नवरात्रि के नौ दिनों में नौ शक्तियों की महिमा

मान्यता है कि नवरात्रि के नौ दिनों तक शक्ति की विशेष पूजा करने से हर तरह की मनोकामना पूरी होती है और दुख-दर्द दूर हो जाते हैं। नवरात्रि के हर दिन एक देवी की पूजा और मंत्र जाप का विधान होता है।

माता के नौ रूपों में से एक मां शैलपुत्री की पूजा से शक्ति की प्राप्ति होती है। देवी के दूसरे स्वरूप ब्रह्राचारिणी की पूजा से मान-सम्मान, मां चंद्रघंटा की पूजा से एकाग्रता व देवी कूष्मांडा से मन में दया का भाव आता है। कहा जाता है कि स्कंदमाता की आराधना से कामयाबी और मां कात्यानी की आराधना से बाधाएं दूर होती हैं। कालरात्रि की पूजा से शत्रुओं पर विजय प्राप्ति, महागौरी की पूजा से सुख-समृद्धि और मां सिद्धिदात्री की पूजा करने पर जीवन की हर एक मनोकामना पूरी होती है।

नवरात्र पूजन के प्रथम दिन कलश पूजा के साथ ही मां दुर्गा के पहले स्वरूप 'शैलपुत्री' का पूजन किया जाता है। नवदुर्गाओं में प्रथम शैलपुत्री दुर्गा का महत्व और शक्तियां अनंत हैं। मां शैलपुत्री देवी पार्वती का ही स्वरूप हैं, जो सहज भाव से पूजन करने से शीघ्र प्रसन्न हो जाती हैं और भक्तों को मनोवांछित फल प्रदान करती हैं।

माता शैलपुत्री को शिखर यानी हिमालय पर्वत की बेटी के रूप में जाना जाता है। इन्हें पार्वती और हेमवती के नाम से भी जाना जाता है। भागवत पुराण के अनुसार प्रजापति दक्ष ने विशाल यज्ञ का आयोजन कर सभी देवी-देवताओं को निमंत्रण भेजा लेकिन भगवान शिव और पुत्री सती को नहीं बुलाया। अपने पति भगवान शिव के अपमान से नाराज होकर, उन्होंने यज्ञ का विध्वंस कर दिया। यज्ञ में अपनी आहूति देकर आत्मदाह कर लिया था। देवी सती ने पर्वतराज हिमालय के घर में देवी पार्वती या माता शैलपुत्री के रूप में जन्म लिया। कठोर तपस्या करके भगवान शिव को पुनः पति के रूप में प्राप्त किया।

पूजन के लिए नवरात्रि के प्रथम दिन ब्रह्म मुहूर्त में स्नान आदि कर सफेद वस्त्र धारण करें। इसके बाद चौकी पर लाल वस्त्र बिछाकर गंगा जल का छिड़काव करें और ऊपर केसर से स्वास्तिक का चिह्न बनाएं। अब चौकी पर मां शैलपुत्री की प्रतिमा स्थापित करें। माता को सफेद वस्त्र और सफेद फूल चढ़ाएं। साथ ही सफेद रंग की मिठाइयों का भोग लगाएं, माता के चरणों में गाय का घी अर्पित करें। तत्पश्चात मां शैलपुत्री के मंत्रों का 108 बार जाप करें और माता की आरती का पाठ करें। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार मां शैलपुत्री को सफेद रंग पसंद है।

मां दुर्गा की नवशक्तियों का दूसरा स्वरूप ब्रह्मचारिणी का है। भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए इन्होंने हजारों वर्षों तक घोर तपस्या की थी। इनकी पूजा से अनंत फल की प्राप्ति एवं तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार, संयम जैसे गुणों की वृद्धि होती है। इनकी उपासना से साधक को सर्वत्र सिद्धि और विजय की प्राप्ति होती है।

पौराणिक मान्यता के अनुसार भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए देवी ने वर्षों तक कठिन तपस्या की और अंत में उनकी तपस्या सफल हुई। मां ब्रह्मचारिणी की कृपा से सिद्धी की प्राप्ति होती है। तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार और संयम की वृद्धि के लिए देवी ब्रह्मचारिणी की उपासना की जाती है।

पूजन के लिए स्नानादि से निवृत्त होकर पूजा स्थान पर गंगाजल डालकर उसकी शुद्धि कर लें। घर के मंदिर में दीप प्रज्वलित करें। मां दुर्गा का गंगा जल से अभिषेक करें। इसके बाद माता को अर्घ्य दें। मां को अक्षत, सिन्दूर और लाल पुष्प अर्पित करें, प्रसाद के रूप में फल और मिठाई चढ़ाएं। धूप और दीपक जलाकर दुर्गा चालीसा का पाठ करें और फिर मां की आरती करें। माता ब्रह्मचारिणी को नारंगी रंग पसंद है।

मां दुर्गाजी की तीसरी शक्ति देवी चंद्रघंटा है। इनके मस्तक में घंटे के आकार का अर्द्धचंद्र विराजमान है, इसलिए इन्हें चंद्रघंटा कहा जाता है। इनकी आराधना से साधकों को चिरायु, आरोग्य, सुखी और संपन्न होने का वरदान प्राप्त होता है तथा स्वर में दिव्य, अलौकिक माधुर्य का समावेश हो जाता है। प्रेत-बाधादि से ये अपने भक्तों की रक्षा करती हैं।

पौराणिक कथा के अनुसार, राक्षस महिषासुर से देवता और ऋषि मुनि त्रस्त थे ऐसे में सब मां आदिशक्ति के पास गए तब मत ने चंद्रघंटा के अवतार में महिषासुर का वध किया था।

पूजन के लिए सर्वप्रथम ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नानादि के पश्चात पूजा स्थान पर गंगाजल छिड़कें। अब मां चंद्रघंटा का ध्यान करें और उनके समक्ष दीपक प्रज्वलित करें। अब माता रानी को अक्षत, सिंदूर, पुष्प आदि चीजें अर्पित करें। इसके बाद मां को प्रसाद के रूप में फल और मखाने की खीर अर्पित करें। अब मां चंद्रघंटा की आरती करें। मां चंद्रघंटा को सफेद रंग पसंद है।

नवरात्र के चौथे दिन शेर पर सवार मां के कूष्माण्डा स्वरूप की पूजा की जाती हैं। इन्हीं के तेज और प्रकाश से दसों दिशाएं प्रकाशित हो रही हैं। देवी कूष्मांडा अपने भक्तों को रोग, शोक और विनाश से मुक्त करके आयु, यश, बल और बुद्धि प्रदान करती हैं।

पौराणिक मान्यता है कि जब सृष्टि का अस्तित्व नहीं था तब माता ने ब्रह्मांड की रचना कर सृष्टि की आदिस्वरूपा और आदिशक्ति बन गई थीं। यह केवल एक मात्र ऐसी माता है जो सूर्यमंडल के भीतर के लोक में निवास करती हैं।

पूजन के लिए स्नानादी से निवृत होकर मां कूष्माण्डा का ध्यान करते हुए उन्हें पंचामृत से स्नान कराएं और श्रंगार करें। इसके बाद माता को गुड़हल का फूल, फल, अक्षत सिंदूर और लाल रंग का जोड़ा अर्पित करें। धूप दीप कर मां कुष्मांडा का पाठ करें। माता को मालपुए का भोग लगाएं। मान्यता है कि माता को मालपुए का भोग लगाने के बाद किसी ब्राम्हण को खिलाने से माता प्रसन्न होती हैं। भोग लगाने के बाद माता की आरती करें। मां कुष्मांडा को लाल रंग पसंद है।

पांचवें स्वरूप को स्कंदमाता के नाम से जाना जाता है। यह कमल के आसान पर विराजमान हैं इसलिए इन्हें पद्मासन देवी भी कहा जाता है। स्कंदमाता की साधना से साधकों को आरोग्य, बुद्धिमता तथा ज्ञान की प्राप्ति होती है।

पौराणिक कथा के अनुसार तारकासुर नामक असुर की मृत्यु केवल शिव पुत्र से ही संभव थी। तब माता पार्वती ने अपने पुत्र भगवान स्कन्द, को युद्ध के लिए प्रशिक्षित करने के लिए स्कन्द माता का रूप ले लिया। फिर उन्होंने भगवान स्कन्द को युद्ध के लिए प्रशिक्षित किया था। मां से युद्ध प्रशिक्षिण लेने के बाद भगवान स्कन्द ने तारकासुर का वध किया था।

पूजन के लिए पंचमी तिथि को स्नान करके बाद में माता की पूजा शुरू करें। मां की प्रतिमा या चित्र को गंगा जल से शुद्ध करें। इसके बाद कुमकुम, अक्षत, फूल, फल आदि अर्पित करें। मिष्ठान का भोग लगाएं। माता के सामने घी का दीपक जलाएं। उसके बाद पूरे विधि-विधान और सच्चे मन से मां की पूजा करें। फिर मां की आरती उतारें, कथा पढ़ें और आखिर में मां के मंत्रों का जाप करें। स्कंदमाता को नीला रंग पसंद है।

मां कात्यायनी देवताओं और ऋषियों के कार्य को सिद्ध करने के लिए महर्षि कात्यायन के आश्रम में प्रकट हुईं इसलिए इनका नाम कात्यायनी पड़ा। यह देवी दानवों और शत्रुओं का नाश करती है। देवी भागवत पुराण के अनुसार देवी के इस स्वरूप की पूजा करने से शरीर कांतिमान हो जाता है। इनकी आराधना से गृहस्थ जीवन सुखमय रहता है।

पूजन के लिए मां कात्यायनी की प्रतिमा को शुद्ध जल या गंगाजल से स्नान कराएं। इसके बाद मां को पीले रंग के वस्त्र अर्पित करें। मां को स्नान कराने के बाद पुष्प अर्पित करें। मां को रोली कुमकुम लगाएं। मां को पांच प्रकार के फल और मिष्ठान का भोग लगाएं। मां कात्यायनी को शहद का भोग अवश्य लगाएं। मां कात्यायनी का अधिक से अधिक ध्यान करें। इसके बाद मां की आरती भी करें। देवी कात्यायनी को पीला रंग पसंद है।

सातवां स्वरूप है मां कालरात्रि का। इन्हें तमाम आसुरिक शक्तियों का विनाश करने वाली देवी बताया गया है। ये देवी अपने उपासकों को अकाल मृत्यु से भी बचाती हैं। इनके नाम के उच्चारण मात्र से ही भूत, प्रेत, राक्षस और सभी नकारात्मक शक्तियां दूर भागती हैं। मां कालरात्रि की पूजा से ग्रह-बाधा भी दूर होती हैं।

पूजन के लिए स्नानादि से निवृत होकर मां कालरात्रि का ध्यान करते हुए उन्हें लाल रंग के वस्त्र अर्पित करें। मां को स्नान कराने के बाद पुष्प अर्पित करें। मां को रोली कुमकुम लगाएं।

इसके बाद मिष्ठान, पंच मेवा, पांच प्रकार के फल अर्पित करें। हो सके तो शहद का भोग अवश्य लगाएं। मां कालरात्रि का अधिक से अधिक ध्यान करें। इसके बाद मां की आरती भी करें। मां कालरात्रि को लाल रंग पसंद है।

दुर्गाजी की आठवीं शक्ति देवी महागौरी भक्तों के लिए देवी अन्नपूर्णा स्वरूप हैं, इसलिए अष्टमी के दिन कन्याओं के पूजन का विधान है। इनकी पूजा से धन, वैभव और सुख-शांति की प्राप्ति होती हैं। उपासक सभी प्रकार से पवित्र और अक्षय पुण्यों का अधिकारी हो जाता है।

पूजन के लिए प्रातः काल स्नानादि से निवृत्त होने के बाद मां की प्रतिमा को गंगाजल से स्नान कराएं। इसके बाद मां को सफेद रंग के वस्त्र अर्पित करें। इसके बाद महागौरी को सफेद पुष्प अर्पित करें औररोली लगाएं। इसके बाद नैवेद्य में मिष्ठान, पंच मेवा, फल अर्पित करें। मां महागौरी को काले चने का भोग अवश्य लगाएं। मां की आरती भी करें। अष्टमी के दिन कन्या पूजन का भी विशेष महत्व होता है। इस दिन कन्या पूजन भी करें। मां को मोरपंखी रंग पसंद है।

नवां स्वरूप मां सिद्धिदात्री भक्तों और साधकों को सभी प्रकार की सिद्धियां प्रदान करने में समर्थ हैं। मान्यता है कि सभी देवी-देवताओं को भी मां सिद्धिदात्री से ही सिद्धियों की प्राप्ति हुई है। इनकी उपासना से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं। भक्त इनकी पूजा से यश, बल और धन की प्राप्ति करते हैं।

पूजन के लिए प्रातः उठकर स्नानादि करके पहले भोग तैयार करें। इसके बाद देवी सिद्धिदात्री की पूजा करते समय हाथ में एक फूल लेकर उनका ध्यान करें और प्रार्थना करें। इसके उपरांत देवि सिद्धिदात्री को पंचामृत स्नान कराएं, फिर अलग-अलग तरह के फूल,अक्षत, कुमकुम व सिंदूर अर्पित करें। माता को हलवा, पूड़ी व चने का भोग लगाएं और कन्या भोज करने के बाद व्रत का पारण कर सकते हैं। नवरात्रि के अंतिम दिन मां को लाल या पीले रंग के वस्त्र पहनाएं।

मां सिद्धिदात्री भक्तों और साधकों को सभी सिद्धियां प्रदान करने में समर्थ हैं। देवीपुराण के अनुसार भगवान शिव ने इनकी कृपा से ही इन सिद्धियों को प्राप्त किया था। इनकी अनुकम्पा से ही भगवान शिव का आधा शरीर देवी का हुआ था। इसी कारण वे लोक में 'अर्द्धनारीश्वर' नाम से प्रसिद्ध हुए।



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