भारत को 2014 में पोलियो मुक्त होने का दर्जा मिलना वैश्विक सार्वजनिक स्वास्थ्य की सबसे महत्वपूर्ण सफलताओं में से एक है। पोलियो उन्मूलन कोई एक दिन की सफलता नहीं, बल्कि दशकों के समर्पित प्रयासों का परिणाम है, जिसका आरंभ वैश्विक पोलियो उन्मूलन पहल से भारत के जुड़ने और सार्वभौमिक टीकाकरण कार्यक्रम के तहत राष्ट्रीय टीकाकरण प्रयासों से पूरा हुआ।
नए टीके के एकीकरण, नई निगरानी प्रणालियों और सरकार के नेतृत्व वाले टीकाकरण अभियानों ने भारत को पोलियो मुक्त बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। यह उपलब्धि भारत सरकार के अथक प्रयासों और प्रमुख वैश्विक संगठनों के साथ साझेदारी से संभव हुई, जिनमें यूनिसेफ, विश्व स्वास्थ्य संगठन, बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन, रोटरी इंटरनेशनल और रोग नियंत्रण एवं रोकथाम केंद्र शामिल हैं।
Read in English: Polio-free India, A story of determination and innovation...
भारत के टीकाकरण का आरंभ 1978 में हुआ, जब व्यापक टीकाकरण कार्यक्रम शुरू किया गया। इसका उद्देश्य बच्चों को विभिन्न बीमारियों से बचाने के लिए टीके लगाना था। 1985 में इस कार्यक्रम को सार्वभौमिक टीकाकरण कार्यक्रम नाम दिया गया, जिसे शहरी क्षेत्रों से ग्रामीण क्षेत्रों तक विस्तारित किया गया। बदलते समय के साथ, यूआईपी कई राष्ट्रीय स्वास्थ्य पहल का अभिन्न अंग बन गया, जिसमें ग्रामीण आबादी के स्वास्थ्य की बेहतरी के लिए 2005 में आरंभ राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन भी शामिल है।
यूआईपी आज विश्व के सबसे बड़े सार्वजनिक स्वास्थ्य कार्यक्रमों में से एक है, जिसमें सालाना 2.67 करोड़ से अधिक नवजात शिशुओं और 2.9 करोड़ गर्भवती महिलाओं की स्वास्थ्य देखभाल होती है, और टीकाकरण से निवारणीय 12 बीमारियों के लिए नि:शुल्क टीके लगाए जाते हैं। यूआईपी के तहत लक्षित बीमारियों में पोलियो को सबसे पहले रखा गया था, और अब इसका उन्मूलन सार्वजनिक स्वास्थ्य की एक महत्वपूर्ण उपलब्धि बन गई है।
साल 1995 में पल्स पोलियो टीकाकरण कार्यक्रम के आरंभ के साथ ही पोलियो उन्मूलन की दिशा में भारत ने महत्वपूर्ण कदम बढ़ा दिया था। 1994 में 2 अक्टूबर को गांधी जयंती पर दिल्ली में बड़े पैमाने पर पहला टीकाकरण अभियान चलाया गया, जो राष्ट्रीय पल्स पोलियो अभियान का अग्रिम चरण था। इस अभियान में ओरल पोलियो वैक्सीन इस्तेमाल किया गया। इसके अन्तर्गत 10 लाख से अधिक बच्चों तक इसकी खुराक पहुंचाई गई और सुनिश्चित किया गया कि पांच वर्ष से कम आयु के प्रत्येक बच्चे को इसकी खुराक पिलाई जाए। बाद में यही सफलता पूरे देश में दोहराई गई। ‘दो बूंद जिंदगी की’ के नारे के साथ यह अभियान पोलियो उन्मूलन की दिशा में भारत के प्रयासों का पर्याय बन गया।
पल्स पोलियो अभियान सामूहिक टीकाकरण के लिए आवश्यक था। भारत ने इसके साथ ही सार्वभौमिक टीकाकरण कार्यक्रम के तहत अपने नियमित टीकाकरण प्रयासों को भी सुदृढ़ बनाया। यूआईपी के अंतर्गत पोलियो, डिप्थीरिया, काली खांसी, टेटनस, खसरा व हेपेटाइटिस बी की रोकथाम और तपेदिक के नि:शुल्क टीके प्रदान कर, सुनिश्चित किया गया कि राष्ट्रीय टीकाकरण कार्यक्रम के अंतर्गत बच्चों को ये टीके लगाए जाएं। भारत का लक्ष्य इन निरंतर प्रयासों से प्रतिरक्षा का उच्च स्तर बनाए रखना और टीके से नियंत्रित की जा सकने वाली बीमारियों को फिर से उभरने से रोकना था।
भारत ने शीत भंडारण प्रबंधन में भी महत्वपूर्ण प्रगति की है, जिससे टीकों को सही तापमान पर संग्रहीत और परिवहन करना सुनिश्चित हुआ है। राष्ट्रीय कोल्ड चेन प्रशिक्षण केंद्र और इलेक्ट्रॉनिक वैक्सीन इंटेलिजेंस नेटवर्क स्थापित किए जाने से वैक्सीन भंडारण और वितरण व्यवस्था बेहतर तरीके से अंजाम देने में मदद मिली।
वैश्विक पोलियो उन्मूलन रणनीति के अनुरूप, भारत ने पोलियो उन्मूलन की अपनी प्रतिबद्धता के तहत 2015 में निष्क्रिय पोलियो वैक्सीन देना आरंभ किया। आईपीवी पोलियो के विरुद्ध अतिरिक्त सुरक्षा प्रदान करता है, खासतौर पर टाइप 2 पोलियो वायरस से निपटने में यह काफी कारगर रहा है। पहले धीरे-धीरे छह राज्यों में आरंभ किए जाने के बाद इसे वर्ष 2016 तक पूरे देश में विस्तारित कर दिया गया। वैश्विक स्तर पर ट्राइवेलेंट ओपीवी से बाइवेलेंट ओपीवी में बदलाव के बाद यह परिवर्तन आवश्यक हो गया था जिसमें टाइप 2 स्ट्रेन शामिल नहीं था। आईपीवी ने इसमें निरंतर सुरक्षा सुनिश्चित की।
भारत की पोलियो उन्मूलन सफलता काफी हद तक कठोर निगरानी प्रणालियों के कारण संभव हुई, जिसमें एक्यूट फ्लेसीड पैरालिसिस निगरानी और आसपास के माहौल की निगरानी शामिल रही है। निगरानी से भारत को किसी भी पोलियो प्रसार का प्रकोप तुरंत पता लगाने और इससे निपटने के उपायों में मदद मिली।
भारत में पोलियो उन्मूलन की सफलता का एक मुख्य कारण केंद्र और राज्य सरकारों की दृढ़ राजनीतिक इच्छाशक्ति रही। सभी स्तरों पर राजनीतिक नेताओं ने निरंतर समर्थन दिया और यह सुनिश्चित किया कि इसके लिए संसाधन आवंटित हो और इस कार्यक्रम पर आवश्यक ध्यान दिया जाए।
इसके अलावा, सामुदायिक सहभागिता की भी पोलियो उन्मूलन में महत्वपूर्ण भूमिका रही। स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं, स्वयंसेवकों और स्थानीय नेताओं ने इसके उन्मूलन के लिए जागरूकता बढ़ाने में मदद की। उन्होंने टीकाकरण के महत्व के बारे में लोगों को बताया और सुनिश्चित किया कि सबसे दूरदराज के क्षेत्रों में भी बच्चों को टीका लगाया जाए। पल्स पोलियो अभियान घर-घर जाकर टीकाकरण प्रयासों पर बहुत निर्भर था और इसी से दुर्गम क्षेत्रों में बच्चों तक पहुंचा जा सका।
साल 2011 में, भारत में पोलियो वायरस का अनियंत्रित अंतिम मामला पश्चिम बंगाल के हावड़ा में पाया गया। उसके बाद देश ने अपने निगरानी प्रयासों को और बढ़ा दिया और रोकथाम के उपायों के बाद अनियंत्रित पोलियो वायरस का कोई और मामला सामने नहीं आया।
भारत को पोलियो मुक्त प्रमाणन के लिए उसे विश्व स्वास्थ्य संगठन के कड़े मानदंडों को पूरा करना पड़ा। इनमें तीन साल तक अनियंत्रित पोलियो वायरस संक्रमण न फैलना, मजबूत निगरानी प्रणाली और वायरस के किसी बचे अंश को समाप्त करना शामिल था। इस कठोर प्रमाणन प्रक्रिया में क्षेत्रीय पोलियो प्रमाणन आयोग द्वारा व्यापक जांच और मूल्यांकन शामिल था।
27 मार्च 2014 को भारत को आधिकारिक तौर पर पोलियो मुक्त घोषित किया गया। यह देश में ही नहीं बल्कि वैश्विक स्तर पर सफल सार्वजनिक स्वास्थ्य पहल का उदाहरण है।
पोलियो मुक्त घोषित होने के बाद भी भारत इस स्थिति को बनाए रखने के कई निवारक उपाय कर रहा है। भारत उच्चतम प्रतिरक्षण स्तर बनाए रखने और इससे किसी बच्चे के न छूटने के लिए प्रतिवर्ष राष्ट्रीय टीकाकरण दिवस और उप-राष्ट्रीय टीकाकरण दिवस का आयोजन करता है।
एएफपी और पर्यावरण निगरानी के माध्यम से निरंतर निगरानी के साथ ही अंतरराष्ट्रीय सीमाओं पर टीकाकरण कर स्थानिक क्षेत्रों से पोलियो के फिर से पहुंचने का जोखिम कम करने का अभियान जारी है।
आईपीवी के अतिरिक्त, भारत ने टीकाकरण कार्यक्रम के अंतर्गत कई नए टीके लगाने शुरू किए हैं, जिनमें रोटावायरस, न्यूमोकोकल, कंजुगेट वैक्सीन और मीजल्स-रूबेला वैक्सीन शामिल हैं। ये अन्य टीका-निवारक रोगों की रोकथाम के व्यापक प्रयासों का हिस्सा हैं।
साल 2014 में आरंभ किए गए मिशन इंद्रधनुष का लक्ष्य टीकाकरण को 90 प्रतिशत तक विस्तारित करना है। इसमें अल्प टीकाकरण दर वाले दुर्गम क्षेत्रों पर विशेष ध्यान केंद्रित किया गया है। व्यापक मिशन इंद्रधनुष चरण में टीकाकरण की पहुंच में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है और बाल स्वास्थ्य के प्रति भारत की प्रतिबद्धता और सुदृढ़ हुई है।
पोलियो मुक्त भारत की यात्रा दृढ़ संकल्प, सहयोग और नवाचार की उल्लेखनीय गाथा है। देश की यह उपलब्धि सामूहिक टीकाकरण अभियान, मजबूत राजनीतिक इच्छा शक्ति, प्रभावी निगरानी प्रणाली और सामुदायिक प्रयासों का परिणाम रहा है। निरंतर सतर्कता बरतने और सतत टीकाकरण प्रयासों से भारत पल्स पोलियो मुक्त स्थिति बनाए रखने और पोलियो को हमेशा के लिए समाप्त करने के वैश्विक लक्ष्य में योगदान के लिए प्रतिबद्ध है।
भारत के पल्स पोलियो कार्यक्रम और सार्वभौमिक टीकाकरण कार्यक्रम की सफलता अन्य देशों के लिए प्रेरणा का स्रोत बन गया है। यह प्रभावी व्यवस्था, सुदृढ़ नीति और सामुदायिक भागीदारी के समर्थन से सार्वजनिक स्वास्थ्य पहल की परिवर्तनकारी शक्ति को दर्शाता है।
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