रामरथ व कृष्ण मनोरथ के घोड़े पर सवार भाजपा के लिए बहुत अहम है मथुरा

रामरथ और कृष्ण मनोरथ पर सवार भारतीय जनता पार्टी के लिए मथुरा लोकसभा सीट बहुत महत्वपूर्ण है। भारतीय जनता पार्टी इस सीट पर अपना कब्जा बरकरार रखने के लिए अपने सभी घोड़े जरूर खोलकर रखेगी। मथुरा सीट से जुड़ा अजीबोगरीब तथ्य यह है कि यहां ज्यादातर बार बाहरी उम्मीदवारों ने ही विजय पताका लहराई है।  

उत्तर प्रदेश की पश्चिमी सीमा यमुना किनारे बसे मथुरा संसदीय क्षेत्र की पहचान भगवान श्रीकृष्ण की जन्मस्थली से है। इसके पूर्व में हाथरस, दक्षिण पूर्व में आगरा, उत्तर में अलीगढ़ और दक्षिण-पश्चिम में राजस्थान का जिला भरतपुर है। अतीत में कांग्रेस, भाजपा और रालोद पार्टियां यहां से चुनाव जीतती रही हैं।

इस लोकसभा सीट के साथ कई दिलचस्प किस्से जुड़े हुए हैं। यहां वर्ष 1952 और 1957 में हुए आम चुनावों में निर्दलीय उम्मीदवारों ने जीत हासिल की थी। निर्दलीयों के पक्ष में चली उस आंधी में भारतीय जनसंघ के तत्कालीन नेता और बाद में देश के प्रधानमंत्री बने अटल बिहारी बाजपेयी भी चुनाव हार गए थे। वर्ष 1957 के चुनाव में अटल बिहारी बाजपेयी ने जनसंघ के टिकट पर यहां से चुनाव लड़ा था। उनके खिलाफ राजा महेंद्र प्रताप सिंह एक निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव मैदान में उतरे थे। उस समय इस सीट पर 95 हजार वोट पाकर महेंद्र प्रताप सिंह विजयी रहे, जबकि दूसरे नंबर पर कांग्रेस प्रत्याशी दिगंबर सिंह थे। अटल बिहारी बाजपेयी की इस चुनाव में जमानत जब्त हो गई थी।

इस सीट पर वर्ष 1962 से 1977 तक लगातार तीन बार कांग्रेस का कब्जा रहा। आपातकाल के बाद हुए चुनाव में जनता पार्टी की लहर के दौरान कांग्रेस को हार का मुंह देखना पड़ा। उस समय यह सीट भारतीय लोक दल के हिस्से में आई। साल 1977 में मथुरा लोकसभा सीट पर मिली भारतीय लोक दल की यह जीत एक कीर्तिमान बन गई। समाजवादी विचारधारा के नेता मनीराम बागड़ी के नाम यह कीर्तिमान है, जिसे तोड़ना तो दूर आज तक कोई इसके आसपास भी नहीं पहुंच पाया है। बागड़ी हरियाणा के हिसार के रहने वाले थे। तब यहां 3 लाख 92 हजार 137 मतों पड़े थे, जिसमें से रिकॉर्ड 76.79 प्रतिशत यानी 2 लाख 96 हजार 518 मत प्राप्त कर बागड़ी ने ऐसा कीर्तिमान रचा, जो अब तक कायम है।

साल 1980 में यह सीट जनता दल के खाते में गई जबकि साल 1984 में इंदिरा गांधी की मृत्यु के उपरांत उपजी सहानुभूति लहर में कांग्रेस ने एक बार फिर से वापसी की, लेकिन अगले चुनाव में फिर से उसे हार का सामना करना पड़ा।

जाट बहुल सीट होने के बावजूद यहां कभी आरएलड़ी का वर्चस्व नहीं रहा। हालांकि, जाटों की संख्या सबसे ज्यादा होने के कारण आरएलडी पार्टी इस सीट को अपने लिए बहुत महत्वपूर्ण मानती रही है। इस सीट से चौधरी चरण सिंह की बेटी ज्ञानवती ने एक बार चुनाव लड़ा था, लेकिन उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा। इसके उलट, बीजेपी से गठबंधन होने पर जयंत चौधरी वर्ष 2009 में इस सीट से जीत हासिल करने में कामयाब रहे थे। उन्हें तब 2,43,890 वोट मिले थे। इसके बाद साल 2014 और 2019 से हेमा मालिनी लगातार दो बार से इस सीट से सांसद हैं। बीजेपी ने अबकी बार फिर से हेमा मालिनी पर दांव खेला है। जयन्त चौधरी का साथ भी बीजेपी को इस बार मिलेगा।

साल 2019 के आम चुनावों में यहां बहुत मजेदार मुकाबला देखने को मिला। भाजपा की प्रत्याशी हेमा मालिनी ने 2,93,471 मतों के अंतर से जीत दर्ज़ की थी। उन्हें 6,71,293 वोट मिले थे। हेमा मालिनी ने अपने निकटतम रालोद प्रत्याशी कुं. नरेन्द्र सिंह को हराया। उन्हें 3,77,822 वोट मिले थे।

जाट बाहुल्य इस इलाके से जीत हांसिल करने वाले ज्यादातर उम्मीदवार भी इसी जाति के रहे हैं। अब तक 17 बार हुए चुनावों में 12 बार प्रत्याशी जाट बिरादरी से आते हैं। पिछले 10 सालों से सांसद हेमा मालिनी ने पंजाब के जाट और प्रसिद्ध अभिनेता धर्मेंद्र से शादी की, इस नाते भी लोग यहां उन्हें ‘जाट’ ही मानते हैं। हालांकि, मूल रूप से वह तमिलनाडु से आती हैं।

मतदान की बात करें तो साल 2019 के मुकाबले इस बार 2,07,090 अधिक मतदाता अपने मताधिकार का उपयोग करेंगे। वहीं 26,481 नए मतदाताओं को अपने वोटिंग अधिकार का प्रयोग करने का मौका मिलेगा। चुनाव के लिए जनपद में कुल 2128 पोलिंग स्टेशनों की व्यवस्था की गई है। जनपद में इस बार कुल वोटर 19,26,411 हैं, जिसमें वरिष्ठ नागरिक 14,973; युवा वोटर 26,481; पीडब्ल्यूडी वोटर 14,053; पुरुष वोटर 10,30,608; महिला वोटर 8,95,738 तथा 65 मतदाता किन्नर समाज से हैं।

इस निर्वाचन क्षेत्र में साल 2019 के चुनावों में 60.48 प्रतिशत मतदान हुआ था। इस बार भी यहां भारी मतदान की उम्मीद है। 

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