कभी गणित और ज्योतिष का केंद्र रहा भारत आज अंतरराष्ट्रीय क्षितिज पर इस विधा में तेजी से पिछड़ रहा है। किसी भी विद्यार्थी से पूछें तो सबसे ज्यादा भयभीत करने वाला विषय गणित ही निकलेगा। अब कोई रामानुजन नहीं बनना चाहता है, जबकि इंजीनियर, डॉक्टर या अकाउंटेंट बनने के लिए गणित का ज्ञान ही पहली सीढ़ी है।
एक जमाने में आर्यभट्ट, ब्रह्मगुप्त और बाद में श्रीनिवास रामानुजन जैसे व्यक्तित्वों के साथ गणितीय प्रतिभा के उद्गम स्थल के रूप में प्रसिद्ध, भारत के समकालीन गणित शिक्षण मानक दुखद रूप से पिछड़ गए हैं। भारत की समृद्ध गणितीय विरासत और इसकी आधुनिक शैक्षिक प्रथाओं के बीच की खाई देश में गणित के भविष्य के बारे में गंभीर सवाल उठाती है।
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आगरा स्थित सेंट पीटर्स कॉलेज के वरिष्ठ शिक्षक डॉ अनुभव सर बताते हैं कि अब जबकि हर प्रतियोगिता में गणित के आधारभूत ज्ञान के बगैर आगे बढ़ना बिल्कुल असंभव है, और हर क्षेत्र में किसी भी एप्लीकेशन का बिना गणित के चल पाना नामुमकिन है, फिर भी विद्यार्थियों में गणितज्ञ बनने का जुनून नहीं दिखता!
दिल्ली विश्वविद्यालय की प्रो. मांडवी कहती हैं कि सबसे ज्यादा कोचिंग गणित से जुड़े विषयों में ही ली जाती है, फिर भी आपको सिर्फ गणितज्ञ बनने का सपना देखने वाले कम ही मिलेंगे। बहुत लंबे समय तक, हमने पुरानी शिक्षण विधियों का पालन किया है, जो छात्रों को सीखने की खुशी से वंचित करते हैं। गणित को अक्सर एक शुष्क, अमूर्त विषय के रूप में प्रस्तुत किया जाता है। उच्च शिक्षा के भारतीय संस्थान गणित, आईटी, विज्ञान, प्रौद्योगिकी और विभिन्न अन्य अनुप्रयोगों के बीच सुंदर संबंधों को प्रदर्शित करने में विफल रहे हैं।
सामाजिक विश्लेषक प्रो. पारस नाथ चौधरी का कहना है कि भारत में शिक्षकों ने छात्रों को यह दिखाने की हमेशा उपेक्षा ही की है कि कोडिंग व डेटा विश्लेषण से लेकर चिकित्सा अनुसंधान व पर्यावरणीय स्थिरता तक वास्तविक दुनिया की समस्याओं को हल करने के लिए गणित का उपयोग कैसे किया जाता है। नतीजतन, कई छात्र गणित का डर या नापसंदी जाहिर करते हैं, जो उनके शैक्षणिक और करियर लक्ष्यों पर दीर्घकालिक प्रभाव डाल सकता है।
मैसूर में ग्यारहवीं की छात्रा माही हीदर मानती हैं कि भारत की गणितीय शिक्षा प्रणाली के भीतर एक स्पष्ट मुद्दा शिक्षण मानकों की अपर्याप्तता है। शिक्षकों को अक्सर विषय वस्तु और प्रभावी शैक्षणिक दृष्टिकोण दोनों में व्यापक प्रशिक्षण की कमी होती है। इस कमी को एक कठोर पाठ्यक्रम द्वारा और बढ़ा दिया जाता है जो वैचारिक समझ की जगह रटने पर जोर देता है।
इसी बात को आगे बढ़ाते हुए एक और विद्यार्थी वीर एल गुप्ता कहते हैं कि नतीजतन, छात्र अक्सर गणित को तार्किक और आकर्षक अनुशासन के बजाय एक अमूर्त, डराने वाले विषय के रूप में देखते हैं। गणित के प्रति यह डर और आक्रोश छात्रों के बीच स्पष्ट है, जिनमें से कई अपनी शैक्षणिक यात्रा की शुरुआत में इस विषय के प्रति गहरी घृणा विकसित करते हैं।
दूसरी ओर, जयपुर के स्कॉलर्स इंटरनेशनल स्कूल में गणित की शिक्षिका कांक्षा गुप्ता का कहना है कि छात्र गणितीय अवधारणाओं पर मजबूत पकड़ तो प्रदर्शित करते हैं, अक्सर सटीक उत्तर भी देते हैं, लेकिन, अंकगणितीय गणना में कमजोरी के कारण उनकी प्रगति बाधित होती है। यह अंतर उनके गणना कौशल को निखारने के लिए घर और स्कूल दोनों जगह दिए जाने वाले पर्याप्त समय में की कमी के कारण उत्पन्न होता है। उनका मानना है कि मानव मस्तिष्क में तर्क और अंकगणित के लिए जिम्मेदार अलग-अलग गोलार्ध होते हैं। जब ये दोनों पहलू निर्बाध रूप से एकीकृत नहीं होते हैं, तो गणित का डर उभर सकता है। गणित विश्लेषणात्मक, गणनात्मक और समस्या-समाधान क्षमताओं के सामंजस्यपूर्ण मिश्रण की मांग करता है। एक छात्र की सफलता गणित उनके सीखने के माहौल, उन्हें मिलने वाली शिक्षा की गुणवत्ता और यहां तक कि उनकी आनुवंशिक प्रवृत्ति से भी जटिलता के साथ जुड़ा हुआ है, ये कारक सामूहिक रूप से उनकी गणितीय यात्रा को आकार देते हैं।
फरीदाबाद की छात्रा रुक्मिणी गुप्ता गणित से नफरत करने के लिए आनुवांशिक जीन्स को जिम्मेदार ठहराती हैं। "चूंकि, मेरी मम्मी और पापा गणित में बहुत कमज़ोर थे, इसलिए मुझे इस विषय में कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। इसके चलते, मैंने 11-12वीं कक्षा में जीव विज्ञान विषय चुना।"
वास्तव में अब गणित शिक्षा के प्रति हमारे दृष्टिकोण पर पुनर्विचार करने और इसे छात्रों के जीवन के लिए अधिक आकर्षक, इंटरैक्टिव और प्रासंगिक बनाने का समय आ चुका है। बिहार के प्रतिष्ठित शिक्षाविद् टीपी श्रीवास्तव कहते हैं कि गणित को अधिक सुलभ और मनोरंजक बनाने के लिए प्रौद्योगिकी, खेल और वास्तविक दुनिया के उदाहरणों की शक्ति का उपयोग किया जाना चाहिए। छात्रों को केवल सूत्रों और प्रक्रियाओं को याद रखने के बजाय तलाशने, प्रयोग करने और नया करने के लिए प्रोत्साहित करने की जरूरत हैं।
वैज्ञानिक शोध से लंबे समय से जुड़ी एक रिटायर्ड शिक्षक मीरा कहती हैं कि भारत में गणित शिक्षा और अनुसंधान की स्थिति पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है। शिक्षण मानकों में अपर्याप्तता का सामना करके, संसाधन असमानताओं को दूर करके, और गणित के लिए एक सहायक वातावरण को बढ़ावा देकर, भारत इस क्षेत्र में एक नेता के रूप में अपनी विरासत को फिर से जगा सकता है। तभी हम गणित के लिए एक माहौल विकसित करने की उम्मीद कर सकते हैं।
कुल मिलाकर, छात्रों और शिक्षकों के संघर्षों से परे, भारत का गणित अनुसंधान परिदृश्य अटका या स्थिर दिखाई देता है। जबकि, गणित में वैश्विक प्रगति तेज हो रही है। रामानुजन के समय से भारतीय गणितज्ञों के योगदान में कमी आई है। अन्य विषयों के विपरीत, गणितीय अनुसंधान को बढ़ावा देने पर सरकार का सीमित ध्यान, महत्वाकांक्षी गणितज्ञों और शोधकर्ताओं को हतोत्साहित करता है।
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