जहां गिरा मां सती का पांव, वहां है पावागढ़ महाकाली का मंदिर

गुजरात के पावागढ़ में हिन्दू राजाओं ने एक पहाड़ की चोटी पर विशाल महाकाली मंदिर का निर्माण कराया था। ऐसी कहानियां भी हैं कि पावागढ़ में ही भगवान श्रीराम के पुत्रों लव और कुश को मोक्ष प्राप्त हुआ था। माना यह भी जाता है कि यहीं ऋषि विश्वामित्र ने माता काली की कठोर तपस्या की थी।

पंचमहल जिले में बने पावागढ़ के इस महाकाली मंदिर की खास बात यह है कि यहां दक्षिणमुखी काली मां की मूर्ति है। यह मंदिर पावागढ़ की ऊंची पहाड़ियों के बीच लगभग 550 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। पावागढ़ पहाड़ी की शुरुआत प्राचीन गुजरात की राजधानी चंपानेर से होती है। यहां 1,471 फुट की ऊंचाई पर 'माची हवेली' स्थित है। मंदिर तक जाने के लिए माची हवेली से रोपवे की सुविधा है। यहां से मंदिर तक पहुंचने लिए लगभग 250 सीढ़ियां चढ़नी होती हैं।

कहा जाता है कि प्राचीन समय में इस दुर्गम पर्वत पर चढ़ाई लगभग असंभव थी। चारों ओर खाइयों से घिरे होने के कारण यहां हवा का वेग भी हर तरफ बहुत ज्यादा रहता है, इसलिए इसे पावागढ़ कहते हैं, यानी ऐसी जगह जहां पवन यानी हवा का वास हमेशा एक जैसा रहे। किंवदंतियों के अनुसार, पावागढ़ पर्वत की उम्र लगभग आठ करोड़ साल है। यह पहाड़ 40 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है।

देवी पुराण के अनुसार, जब प्रजापति दक्ष के यज्ञ में शिव का अपमान सहन न कर पाने के कारण माता सती ने योग बल द्वारा अपने प्राण त्याग दिए तो सती की मृत्यु से व्यथित शिव शंकर उनके मृत शरीर को लेकर तांडव नृत्य करते हुए सम्पूर्ण ब्रह्मांड में भटकते रहे। सृष्टि को बचाने के लिए भगवान विष्णु ने चक्र से सती के मृत शरीर के टुकड़े कर दिए। कहा जाता है़ कि देवी सती के शरीर के टुकड़े इस धरती पर जहां कहीं भी गिरे, वहां मां का शक्ति पीठ स्थापित हो गया। ऐसा कहा जाता है कि पावागढ़ धाम आज जहां स्थित है, वहां देवी सती के पांव का अंगूठा कटकर गिरा था। इसलिए, इस मंदिर को पावागढ़ मंदिर के नाम से जाना जाता है।

पावागढ़ का पौराणिक और ऐतिहासिक महत्व भी है। यह मंदिर श्रीराम के समय का है। तब इसको शत्रुंजय मंदिर' कहा जाता था। यह भी माना जाता हैं कि मां काली की मूर्ति यहां विश्वामित्र ने स्थापित की थी। यहां बहने वाली नदी का नाम उन्हीं के नाम पर ‘विश्वामित्री’ पड़ा।

इतिहास के पन्नों में पावागढ़ का नाम महान संगीतज्ञ तानसेन के समकालीन संगीतकार बैजू बावरा के संदर्भ में आता है। बैजू जैसे महान संगीतकार का जन्म इसी पवित्र भूमि में हुआ था। नवरात्र के दौरान इस मंदिर का महत्व बढ़ जाता है। इन दिनों अधिक से अधिक लोग यहां पहुंचकर इस सिद्धपीठ में माता के दर्शन करते हैं।

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने इसे संरक्षित क्षेत्र घोषित कर रखा है। गुजरात सरकार ने पावागढ़ को इसकी प्राकृतिक सुंदरता और साफ-सुथरे वातावरण के चलते एक पहाड़ी रिसॉर्ट के तौर पर विकसित किया है। पंचमहल जिले का द्वार कहे जाने वाले पावागढ़ में मुख्य रूप से आदिवासी और पिछड़े वर्गों के लोग रहते हैं।

पावागढ़ के निकट स्थित हलोल और कलोल जिले औद्योगिक शहर बनकर उभरे हैं। पहाड़ी क्षेत्र होने के नाते यह बेहतरीन पर्यटन स्थल तथा लोकेशन उपलब्ध कराता है। इसके चलते हलोल में एक फिल्म स्टूडियो भी स्थापित किया गया है। पूर्वी छोर पर रंगपुर आश्रम स्थित है। यह आश्रम आदिवासी समाज के कल्याण के लिए काम करता है।

प्रसिद्ध यूनानी भूगोलशास्त्री तोलेमी ने इस मंदिर को प्राचीन और पवित्र बताया था। तोलेमी ने साल 140 में भारत की यात्रा की थी। विक्रम संवत 1540 में मुस्लिम सुल्तान मोहम्मद बेगदो ने इस मंदिर पर हमला किया था। उसने मंदिर को तोड़कर हिंदुओं की आस्था को कमजोर और अपवित्र करने के लिए मंदिर के ऊपर दरगाह बनवा दी। इसके बाद अगले 500 साल तक मंदिर पर पताका नहीं दिखी। वजह यह थी कि मंदिर का शिखर खंडित था। हिंदू धार्मिक रीति-रिवाज के अनुसार खंडित शिखर पर पताका नहीं फहराई जाती।

साल 2017 में मंदिर को नए रूप में बदलने का काम शुरू हुआ। दरगाह का प्रबंधन करने वाली टीम से बात शुरू हुई और आखिरकार उसे शिफ्ट करने पर सहमति बन गई। करीब 125 करोड़ रुपये के खर्च के साथ महाकाली मंदिर के परिसर को अब भव्य स्वरूप प्रदान किया गया है।

किसी असाध्य रोग से पीड़ित भक्त पावागढ़ देवी के धाम में आरोग्यता का वरदान पाने के आने के लिए आते हैं। कहते हैं कि भक्त जैसे-जैसे इस मंदिर की सीढ़ी चढ़ते हैं, वैसे-वैसे वे अपना दुख, दारिद्र्य और रोगों को पीछे धकेलते जाते हैं। इसलिए, वर्षभर यहां भक्तों का तांता लगा रहता है़। चैत्र नवरात्रि और अश्विनी नवरात्रि के दौरान यहां घूमने का सबसे अच्छा समय है। यहां चैत्र माह के आठवें दिन एक बड़े मेले का आयोजन किया जाता है। भक्त यहां अपनी इच्छा अनुसार नवचंडी यज्ञ अन्य कर्म जैसे अनुष्ठान करते हैं। ठहरने के लिए होटल, गेस्ट हाउस, धर्मशाला वरेस्टोरेंट जैसी पर्याप्त सुविधाएं यहां उपलब्ध हैं।

वडोदरा में प्रमुख रेलवे जंक्शन पावागढ़ से सिर्फ 55 किमी की दूरी पर है। वडोदरा के लिए भारत के सभी क्षेत्रों के लिए ट्रेन मिल सकती है। यहां से 52 किमी की दूरी पर वडोदर हवाई अड्डा है और 145 किमी की दूरी पर अहमदाबाद हवाई अड्डा है। यहां से आप कार द्वारा मंदिर पहुंच सकते हैं। यह स्थान चंपानेर से 20 किमी, हलोल से 13 किमी, वडोदरा से 45 किमी, अहमदाबाद से 140 किमी वकेवड़िया कालोनी से 88 किमी की दूरी पर स्थित है।

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