पितृ पक्ष आश्विन माह में कृष्ण प्रतिपदा से अमावस्या तक होता है। इन 15 दिनों में लोग अपने पितरों यानी पूर्वजों को जल देते हैं तथा उनकी मृत्यु तिथि पर श्राद्ध करते हैं। इस दौरान, वृन्दावन के प्रमुख मंदिरों में सांझी कला को आकर्षक रूप से प्रस्तुत करने की परम्परा निभाई जाती है।
इस अवसर पर मंदिरों में फूल, रंग तथा पानी के ऊपर व नीचे कलात्मक सांझियां तैयार की जाती हैं। वृंदावन के राधाबल्लभ मंदिर, भट्टजी की हवेली, राधारमण, गोपीनाथजी (वल्लभ कुल) मंदिर, शाहजहांपुर वाले मंदिर, प्रियाबल्लभ कुंज व यशोदानंदन मंदिर आदि मंदिरों में सांझी मनोरथ की पुरानी परम्परा है जिसे आज की युवा पीढ़ी भी निभाती चली आ रही है।
सांझी शब्द ‘सांझ’ से बना है। सांझ माने शाम का समय अथवा संध्या जो ब्रज में प्रचलित है। संध्या माने संधिकाल-शाम और रात के बीच का समय। श्यामसुन्दर अपने ग्वालबालों के साथ नित्यप्रति प्रातः काल गौ चराने जाते हैं और संध्या के समय वापस लौटते हैं। इसलिए, संध्या का यह समय दिव्य है। सखाओं के साथ कृष्ण-बलराम और गौओं के चरणों का स्पर्श प्राप्त कर ब्रज रज भी फूली नहीं समाती और आकाश में उड़ने लगती है। इसलिए, इस सन्ध्या समय को ‘‘गोधूलि बेला’’ का नाम भी दिया गया है। इसी समय इस कला का चित्रण किए जाने से इसका नाम ‘सांझी’ पड़ा।
सांझी एक अद्भुत लोक कला है। अनेक रंगों के माध्यम से विभिन्न ज्यामितीय आकृतियों में सुसज्जित श्रीकृष्ण लीला के मनमोहक दृश्य ब्रज की एक अनूठी कला जिसके दर्शन कर श्रीकृष्ण लीला की स्मृति हो जाती है। अष्टकोणीय आकृति होने से ब्रज के रसिक-संतों ने तो इसे ‘‘वैष्णव-यंत्र’’ तक कह डाला।
मंदिरों में आयोजित सांझी मनोरथ के अंतर्गत प्रभु सेवा क्रम में क्रमशः फूलों से बनी सांझी, रंगों की सांझी तथा पानी के ऊपर और नीचे सांझी के अंकन आकर्षण का केंद्र होते हैं। रंगों की सांझी तैयार करने के दौरान सूखे रंगों को, छोटे सूती कपड़े की पोटलियों द्वारा उंगलियों के संचालन से रंग छानते हुए कलात्मक बेल बूटे तैयार करते हैं।
इसी क्रम में, फूलों से बनने वाली कलात्मक सांझियां भी मानव मन को सहज ही मोहित करतीं हैं। सांझी सेवा के दौरान आरम्भ में पुष्प सांझी ही भगवान को निवेदित की जाती है।
सोलहवीं सदी में भक्ति आंदोलन के काल में इस कला की व्यापक प्रगति हुई थी। तब भारत के विभिन्न क्षेत्रों से भिन्न-भिन्न कलाओं में निपुण कलाप्रेमी ब्रज में एकत्र होते थे। कृष्ण के प्रेम एवं भक्ति के परमानन्द में सराबोर भक्तों का यह प्रमुख केंद्र बन गया था। कृष्ण के प्रति भक्तों का स्नेह अपनी चरम सीमा में होता था।
वैष्णव मन्दिर आज भी सांझी कला को जीवित रखे हुए हैं। किसी विशेष अवसर पर, ठाकुरजी की शोभायात्रा के अवसर पर या देवस्थान के मुख्य द्वार पर। तब से यह कला समूचे भारतवर्ष में अपना विशेष महत्व रखती है। इसे आज रंगोली के नाम से भी जाना जाता है। दक्षिण भारत में तथा महाराष्ट्र में रंगोली सजाने की परम्परा है प्रत्येक दिन घर के दरवाजे पर रंगोली सजाई जाती है, इसकी अनेकों विधाएं हैं, किन्तु ब्रज में इस कला को श्रीकृष्णलीला से सम्बन्ध रखने के कारण विशेष दिव्यता को प्राप्त है।
ऐसी मान्यता है कि प्रथम सांझी श्रीराधारानी ने गोपियों के संग बनाई थी। जब श्रीकृष्ण गौचारण करके लौटते थे तो गोधूलि बेला में राधारानी गोपिकाओं के साथ मार्ग को विभिन्न प्रकार के पुष्पों से सजा देतीं थीं। इसे देख श्रीकृष्ण तथा ग्वालों की मण्डली आनंदित होती थीं। आज भी मंदिरों में इस परम्परा का निर्वहन किया जाता है। चूंकि, यह राधा द्वारा निर्मित कला की प्रतिकृति है इसलिए इस सांझी को देवस्वरूप मानकर ब्रज में इसकी पूजा की जाती है।
मंदिरों की गायन शैली में सांझी की परंपरा केवल कलात्मक सौन्दर्य ही नहीं है, इस परम्परा से जुड़ीं पदावलियों का गायन इसके महत्व को और अधिक बढ़ाता है। राधाबल्लभ सम्प्रदाय में उपासना परम्परा के अनुसार सांझी के दौरान लीलाओं का अंकन होता है, वहीं समाज गायन के अन्तर्गत सांयकाल विभिन्न गायकों द्वारा रचित पदावलियां गायी जाती हैं।
सांझी लोक अनुष्ठान के रूप में प्रचलित ब्रज का एक अदभुत शिल्प है। इसे विधि-विधान पूर्वक मनाया जाता है। वस्तुतः सांझी कला में चित्रांकन, गायन और पूजा-विधान का समन्वय देखने को मिलता है। भक्ति साहित्य और वाणियों में सांझी के पद व लोक साहित्य में सांझी के गीत प्राप्त होते हैं। देवालयों में सांझी के पदों का गायन किया जाता है। गांवों में बालिकाएं ‘संझा माई’ के गीत गाकर उनकी पूजा करती हैं। चित्रकला की दृष्टि से सांझी में कलाकारों की कल्पनाशीलता और रंगों का संयोजन, प्रकृति चित्रण आदि का अनूठा संयोजन देखने को मिलता है। सांझी के व्रत आदि की कथा इसके पूजा विधान को दर्शाती है।
इस बार पितृ पक्ष 29 सितंबर से शुरू होकर 14 अक्टूबर को पूर्ण होंगे। अत: इस बार इन्हीं दिनों में वृंदावन के मंदिरों में सांझी का आयोजन किया जाएगा।
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