कल्पना कीजिए, यदि भारत ने परिवार नियोजन कार्यक्रम न अपनाया होता तो आज आबादी 250 से 300 करोड़ के बीच होती। ऐसे में भूमि, जल और खाद्य संसाधनों पर भयानक दबाव पड़ता। पहले से ही सीमित कृषि क्षेत्र का विस्तार असंभव है, जबकि जल संसाधनों के 2030 तक 50 फीसदी घटने का अनुमान है। ऐसी परिस्थिति में भूख, पलायन और अराजकता का साम्राज्य होता।
हमारे समाज में एक पुरानी प्रवृत्ति रही है। जब भी देश को किसी चुनौती का सामना करना पड़ा, दोष ‘जनसंख्या विस्फोट’ पर मढ़ दिया गया। लेकिन, अब वक्त है इस मानसिकता को बदलने का। अगर बढ़ती जनसंख्या को प्रशिक्षित, शिक्षित और जिम्मेदार बनाया जाए तो यह न शाप है, न बोझ, बल्कि एक समृद्धि का अवसर है। भारत ने परिवार नियोजन के जरिये इसी दिशा में वह ऐतिहासिक कदम उठाया, जिसने आज हमें स्थिरता और संतुलन की राह पर ला खड़ा किया है।
Read in English: Balanced population growth accelerated national development
आज भारत के पास दुनिया में सबसे बड़ी 146 करोड़ से अधिक की जनसंख्या है। लेकिन, यह संख्या डराने की नहीं बल्कि संभालने की है। यह वही जनशक्ति है, जिसने भारत को डिजिटल मॉडल, आईटी सेवा, अंतरिक्ष मिशन और आर्थिक प्रगति के रास्ते पर अग्रणी बनाया है। आज़ादी के बाद योजनाओं की दिशा-भ्रमित शुरुआत के बावजूद, परिवार नियोजन कार्यक्रम भारत के लिए सामाजिक सुधार की सबसे बड़ी सफलता बनकर उभरा है।
साल 1952 में भारत ने विश्व का पहला परिवार नियोजन कार्यक्रम शुरू किया। यह उस समय की एक साहसिक और ऐतिहासिक पहल थी, जब अधिकांश देशों में इस विषय पर बात तक करना वर्जित माना जाता था। पंचवर्षीय योजनाओं में इस कार्यक्रम को शामिल कर सरकार ने जनता को यह संदेश दिया कि सशक्त परिवार ही सशक्त राष्ट्र की नींव है। प्रारंभिक वर्षों में इसका उद्देश्य जन-जागरूकता और स्वास्थ्य सेवाओं के विस्तार पर केंद्रित था।
1960 के दशक में ‘हम दो, हमारे दो’ का नारा पूरे देश में गूंजा। इससे सामाजिक सोच बदली और लोगों में यह समझ बनी कि सीमित परिवार से ही जीवन की गुणवत्ता और अवसरों में सुधार संभव है। 1970 के दशक के जबरन नसबंदी अभियानों की गलतियों से भी भारत ने सबक सीखा। 1994 के काहिरा सम्मेलन के बाद नीति का स्वरूप बदला। अब ‘संख्या नियंत्रण’ नहीं, बल्कि ‘स्वैच्छिक परिवार कल्याण’ इसकी आत्मा बना। मातृ-स्वास्थ्य, शिक्षा और महिला अधिकारों को राष्ट्रीय नीति का मूल आधार बनाया गया।
आज राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के अंतर्गत करोड़ों परिवारों को आधुनिक गर्भनिरोधक साधन, कंडोम और इंजेक्टेबल उपलब्ध कराए जा रहे हैं। आधुनिक डिजिटल टूल और मोबाइल हेल्थ ऐप ने इन सेवाओं को सीधा घर-घर तक पहुंचाने का कार्य किया है।
परिवार नियोजन भारतीय समाज में गहरा बदलाव लाया है। जनसंख्या वृद्धि दर अब 0.89 फीसदी रह गई है, जबकि 1970 के दशक में यह 2.3 फीसदी थी। एक समय हर महिला औसतन 5.7 बच्चों को जन्म देती थी, जबकि 2025 में यह दर घटकर 1.9 रह गई है, जो ‘रिप्लेसमेंट लेवल’ 2.1 से भी कम है।
इन आंकड़ों का असर हर स्तर पर दिखता है। शिशु मृत्यु दर 1951 में 146 प्रति हजार थी, जो अब मात्र 27 रह गई है। जीवन प्रत्याशा 32 वर्ष से बढ़कर 71 वर्ष हो गई है। महिला साक्षरता में पिछले दो दशकों में लगभग 25 फीसदी की वृद्धि हुई है। छोटे परिवारों के चलते पोषण, शिक्षा और आवास की स्थिति में व्यापक सुधार आया है।
इन सारी स्वास्थ्य सेवाओं के विकेंद्रीकरण के पीछे हमारी एक्सटेंशन सर्विस, आंगनवाड़ी और आशा की स्वयंसेवकों की कठिन और निरंतर परिश्रम की दास्तां है। उनके योगदान की प्रशंसा होनी चाहिए।
यह भी उल्लेखनीय है कि भारत के शहरी क्षेत्रों में कुल प्रजनन दर 1.6 है, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में 2.2, यानी, शिक्षित और जागरूक समाज स्वाभाविक रूप से छोटा परिवार चुन रहा है।
अर्थशास्त्रियों के आकलन के अनुसार, घटती प्रजनन दर से भारत को 1991 से 2061 के बीच लगभग 7.4 ट्रिलियन डॉलर का आर्थिक लाभ होगा। इसका कारण यह है कि कम बच्चे होने से परिवारों में बचत बढ़ती है, महिलाओं की भागीदारी श्रम बाज़ार में बढ़ती है और निवेश की दिशा शिक्षा व स्वास्थ्य की ओर जाती है।
टिप्पणीकार प्रो. पारस नाथ चौधरी कहते हैं, "भारत की 65 फीसदी आबादी 35 वर्ष से कम उम्र की है, और औसत आयु मात्र 28 वर्ष। यही युवा वर्ग हमारे ‘डेमोग्राफिक डिविडेंड’ का मूल है। परिवार नियोजन की सफलता ने भारत को एक ऐसी स्थिति में ला खड़ा किया है जहां यह युवा वर्ग सही शिक्षा और अवसर पाकर न केवल घरेलू अर्थव्यवस्था, बल्कि वैश्विक बाजार का भी इंजन बन सकता है।"
विदेशों में काम करने वाले भारतीयों ने 2022 में 111 अरब डॉलर की रेमिटेंस भारत भेजी, जो हमारे जीडीपी का लगभग तीन फीसदी है। यह दर्शाता है कि संतुलित जनसंख्या, सशक्त परिवार और शिक्षा का क्या प्रभाव होता है।
समाज सेविका विद्या कहती हैं कि भारत ने ‘नियंत्रण’ की नीति से विकास की नीति की ओर कदम बढ़ा दिया है। अब लक्ष्य है कि हर नागरिक, खासकर महिलाओं, को परिवार नियोजन की जानकारी और साधन तक समान पहुंच मिले। अभी भी लगभग 9.4 फीसदी महिलाओं को गर्भनिरोधक सेवाओं की आवश्यकता है, जिसे पूरा करना नीति की प्राथमिक जिम्मेदारी है।
सामाजिक कार्यकर्ता पद्मिनी अय्यर के मुताबिक, "परिवार नियोजन अब केवल एक स्वास्थ्य कार्यक्रम नहीं, बल्कि एक सामाजिक आंदोलन बन चुका है, जो व्यक्ति से लेकर राष्ट्र तक हर स्तर पर परिवर्तन का कारक है। यह हमें उस रास्ते पर आगे बढ़ाता है जहां हर परिवार खुशहाल, हर बच्चा शिक्षित और हर नागरिक स्वस्थ हो।"
भारत ने यह साबित किया है कि कम बच्चे, खुशहाल परिवार केवल एक नारा नहीं, बल्कि समृद्धि का सूत्र है। परिवार नियोजन ने हमें सिखाया है कि टिकाऊ विकास केवल संसाधनों से नहीं, बल्कि सजग नागरिकता और संतुलित जनसंख्या से संभव है।
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