजर्व बैंक के पास 700 बिलियन डॉलर का रिज़र्व है, मगर ऊंची सोने की कीमतें फिर भी अर्थव्यवस्था को हिला देती हैं।

असल में, सोने की यह दीवानगी डर से उपजती है, मंदी का डर, रुपये के गिरने का डर, या किसी निजी संकट का डर। शादियों में दहेज के लिए सोना ख़रीदना तो जैसे रिवाज़ बन चुका है। लेकिन, इसका एक स्याह पहलू भी है, ज़्यादातर सोना काले धन से खरीदा जाता है। इस सुनहरी चमक में भ्रष्टाचार की छाया गहरी है। किसी भी स्तर पर भ्रष्टाचार कम नहीं हुआ है, कितने भी पारदर्शिता के दावे किए जाएं। और, बार-बार चुनाव, काले धन की मांग को स्थायी बनाते है। इस विकास के मॉडल में भ्रष्टाचार अंतर्निहित है। कोई भी प्रोजेक्ट सीधे-सीधे कम से कम तीस प्रतिशत अश्वेत धन मार्केट में रिलीज करता है। ध्यान रहे, ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल की 2024 रिपोर्ट के अनुसार भारत का करप्शन परसेप्शन इंडेक्स स्कोर 39 पर अटका हुआ है, जो एशिया के सबसे भ्रष्ट देशों में गिना जाता है। 

कई इनकम टैक्स छापामारी में ज्वेलरी दुकानों से बेहिसाब कैश, अनगिनत गोल्ड बार और हवाला के ज़रिए भुगतान के सबूत मिले हैं। यह बताता है कि सोना सिर्फ़ निवेश नहीं, बल्कि भ्रष्टाचार का सबसे सुरक्षित ठिकाना बन गया है, जहां धन भी छिपता है और हिसाब भी नहीं पूछा जाता।

अगर सरकार इस चलन को बदलना चाहती है, तो लोगों को समझाना होगा कि बचत का असली रास्ता शेयर, बॉन्ड और उद्योगों में निवेश है, ताकि पैसा देश के काम आए, सिर्फ़ शोहरत के नहीं। छोटे निवेशकों को राहत, टैक्स में ढील और आसान नियम देकर यह रुझान बदला जा सकता है।

आख़िर में यही कहना है — सोने की यह दीवानगी दरअसल हमारे भरोसे की कमी का आईना है। दीवाली की रौनक के बीच हमें याद रखना चाहिए कि असली चमक नवाचार और उत्पादन में है, न कि लॉकर में सोए सोने में।

अगर भारत ने इस पीली धातु से मोह छोड़ दिया, तो शायद वही दिन होगा जब यह मुल्क सचमुच सोने की चिड़िया बन जाएगा।



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