गुमराह करने वाली कहानी है इंदिरा और मोदी की तुलना

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 12 मई की शाम अपने 30 मिनट के भाषण में आतंकवाद के खिलाफ भविष्य की दृष्टि और संचालन रणनीति को स्पष्ट और दृढ़ संदेश के साथ प्रस्तुत किया। उनका यह भाषण न केवल प्रेरणादायक था, बल्कि राष्ट्र की सुरक्षा के प्रति उनकी अटल प्रतिबद्धता को भी दर्शाता है। मोदी ने आतंकवाद को जड़ से उखाड़ने के लिए ठोस कदमों और रणनीतिक दृष्टिकोण की बात की, जो देशवासियों में विश्वास जगाता है।

उनके शब्दों में स्पष्टता और आत्मविश्वास झलक रहा था, जब उन्होंने वैश्विक मंच पर भारत की मजबूत स्थिति और आतंकवाद के खिलाफ ‘जीरो टॉलरेंस’ नीति को रेखांकित किया। यह संदेश न केवल आतंकवादियों के लिए कड़ी चेतावनी था, बल्कि नागरिकों को यह आश्वासन भी देता है कि सरकार उनकी सुरक्षा के लिए हर संभव प्रयास कर रही है।

अंग्रेजी में पढ़ें : Comparing ‘Indira’ with ‘Modi’, a misleading narrative…

मोदी ने युवाओं को प्रेरित करते हुए कहा कि देश की एकता और अखंडता सर्वोपरि है। उनकी यह स्पष्ट और साहसिक दृष्टि भारत को एक सुरक्षित और शक्तिशाली राष्ट्र के रूप में स्थापित करने की दिशा में मील का पत्थर साबित होगी। यह भाषण हर भारतीय के लिए गर्व का क्षण था।

इस बीच, कुछ नासमझ और पूर्वाग्रहों से ग्रसित सोशल मीडिया सैनिकों ने आजकल सोशल मीडिया पर यह बहस गर्म है कि क्या नरेंद्र मोदी इंदिरा गांधी जैसे हैं। कुछ लोग कहते हैं कि इंदिरा गांधी ने 1971 की जंग में बांग्लादेश बनाकर जो किया, वह मोदी नहीं कर पाए। मगर यह तुलना न सिर्फ इतिहास की गलत समझ पेश करती है, बल्कि आज की जमीनी और अंतर्राष्ट्रीय हकीकतों को भी नजरअंदाज़ करती है।

सच यह है कि 1971 में बांग्लादेश का बनना सिर्फ इंदिरा गांधी की जीत नहीं थी। यह ईस्ट पाकिस्तान, यानी आज के बांग्लादेश, के लोगों की जद्दोजहद का नतीजा था, जो वेस्ट पाकिस्तान, यानी आज के पाकिस्तान, की फौजी हुकूमत के जुल्म के खिलाफ उठ खड़े हुए थे। साल 1970 में शेख मुजीबुर्रहमान की अवामी लीग ने चुनाव जीता, लेकिन उन्हें हुकूमत नहीं सौंपी गई। इसके बाद बगावत शुरू हुई और पाकिस्तानी फौज के दमन से लाखों लोग हिंदुस्तान में शरण लेने आ गए।

3 दिसंबर 1971 को पाकिस्तान ने पहले हमला किया, जिसका जवाब भारत को देना पड़ा। इस जंग के नतीजे में बांग्लादेश आज़ाद हुआ। लेकिन यह सब हालात की वजह से हुआ, पहले से कोई फतह का प्लान नहीं था।

साल 1972 के शिमला समझौते में भारत ने नब्बे हजार से अधिक पाकिस्तानी फौजियों को छोड़ दिया, मगर इससे कश्मीर मुद्दे का कोई पक्का हल नहीं निकल पाया। आज बांग्लादेश भारत का ‘दोस्ताना’ मुल्क है, लेकिन वहां कट्टरपंथ और भारत-विरोधी सोच की चिंगारियां यदा-कदा उठती रहती हैं।

साल 1971 की तुलना आज से करना गलत है। अब पाकिस्तान न्यूक्लियर ताक़त है, और सीधी जंग दोनों देशों के लिए खतरे की घंटी हो सकती है। मोदी सरकार ने जंग के बजाय पाकिस्तान के आतंकी ढांचे को तोड़ने की रणनीति अपनाई है। साल 2016 की सर्जिकल स्ट्राइक और 2019 का बालाकोट एयरस्ट्राइक इसी नीति की मिसाल हैं। इनसे दुनिया को भी यह पैगाम गया कि हिंदुस्तान डरता नहीं है।

मोदी सरकार ने पाकिस्तान को दुनिया में अलग-थलग करने में भी कामयाबी पाई है। जहां 1971 में अमेरिका और चीन पाकिस्तान के साथ थे, आज वही पाकिस्तान दुनिया में बदनाम है। भारत ने एफएटीएफ, संयुक्त राष्ट्र और जी20 जैसे मंचों पर पाकिस्तान की आतंकपरस्ती को उजागर किया है।

मोदी की एक बड़ी कामयाबी 2019 में अनुच्छेद 370 हटाना है, जिससे जम्मू-कश्मीर पूरी तरह भारत में शामिल हो गया। इंदिरा गांधी के दौर में ऐसा सोचना भी मुश्किल था। इससे पाकिस्तान की कश्मीर रणनीति को बड़ा झटका लगा।

मोदी की ‘पड़ोसी पहले’ नीति ने नेपाल, भूटान और बांग्लादेश से रिश्ते मजबूत किए हैं। 2023 में भारत ने जी20 की कामयाब मेज़बानी कर दुनिया को आतंकवाद के खिलाफ एकजुट किया। डिजिटल इंडिया, रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता और तेज़ आर्थिक विकास ने भारत को वैश्विक ताकत बना दिया है। क्वाड और आईटूयूटू जैसे समूहों में भारत की मौजूदगी इसकी गवाही है।

इंदिरा गांधी और नरेंद्र मोदी की तुलना करना न सिर्फ गलत है, बल्कि दोनों के दौरों की सच्चाई को अनदेखा करना भी है। इंदिरा का नेतृत्व युद्धों और संकट से जुड़ा था, जबकि मोदी का नेतृत्व दूरदर्शिता, रणनीतिक समझ और शांतिपूर्ण ताकत पर आधारित है।

मोदी ने भारत को एक मजबूत, आत्मनिर्भर और दुनिया में सम्मानित राष्ट्र बनाने की ठोस कोशिश की है। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के मुताबिक साल 2024 में भारत की जीडीपी 3.94 ट्रिलियन डॉलर हो गई है। रक्षा और डिजिटल सेक्टर में जो काम हुआ है, वह इंदिरा गांधी के दौर से बहुत आगे है।

सिर्फ 1971 की जंग से मोदी की उपलब्धियों की तुलना करना, नए भारत की तरक्की और बदलती ताक़त को समझने से इनकार करना है। आज की दुनिया को जहानदारी और होशमंदी चाहिए—और मोदी का विज़न उसी रास्ते पर भारत को आगे ले जा रहा है।

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