योगी का उत्तर प्रदेश बनाम सिद्धारमैया का कर्नाटक


जब मुल्क की सियासत में एक तरफ़ भगवा गंगा बह रही हो और दूसरी ओर कावेरी में लुभावनी 'गारंटियों' की बारिश हो रही हो, तब विकास की असली तस्वीर आंकड़ों की खामोश ज़ुबान में छुप जाती है।

उत्तर प्रदेश और कर्नाटक—दो राज्य, दो नज़ारे, दो मॉडल। एक तरफ़ योगी आदित्यनाथ की फौलादी छवि, जो यूपी को 'नया भारत' का इंजन बनाने पर आमादा है, और दूसरी ओर सिद्धारमैया की नरम, लोक-लुभावन सियासत, जो हर गरीब की थाली और जेब में कुछ न कुछ देने का वादा करती है।

Read in English: Yogi’s Uttar Pradesh vs Siddaramaiah’s Karnataka

यह महज़ विकास की नहीं, विकास की परिभाषा की लड़ाई है। क्या रफ़्तार ही तरक्की है, या सहूलियत भी ज़रूरी है?क्या आईटी हब का ग्लैमर ही जीत है, या खेत-खलिहानों से उठा पसीना भी कोई मायने रखता है?

भारतीय राजनीति के इस रंगमंच पर उत्तर प्रदेश और कर्नाटक की दो अलग-अलग तसवीरें उभरती हैं—एक जहां हिंदुत्व की लहर है, सख्त और जवाबदेह प्रशासन है तो दूसरी ओर कल्याणकारी नीतियों की स्याही से तरक्की की इबारत लिखी जा रही है। हाल ही में जब केंद्रीय वित्त मंत्रालय की ताज़ा रिपोर्ट संसद में पेश हुई तो ज़ुबानों पर एक ही बात थी, "कर्नाटक नंबर वन!"

जी हां, देश में सबसे अधिक प्रति व्यक्ति आय वाला राज्य अब कर्नाटक बन चुका है—₹2,04,605 प्रति व्यक्ति! और यह कमाल हुआ है पिछले दस सालों में 93.6 फीसदी की छलांग के साथ।

दूसरी ओर, उत्तर प्रदेश, देश का सबसे अधिक जनसंख्या वाला राज्य, जहां प्रति व्यक्ति आय अभी भी एक लाख के आसपास है, और विकास की गाड़ी पूरी ताक़त से खींची जा रही है, पर पटरी पर पूरी तरह नहीं दौड़ पा रही, कारण जो भी हों।

बेंगलुरु, कर्नाटक की अर्थव्यवस्था की धड़कन, राज्य की जीएसडीपी (₹28.83 लाख करोड़) का 36 फीसदी अकेले योगदान करता है। यही नहीं, टेक्नोलॉजी, फिनटेक, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस—ये सब मिलकर इसे भारत का सिलिकॉन वैली बना चुके हैं।

मैसूर के एक उद्योगपति बताते हैं, "40 फीसदी शहरीकरण, सिर्फ 3.2 फीसदी बेरोजगारी (2021–22), और 4.43 मिलियन कुशल कामगारों का पलायन इस राज्य को न केवल आकर्षक बनाता है, बल्कि इसे देश के सबसे तेज़ी से बढ़ते राज्यों में शामिल करता है। यानी, जहां ज्ञान हो, वहां पूंजी खुद चलकर आती है—और कर्नाटक इसका सजीव उदाहरण है।"

उधर, यूपी के बारे में, टिप्पणीकार प्रो. पारस नाथ चौधरी कहते हैं, "भीड़ में खो जाना आसान होता है, मगर पहचान बनानी पड़े तो कुछ अलग करना पड़ता है। यूपी आज इसी दुविधा से जूझ रहा है। योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में यूपी में जबर्दस्त रफ़्तार से औद्योगिकीकरण की कोशिशें हो रही हैं। पूर्वांचल में कारखानों की लाइन लगाई जा रही है, इंफ्रास्ट्रक्चर पर ज़ोर है, और विदेशी निवेश को लुभाने के लिए ढेरों कार्यक्रम हो रहे हैं। एक्सप्रेसवे पर फौजी हवाई जहाज उतर रहे हैं, डिफेंस कॉरिडोर बन रही है, चौंकाने वाला जेवर इंटरनेशनल एयरपोर्ट लगभग तैयार है। ‘ऑपरेशन लंगड़ा’ ने कानून को सख्त कर दिया है। मगर, जनसंख्या का बोझ, कम शहरीकरण (22.3 फीसदी), और 22 फीसदी से अधिक गरीबी जैसे आंकड़े हर कदम पर चुनौतियां पेश करते हैं।"

बेंगलुरु के रिटायर्ड समाजशास्त्री बाबू गोपालकृष्णन बताते हैं, "योगी सरकार जहां सशक्त उत्तर प्रदेश का नारा देती है, वहीं सिद्धारमैया की कांग्रेस ‘गारंटी कार्ड’ थमा रही है। कर्नाटक की पांच गारंटी योजनाएं—गृह ज्योति, गृह लक्ष्मी, शक्ति, युवा निधि, अन्न भाग्य—ने गांव-गांव में उपभोग की शक्ति बढ़ाई है, जिससे जीएसडीपी को बल मिला है। ग्रामीण ग़रीबी घटकर 24.53 फीसदी (राष्ट्रीय औसत से नीचे), शहरी ग़रीबी 15.25 फीसदी, और ₹1.2 लाख करोड़ जीएसटी संग्रहण (2023–24) हुआ है।" इसके मुकाबले यूपी का जीएसटी संग्रह मात्र ₹80,000 करोड़ और प्रत्यक्ष कर में हिस्सेदारी 3-4 फीसदी के बीच है।

कर्नाटक के पास न सिर्फ़ आईटी है, बल्कि खनिज संपदा, मत्स्य पालन, और भारी वर्षा (3,638.5 मिमी) से जल विद्युत भी है। वहीं, यूपी की खेती गंगा के मैदानों पर आधारित है—गन्ना, गेहूं, आलू—मगर जलवायु संकट, वनों की कटाई और यमुना-गंगा की गंदगी राज्य की सेहत बिगाड़ रहे हैं।

कर्नाटक में असंगठित मज़दूरों की न्यूनतम दिहाड़ी ₹346 है जबकि यूपी में यह ₹383—ज्यादा लगती है, पर जीवनस्तर और महंगाई के अनुपात में कर्नाटक की स्थिति मज़बूत बनी हुई है।

एक आईटी कंपनी के निदेशक के मुताबिक "बेंगलुरु में देशभर से 44 लाख कामगार आते हैं। जबकि यूपी से 1.23 करोड़ लोग काम की तलाश में पलायन करते हैं—यह सिर्फ़ आंकड़ा नहीं, एक 'ब्रेन ड्रेन' है, जो राज्य की सामाजिक संरचना को खोखला कर रहा है।"

कर्नाटक में कांग्रेस की ‘समावेशी राजनीति’ शहरी पढ़े-लिखे तबकों और ग्रामीणों दोनों को जोड़ती है। हालांकि, बजट का बोझ और ज़िलों के बीच आर्थिक असंतुलन चिंता का विषय है।

कर्नाटक, जहां निजी क्षेत्र और जननीतियों का संतुलन है, वहीं यूपी अब भी बुनियादी ढांचे और मानवीय विकास सूचकांकों से जूझ रहा है।



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