प्रख्यात मनोविज्ञानी सिगमंड फ्रायड एक अवकाश के दिन अपनी पत्नी और बच्चे के साथ एक बगीचे में घूमने गए। लौटते समय देखा तो बच्चा गायब था। दोनों बातों में इतने मशगूल हो गए थे कि उन्हें अपने बच्चे का ध्यान ही न रहा।
बच्चे को न पाकर उनकी पत्नी घबरा गईं, मगर फ्रायड को जैसे कुछ हुआ ही न हो। उनकी पत्नी तनिक रोष में बोली, ''आप खामोश क्यों हैं? देखिए न, बच्चा कहां गया?''
फ्रायड ने उन्हें धीरज बंधाते हुए कहा, ''इतना घबराओ मत, बच्चा मिल जाएगा।''
''क्या बिन खोजे ही?''पत्नी के स्वर में खीज थी।
''हां बिन खोजे ही,'' उसी धैर्य के साथ फ्रायड ने कहा और पूछा, ''क्या तुमने उसे कहीं जाने से मना किया था?
पत्नी थोड़ी देर सोचती रहीं। उन्हें याद आया कि उन्होंने बच्चे को फव्वारे के पास जाने से मना किया था। यह सुनकर फ्रायड बोले, '95 फीसदी उम्मीद है कि बच्चा फव्वारे के पास ही होगा।''... और वाकई बच्चा फव्वारे के पास बैठा हुआ पानी की उठती धार को मंत्रमुग्ध भाव से देखता हुआ मिला।
अब पत्नी को जिज्ञासा हुई कि आखिर फ्रायड को कैसे पता लगा कि बच्चा फव्वारे के ही पास होगा।
मनोविश्लेषक फ्रायड ने इस रहस्य की व्याख्या करते हुए बताया, ''बच्चा वहीं जाएगा, जहां उसे जाने को मना किया जाएगा। इसी तरह उसे जिस काम को मना किया जाएगा, उसे वह जान-बूझकर करेगा।''
फ्रायड ने इस रहस्योद्घाटन के बाद आगे जोड़ा कि मनोविज्ञान का यह सीधा सा नियम बच्चों पर ही नहीं बल्कि समान रूप से बड़ों पर भी लागू होता है।
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