भगवान शिव की महिमा और सावन का महीना...

 

हिंदू कैलेंडर के मुताबिक साल का पांचवां माह सावन का है। यह पूरा महीना भगवान शिव को समर्पित होता है। इस पूरे महीने में भगवान शिव के साथ मां पार्वती की विधिवत पूजा करने का विधान है। शिव पुराण के अनुसार, इस महीने में भगवान शिव और माता पार्वती भू-लोक में निवास करते हैं।

सावन में शिव भक्ति के साथ ही भगवान शिव की कथा सुनने का भी बड़ा महत्व है। शिव पुराण में भगवान शिव के कई प्रसंग हैं। उनके 19 अवतारों के बारे में बताया गया है। इसके साथ ही किस-किस को भगवान ने क्या-क्या वरदान दिए, ये कहानियां भी हैं।

ऐसी ही एक कहानी के अनुसार, एक बार भगवान शिव और माता पार्वती घूमते हुए काशी पहुंच गए। उसी दौरान जब शिव अपना मुंह पूर्व दिशा की ओर करके बैठे थे तभी पार्वती ने पीछे से आकर अपने हाथों से भगवान शिव की आंखों को बंद कर दिया। ऐसा करने पर उस पल के लिए पूरे संसार में अंधेरा छा गया। जैसे ही माता पार्वती के हाथों का स्पर्श भगवान शिव के शरीर पर हुआ, वैसे ही भगवान शिव के सिर से पसीने की बूंदें गिरने लगीं। उन पसीने की बूंदों से एक बालक प्रकट हुआ।

उस बालक का मुंह बहुत बड़ा था और भंयकर था। उस बालक को देखकर माता पार्वती ने भगवान शिव से उसकी उत्पत्ति के बारे में पूछा। भगवान शिव ने पसीने से उत्पन्न होने के कारण उसे अपना पुत्र बताया। अंधकार में उत्पन्न होने की वजह से वह बालक अंधा था। इसलिए, उसका नाम ‘अंधक’ रखा गया। कुछ समय बाद दैत्य हिरण्याक्ष के पुत्र प्राप्ति का वर मागंने पर भगवान शिव ने अंधक को उसे पुत्र रूप में प्रदान कर दिया।

शिव पुराण में ही एक अन्य प्रसंग के अनुसार, पार्वती भगवान शिव को पति रूप में पाना चाहती थी। इसके लिए पार्वती कई वर्षों से कठोर तपस्या कर रही थी। माता पार्वती की तपस्या देखकर भगवान शिव उनकी भक्ति पर प्रसन्न हुए, लेकिन वह उनके प्रेम की परीक्षा लेना चाहते थे। परीक्षा लेने के लिए भगवान शिव एक ब्राह्मण का रूप धारण करके माता पार्वती के समक्ष पहुंचे। उन्हें तपस्या करते देख ब्राह्मण रूपी शिव ने उनसे इतनी कठोर तपस्या करने का कारण पूछा।

ऐसा पूछने पर पार्वती ने उन्हें बताया कि वह भगवान शिव को अपने पति रूप में पाना चाहती हैं। उन्हीं को पाने के लिए वह तपस्या कर रही है। पार्वती के ऐसा कहने पर ब्राह्मण रूपी शिव माता पार्वती के सामने भगवान शिव की निन्दा करने लगे। ब्राह्मण के मुंह से भगवान शिव की निन्दा सुनने पर पार्वती ने ब्राह्मण की बातों का विरोध किया और भगवान शिव के गुणों का वर्णन किया। पार्वती के ऐसा करने पर शिव बहुत प्रसन्न हुए और उन्हें अपने दर्शन दिए। साथ ही, उन्हें अपनी पत्नी बनाने का वरदान भी दिया।

शिव पुराण की एक और कथा है। जब पांडव काम्यक वन में अपना वनवास बिता रहे थे। तब एक बार महर्षि वेदव्यास उनसे मिलने पहुंचे। वेदव्यास ने अर्जुन को भगवान शिव की तपस्या करके, उनसे पाशुपति अस्त्र और दिव्यास्त्र प्राप्त करने को कहा। महर्षि के आदेश पर अर्जुन घने जंगल में शिव की कड़ी तपस्या करने लगे। अर्जुन की परीक्षा लेने के लिए भगवान शिव ने एक भील का रूप धारण किया। भील रूपी शिव ने अर्जुन के पराक्रम का बहुत अपमान किया। भील द्वारा अपने पराक्रम का अपमान कए जाने पर अर्जुन ने उसे युद्ध करने को ललकारा।

इससे भील रूपी भगवान शिव और अर्जुन के बीच घोर युद्ध हुआ। युद्ध में भील ने अर्जुन को हरा दिया और उसका धनुष ‘गांडीव’ भी छीन लिया। भील के वार से अर्जुन बेहोश होकर धरती पर गिर पड़े। होश आने पर वह फिर से शिव की तपस्या करने लगे। अर्जुन की भक्ति और लगन से खुश होकर शिव ने उन्हें अपने दर्शन दिए। साथ ही, वरदानस्वरूप उन्होंने अर्जुन को पाशुपति अस्त्र और कई दिव्यास्त्रों की शिक्षा भी दी।

सावन महीने में शिव पूजा के पीछे धार्मिक मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव की विधिवत पूजा करने से जीवन के सभी कष्टों से मुक्ति मिलती है। सावन के सोमवार की कथा के अनुसार, किसी स्थान पर एक व्यापारी रहता था। वह भगवान शिव का बहुत बड़ा भक्त था। नगर के सभी लोग उसका आदर करते थे। उसका जीवन सुखी-संपन्न था, लेकिन उसकी अपनी कोई संतान नहीं थी। इस कारण वह हमेशा दुखी रहता था। व्यापारी संतान प्राप्ति की कामना से प्रत्येक सोमवार को शिव की विधिवत पूजा-अर्चना करता था।

कहते हैं कि व्यापारी की भक्ति को देखकर मां पार्वती ने शिव से कहा कि वह आपका बहुत बड़ा भक्त है। प्रत्येक सोमवार को पूरी श्रद्धा से व्रत और पूजन करता है, लेकिन फिर भी आप उसकी इच्छा पूरी क्यों नहीं कर रहे हैं। मां पार्वती की इस बात पर शिव ने कहा कि इस व्यापारी के भाग्य में संतान नहीं हैं। इसलिए, वह कुछ नहीं कर सकते हैं। यह सुनकर पार्वती हठ करने लगी कि वह व्यापारी को संतान प्राप्ति का वरदान प्रदान करें। हठ के आगे झुकते हुए शिव ने उस व्यापारी को संतान प्राप्ति का वरदान दिया। लेकिन, उन्होंने यह भी कहा कि उसकी इस संतान की आयु महज 12 वर्ष ही होगी।

वरदानस्वरूप कुछ दिनों के बाद व्यापारी की पत्नी गर्भवती हुई और उसने एक सुंदर पुत्र को जन्म दिया। इस शुभ समाचार को जानकर व्यापारी बहुत खुश हुआ, लेकिन उसे शिवजी की कही हुई बातें याद थीं। इसके चलते, पुत्र प्राप्ति के बाद भी वह दुखी रहता था। हालांकि, यह बात उसने अपनी पत्नी को नहीं बताई।

जब व्यापारी का पुत्र 11 वर्ष का हुआ तो उसकी पत्नी ने अपने पुत्र का विवाह करने कि लिए कहा। इस पर व्यापारी ने कहा कि वह अपने पुत्र को काशी में शिक्षा ग्रहण करने के लिए भेजेंगे। शिक्षा प्राप्ति के बाद ही उसका विवाह होगा। व्यापारी ने अपने पुत्र को उसके मामा के साथ काशी भेज दिया। पुत्र को विदा करते समय व्यापारी ने कहा कि काशी के रास्ते में जहां भी रुकें, वहां यज्ञ और ब्राह्मणों को भोजन कराकर ही आगे बढ़ें।

व्यापारी का पुत्र रास्ते में यज्ञ और ब्राह्मणों को भोजन करवाते हुए आगे बढ़ता गया। आगे उसने देखा कि एक राजाकुमारी का विवाह हो रहा था। राजकुमारी का विवाह जिस राजकुमार से हो रहा था उसकी एक आंख खराब थी। राजकुमारी के पिता की नजर जब व्यापारी के पुत्र पर पड़ी तो उसने सोचा का क्यों न राजकुमारी की शादी इस बालक से कर दूं। राजा ने अपने इस विचार को बालक के मामा से साझा किया। राजा के इस सुझाव को बालक के मामा ने मान गया और उसने अपने भांजे की शादी उस राजकुमारी से करा दी। लेकिन, वधू की विदाई को काशी से लौटने के बाद सुनिश्चित किया गया।

काशी पहुंचकर मामा-भांजा अपने घर में यज्ञ करवा रहे थे। उसी वक्त भांजे की तबीयत खराब हो गई। उस दिन वह बालक कमरे से बाहर नहीं आया। मामा ने कमरे के अंदर जाकर देखा तो उसके भांजे के प्राण निकल चुके थे। लेकिन, मामा ने यह बात किसी को नहीं बताई। उसने यज्ञ का सारा काम समाप्त कर ब्राह्मणों को भोजन कराया। इसके बाद उसकी वेदना न रुकी और उसने विलाप करना शुरू कर दिया।

संयोगवश, भगवान शिव और मां पर्वती उसी रास्ते से जा रहे थे। रोने की आवाज सुनकर पार्वती ने शिव से पूछा कि यह कौन रो रहा है। शिव ने कहा कि यह उसी व्यापारी के पुत्र की मृत्यु पर विलाप कर रहा है, जिसकी आयु सिर्फ 12 वर्ष की थी। तब पार्वती ने शिव से व्यापारी के बेटे को जीवनदान देने को कहा। शिव ने कहा कि उस पुत्र की आयु उतनी ही थी। शिव के वचन सुनकर पार्वती बार-बार उस बालक को जीवनदान देने का आग्रह करने लगीं। अंतत: पार्वती के आग्रह पर शिव ने उस पुत्र को जीवनदान दे दिया। इसके बाद मामा और भांजा दोनों ने अपने घर वापस लौटने का निर्णय किया।

रास्ते में वह नगर मिला जहां व्यापारी के पुत्र का विवाह हुआ था। वहां उन दोनों का खूब सत्कार हुआ। राजा ने अपनी कन्या को व्यापारी के बेटे के साथ खूब सारा धन देकर विदा कर दिया। उधर, व्यापारी और उसकी पत्नी यह सोच बैठे थे कि अगर उनका पुत्र वापस नहीं आएगा तो वे अपनी जान न्योछावर कर देंगे।

जब व्यापारी को पता चला कि उसका पुत्र अपनी पत्नी के साथ वापस आ रहा है, तो उसे विश्वास नहीं हुआ। लेकिन, बाद में उन्होंने अपने बेटे व बहू का भव्य स्वागत किया और भगवान शिव को धन्यवाद दिया।

सावन माह के दौरान बारिश का मौसम होता है। पुराणों के मुताबिक शिव को चढ़ने वाले फूल-पत्ते बारिश में ही आते हैं, इसलिए सावन में शिव पूजा की परंपरा बनी। स्कंद पुराण में भगवान शिव ने सनत कुमार को सावन महीने के बारे में बताया कि उन्हें श्रावण बहुत प्रिय है। इस महीने की हर तिथि व्रत और हर दिन पर्व होता है, इसलिए इस महीने नियम-संयम से रहते हुए पूजा करने से शक्ति और पुण्य बढ़ते हैं।

सावन का महत्व बताते हुए महाभारत के अनुशासन पर्व में अंगिरा ऋषि ने कहा है कि जो इंसान मन और इन्द्रियों को काबू में रखकर एक वक्त खाना खाते हुए श्रावण मास बिताता है, उसे कई तीर्थों में स्नान करने जितना पुण्य मिलता है।



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