उत्तर प्रदेश में पहले से बेहतर हुई है कानून व्यवस्था

साल 2017 में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में पदभार संभालने के बाद से योगी आदित्यनाथ ने राज्य की कानून और व्यवस्था मशीनरी में ज़बर्दस्त बदलाव किए हैं। जुर्म के प्रति उनके प्रशासन की लगातार ‘ज़ीरो-टॉलरेंस’ की नीति ने पुलिस विभाग को नया रूप दिया है। इससे हिंसक और सार्वजनिक जुर्मों में काबिले-ग़ौर गिरावट आई है।

हालांकि, जहां डकैती, अपहरण और सड़क पर उत्पीड़न जैसे प्रत्यक्ष जुर्म कम हुए हैं, वहीं गहरे सामाजिक मुद्दे- घरेलू हिंसा, दहेज़ हत्या और सड़क दुर्घटनाएं- अभी भी चिंता के अनसुलझे पहलू बने हुए हैं। यह द्वंद्व आदित्यनाथ के शासन मॉडल की कामयाबियों और सीमाओं दोनों को एक साथ उजागर करता है।

Read in Hindi: Beyond the Bulldozer, A real shift in Law and Order of Uttar Pradesh

आदित्यनाथ के नेतृत्व में, उत्तर प्रदेश ने पिछली सरकारों में फैली अराजकता से एक बड़ा उलटफेर देखा है। भाजपा के नेता कहते हैं कि अखिलेश यादव के नेतृत्व वाली समाजवादी पार्टी सरकार (2012-2017) की अक्सर जुर्म के प्रति ढीले रवैये के लिए आलोचना की जाती थी, जिसमें मुजरिम कथित तौर पर सियासी सरपरस्ती के साथ काम करते थे।

नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के 2016 के आंकड़े समाजवादी पार्टी के कार्यकाल के आखिरी पूरे साल की एक गंभीर तस्वीर पेश करते हैं। इन आंकड़ों के अनुसार, उस साल 284 डकैती, 1,224 लूट, 9,855 अपहरण, 4,889 हत्याएं और 4,444 बलात्कार दर्ज किए गए।

इसके विपरीत, आदित्यनाथ के शासन ने संगठित और सड़क-स्तर के अपराध को आक्रामक रूप से टारगेट किया है। 2020 तक, डकैती के मामलों में 57 फीसदी, लूटपाट में 35 फीसदी और अपहरण में 19 फीसदी की गिरावट आई थी। हालांकि, राज्य सरकार ने डकैती में 70 फीसदी और लूटपाट में 69 फीसदी तक या और भी ज़्यादा कमी का दावा किया था।

साल 2017 से 10,900 से ज़्यादा पुलिस मुठभेड़, जिससे 2025 तक 222 दुर्दांत मुजरिमों को ढेर किया गया, छेड़छाड़ और सड़क पर उत्पीड़न को रोकने के लिए 2017 में एंटी-रोमियो दस्ते की शुरुआत की गई, गश्त में इज़ाफ़ा और त्वरित प्रतिक्रिया तंत्र विकसित किया गया। इससे गिरोह से संबंधित जुर्मों में कमी आई। इन उपायों ने मुजरिमों में खौफ पैदा किया है, और कानून लागू करने के मामले में आवाम का भरोसा बढ़ाया।

इन फ़ायदों के बावजूद, कुछ जुर्म श्रेणियां अभी भी बहुत ज़्यादा हैं। घरेलू हिंसा, दहेज़ हत्या और जानकारों द्वारा यौन उत्पीड़न में बहुत कम गिरावट देखी गई है, जो दर्शाता है कि मात्र पुलिस व्यवस्था बेहतर कर देने से सामाजिक मुद्दों को खत्म नहीं किया जा सकता है। दहेज़ हत्याएं चिंताजनक रूप से उच्च स्तर पर बनी हुई हैं।साल 2022 में 2,138 और साल 2016 में 2,244 दहेज हत्याएं दर्ज की गईं। बलात्कार, हालांकि 4,444 (2016) से घटकर 3,690 (2022) हो गए हैं, फिर भी राष्ट्रीय आंकड़ों में सबसे ऊपर हैं। इनमें से ज़्यादातर मुजरिम पीड़ितों के जानकार हैं।

यदि आंकड़ों की मानें तो योगी आदित्यनाथ की नीतियों ने प्रत्यक्ष जुर्म से प्रभावी ढंग से निपटा है। लेकिन,  निजी क्षेत्र के जुर्मों के लिए एक अलग नज़रिये की ज़रूरत है - जो सामाजिक सुधार, लैंगिक संवेदनशीलता और पीड़ित सहायता प्रणालियों के साथ सख्त कानूनी प्रवर्तन को जोड़ता है।

एक और परेशान करने वाली प्रवृत्ति सड़क दुर्घटनाओं में इज़ाफ़ा है। आर्थिक विकास और बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के बावजूद, उत्तर प्रदेश की सड़कें ख़तरनाक बनी हुई हैं। सड़क दुर्घटनाओं में होने वाली मौतें 20,124 (2016) से बढ़कर 22,000 (2021) से ज़्यादा हो गई हैं। हिट-एंड-रन के मामलों में इज़ाफ़ा हुआ है, जिससे ट्रैफ़िक पुलिस के काम करने के तरीके और सड़क सुरक्षा उपायों में कमियों को उजागर किया है।

हाई-प्रोफाइल जुर्मों पर लगाम लगाने के मामले में योगी आदित्यनाथ के कार्यकाल में उत्तर प्रदेश के कानून और व्यवस्था परिदृश्य को निर्विवाद रूप से बदल दिया गया है। उनके प्रशासन की मज़बूत पुलिस, तकनीकी उन्नयन और त्वरित न्याय तंत्र ने राज्य में शासन के लिए एक नया मानक स्थापित किया है।

कुल मिलाकर, योगी आदित्यनाथ का मॉडल सार्वजनिक व्यवस्था को बहाल करने में तो प्रभावी साबित हुआ है, लेकिन अगले चरण में समग्र सुरक्षा पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। सामाजिक तब्दीली के साथ प्रवर्तन को संतुलित करना बेहद जरूरी है।

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