भारत के लिए कितना बड़ा संकट है बांग्लादेश में तख्तापलट...!

बांग्लादेश के संस्थापक शेख मुजीबुर्रहमान की बेटी शेख हसीना साल 2009 में वहां की प्रधानमंत्री बन गईं। यद्यपि शुरुआती समय में जनता ने उन्हें अपना भरपूर समर्थन दिया, लेकिन, धीरे-धीरे जनता के एक बड़े वर्ग का मोह उनसे टूटने लगा।

एक लोकप्रिय नेता होने के बजाय हसीना पर एक तानाशाह नेता होने के आरोप लगने लगे। बीते साल चुनावों में हुई जीत के बाद वहां के कई हल्कों द्वारा उन पर हेराफेरी के आरोप लगाए गए। इसके बाद, न्यायालय के आरक्षण संबंधी एक फैसले ने आग में घी का काम कर दिया।

आंदोलन को रोकने के लिए शेख हसीना ने कई बड़े विपक्षी नेताओं को जेलों में पहुंचा दिया और उनके ऊपर कठोर कार्रवाइयां भी हुईं। इससे पहले, हसीना पर विपक्ष के नेताओं को चुनावी प्रक्रिया में भाग लेने से वंचित करने के आरोप भी लगे। देश के एक बड़े धड़े ने उन पर व्यापक भ्रष्टाचार और चुनाव आयोग व अन्य केन्द्रीय संस्थाओं के साथ सांठ-गांठ करके संसद में बहुमत प्राप्त करने का बेहद संगीन आरोप भी लगाया।

प्रधानमंत्री शेख हसीना अपने प्रति धधक रही विरोध की तपिश को समय रहते समझने में असमर्थ रहीं। जब वहां के युवाओं के उबाल को वहां की सेना और सुरक्षाबल सम्भालने में नाकाम हो गए तो हसीना को देश छोड़ने का फैसला करना पड़ा और अंतत: देश की सेना उन्हें सुरक्षा देते हुए भारत पहुंचा दिया।

माना जाता है कि शेख हसीना की पार्टी आवामी लीग को वहां के हिन्दुओं का समर्थन है। इसी कारण उपद्रवियों ने हिन्दू प्रतिष्ठानों और मंदिरों पर हमला करके उन्हें क्षति पहुंचाई। परिणामस्वरूप, बांग्लादेश में हिन्दुओं का व्यापार ठप पड़ गया है। हालांकि, वहां अब अंतरिम सरकार का गठन हो गया है और नोबेल पुरस्कार से सम्मानित मोहम्मद युनुस ने देश की जिम्मेदारी संभाल ली है। लेकिन, पूरा देश इस समय आग में धधक रहा है। दैनिक जीवन और औद्योगिक प्रक्रियाएं पूरी तरह ठप पड़ी हैं। मौजूदा अंतरिम सरकार कैसे इन परिस्थितियों पर काबू कर पाएगी, यह अभी भविष्य के गर्त में निहित है।

दूसरी ओर, बीते एक पखवाड़े से शेख हसीना भारत में हैं। बांग्लादेश में सत्ता परिवर्तन होने से भारत के लिए एक विषम स्थिति उत्पन्न हो गई है। भारत के सभी पड़ोसी देशों की स्थिति का आंकलन किया जाए तो श्रीलंका में चीन का हस्तक्षेप अब कोई छुपा हुआ नहीं है। पाकिस्तान की नीति हमेशा भारत विरोधी रही ही है। अफगानिस्तान में भी बीते कुछ समय के दौरान चीन का प्रभाव बढ़ा है। नेपाल की वर्तमान ओली सरकार भी चीन की समर्थक है। म्यांमार में भी चीन ने अपना पूरा प्रभुत्व स्थापित कर लिया है। कहने का तात्पर्य यह है कि मौजूदा वक्त में भारत चहुँओर शत्रुओं से घिर गया है और इस परिस्थिति का निर्माण भारत के लिए कोई अच्छी खबर नहीं है।

अब भारत के सामने अपनी विदेश नीति पर पुनर्विचार करने की जरूरत आन पड़ी है। अब हमारे देश के नीति-नियंता इस स्थिति को किस प्रकार ले रहे है, यह तो आने वाले दिनों में पता चलेगा। लेकिन, इतना जरूर है कि भारत के लिए फिलहाल इन घटनाक्रमों को नकारना बहुत आसान नहीं है।

(लेखक आईआईएमटी विश्वविद्यालय के कुलाधिपति हैं और यहां व्यक्त विचार उनके स्वयं के हैं)

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