‘फटी’ जींस और दुनिया का परिधान समाजवाद

पूरी दुनिया में एक ही ऐसा परिधान है जिसे अमीर-गरीब, बूढ़े-बच्चे, नर-नारी और शहरी व ग्रामीण, सभी पहनकर अपनी आजादी या आत्मविश्वास का एहसास कराते हैं। जी! हम बात कर रहे हैं जींस की, जो पैंट, पतलून या पायजामा तो है ही, लेकिन साथ ही एक फैशन स्टेटमेंट भी है। लोकप्रियता तो इतनी कि कुछ साल पहले वृंदावन के एक प्रतिष्ठित मंदिर में बवाल कटा था, जब किसी पुजारी ने ठाकुरजी को भी जींस पहना दी थी, विद हैट एंड गॉगल्स।

जींस की शुरुआत अमेरिका में लेबर क्लास के लिए कई सौ साल पहले हुई थी। उस वक्त संपन्न वर्ग के लोग जींस नहीं पहनते थे। फिर 1960 के दशक में हिप्पी मूवमेंट की लोकप्रियता के साथ, जींस पैंट, आजादी पसंद युवाओं को ऐसा भाया कि आज दुनियाभर में सबसे ज्यादा इसकी डिमांड है, इसके लिए हम लीवाइस को धन्यवाद दे सकते हैं।

शुरुआत में ओरिजनल ब्लू जींस मेटल बैज, रिविट्स और बटंस के साथ आम आदमी की पहुंच से बाहर थी। पुरानी जींस भी हजार की मिलती थी। फिर ऐसा क्रेज बढ़ा कि दर्जनों ब्रांड एक साथ मार्केट में कूद पड़े।

अब तो नीली जींस, और इसके अनेक रूप, रंग, हमारे वार्डरोब का अहम हिस्सा बन चुके हैं। लेकिन उनका प्रभाव फैशन के रुझानों से कहीं आगे तक फैला हुआ है। जींस ने वैश्विक संस्कृति को आकार देने, स्वतंत्रता, समानता और अनौपचारिकता को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

बेंगलुरु की जींस प्रेमी मुक्ता गुप्ता कहती हैं, "मैं सीधे तौर पर सभी स्टूडेंट्स के लिए जींस पहनना अनिवार्य करने की सलाह दूंगी। साथ ही, ज्यादातर राजनेताओं को भी अपने बेडौल शरीर को सही से ढंकने के लिए जींस काफी अहम हो सकती है।"

वृंदावन के जींसधारी जगन नाथ पोद्दार कहते हैं कि यदि पीछे मुड़कर देखें तो 1960 के दशक में हिप्पी आंदोलन के साथ जींस क्रांति की शुरुआत हुई। इस प्रतिसंस्कृति घटना ने मुख्यधारा के पश्चिमी मूल्यों को खारिज कर दिया और मुक्त-आत्मा व गैर-अनुरूपता को अपनाया। जींस इस आंदोलन की यूनिफॉर्म बन गई, जो सामाजिक मानदंडों के खिलाफ विद्रोह का प्रतीक थी।

जैसे-जैसे जींस की लोकप्रियता बढ़ी, उसने सामाजिक और आर्थिक बाधाओं को पार करते हुए अमीर-गरीब के बीच की खाई को पाट दिया। अमेरिकी राष्ट्रपति जिमी कार्टर द्वारा व्हाइट हाउस में जींस पहनने से लेकर दुनियाभर में आम लोगों द्वारा परिधान को अपनाने तक, जींस ने फैशन को लोकतांत्रिक बनाया।

सामाजिक कार्यकर्ता पद्मिनी अय्यर का कहना है कि महिलाओं के लिए, जींस सशक्तिकरण और स्वायत्तता का प्रतिनिधित्व करती है। जींस पहनकर, महिलाओं ने पारंपरिक लैंगिक भूमिकाओं को चुनौती देते हुए अपने पुरुष समकक्षों के साथ बराबरी को सुनिश्चित किया। जींस ने महिलाओं को पहले पुरुषों के लिए आरक्षित गतिविधियों में भाग लेने में सक्षम बनाया, जिससे मुक्ति की भावना को बढ़ावा मिला। जींस ने उन्हें ‘स्मार्ट’ और खूबसूरत महसूस कराया।

स्कूल शिक्षक अनुभव कहते हैं कि जींस क्रांति ने नैतिक दृष्टिकोण के बदलाव में भी अपना योगदान दिया। सहूलियत वाले आरामदायक कपड़ों को अपनाने से लोगों ने कठोर सामाजिक मानदंडों और नैतिक संहिताओं पर सवाल उठाना शुरू कर दिया। जींस ने ‘बढ़ी हुई नैतिकता को कम करने’ में मदद की, जिससे व्यक्तियों को खुद को अधिक स्वतंत्र रूप से व्यक्त करने की अनुमति मिली।

युवा वकील अंकुर के अनुसार, करीब 75 वर्षों से ज्यादा समय से जींस फैशन के रुझानों की क्षणभंगुर प्रकृति को चुनौती दे रही है। इस दृढ़ता का श्रेय जींस की अनुकूलनशीलता और बहुमुखी प्रतिभा के साथ-साथ स्वतंत्रता और समानता के साथ उनके निरंतर जुड़ाव को दिया जा सकता है।

जाने माने समीक्षक पारस नाथ चौधरी के मुताबिक वह फेडेड जींस के बहुत बड़े प्रशंसक हैं। उनके अनुसार, वह जींस को केवल फैशनेबल कपड़ों के रूप में ही नहीं, बल्कि दुनिया में एक पूरी नई संस्कृति के अग्रदूत के रूप में भी देखते हैं। नीले जींस ने स्वतंत्रता और समानता को बढ़ावा दिया। जींस ने दुनिया में अतिरंजित नैतिकता को कम करने में भूमिका निभाई। नीले परिधान से मोहित होकर, कई लोगों ने यह भी घोषणा की कि फेडेड ग्लोरी जींस में लिपटी युवा महिलाएं अधिक सेक्सी और सुंदर दिखती हैं। जींस के आगमन के साथ ही परिधानों की अनौपचारिकता में उछाल आया और दुनियाभर में अमीर-गरीब और उच्च-निम्न का अंतर एक साथ खत्म हो गया। जींस फैशन की दुनिया में एकमात्र क्रांति थी, जो 75 साल बाद भी खत्म होने का नाम नहीं ले रही।

आज, जींस वैश्विक फैशन का एक अभिन्न अंग है। इसमें कई प्रकार की डिजायन और शैलियां विकसित हो रही हैं। फिर भी, उनका सांस्कृतिक महत्व सौंदर्यशास्त्र से परे है। जींस औपचारिकता पर अनौपचारिकता, परंपरा पर आराम की जीत का प्रतिनिधित्व करती है। अब तो युवा फटी जींस, तार-तार जींस, शॉर्ट्स, जैकेट्स व डेनिम शर्ट्स की तरफ मुखातिब हो रहे हैं।

फैशन प्रेमी माही हीदर कहती हैं कि नीली जींस सिर्फ फैशन का एक अहम हिस्सा नहीं है बल्कि ये सामाजिक बदलाव के लिए उत्प्रेरक रही हैं। समानता, स्वतंत्रता और आत्म-अभिव्यक्ति को बढ़ावा देकर, जींस ने परिधान समाजवाद के ऐसे युग की शुरुआत की है, जहां फैशन कोई सीमा, वर्ग या लिंग नहीं जानता। जींस हमारी अलमारी का एक ऐसा अभिन्न अंग बनी हुई है, जो संस्कृति और समाज को आकार देने के लिए फैशन की शक्ति का प्रतीक है।

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