जन्माष्टमी पर मथुरा के 'कोयला' गांव में भले ही कोई बड़ा धार्मिक आयोजन न होता हो लेकिन इस गांव को यह नाम देवकी पुत्र ने ही दिलाया था।
यह गांव श्रीकृष्ण को मथुरा से गोकुल पहुंचाए जाने का गवाह रहा है। कान्हा के प्राकट्य के बाद पिता वसुदेव इसी घाट से उन्हें गोकुल छोड़ने गए थे। कान्हा के चरण छूने को बेताब यमुना की लहरें देख घबराए वसुदेव ने अपने बचाव के लिए पुकार लगाई और उनके मुंह से निकला ‘कोई लेऊ’ शब्द। ब्रज भाषा में इसका मतलब होता है ‘कोई मुझे बचाओ’। बाद में ये ही दो शब्द बिगड़कर 'कोयला' बन गए। और इस तरह, वसुदेव के ये दो शब्द इस गांव के नामकरण का आधार बने।
स्थानीय ग्रामीण बताते हैं कि प्राचीन काल में इस स्थान को प्रमुख श्रद्धा केंद्र के रूप में मानकर काफी संख्या में भक्त आते थे। करीब डेढ़ साल पहले एक स्वयंसेवी संस्था ने इस स्थान पर लाखों रुपये व्यय कर सूप में कन्हैया, नंगे बदन वसुदेव के विग्रह स्थापित कर प्राचीन गौरव को जिंदा किया है।
अब यह धार्मिक स्थल श्रद्धालुओं को अपनी तरफ आकर्षित कर रहा है। प्रभु लीला का भी स्मरण कराता है। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर यहां कोई धार्मिक आयोजन नहीं होता लेकिन शरद पूर्णिमा पर अवश्य तिल के तेल से भरे हजारों दीप प्रज्ज्वलित कर यमुना मैया को अर्पित किए जाते हैं।
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