पारंपरिक मीडिया के लिए चुनौती पूर्ण सिरदर्द बना सोशल मीडिया

चाहिए सिर्फ एक मोबाइल फोन विद इंटरनेट कनेक्शन..., जी हां..., और आ गया आपके हाथ में अलादीन का चिराग, या बंदर के हाथ  में उस्तरा...!

यूट्यूब चैनल, मीम्स, फेसबुक पोस्ट, रील, ट्वीट, डेटिंग साइट्स, विविध तरह के ऐप्स और न्यूज़ क्लिप के उदय ने संचार और सूचना प्रसार के परिदृश्य को पूरी तरह से बदल दिया है।

सूचना की दृष्टि से आज आम नागरिक कहीं ज्यादा सशक्त हो गया है। वह खुद अपना निर्माता, रिपोर्टर, प्रकाशक और प्रसारक बन गया है। पीड़ित भी अब पलटवार कर सकते हैं। जनसंचार विशेषज्ञ कहते हैं कि निश्चित रूप से, अब हमारे पास ज़्यादा समान अवसर हैं।

इस किफ़ायती और ज़्यादा आकर्षक तकनीक ने ‘दबंग सत्ताधारी वर्ग’ द्वारा शक्ति के मनमाने इस्तेमाल या दुरुपयोग पर लगाम लगा दी है। यह एक बहुत बड़ा बदलाव है।

सोशल मीडिया कार्यकर्ता पारस नाथ चौधरी कहते हैं कि ऐसे युग में जब ध्यान या एकाग्रता की अवधि घट रही है और सूचना की ज़रूरत तत्काल हो रही है, तब ये प्लेटफ़ॉर्म न केवल लोकप्रिय साबित हो रहे हैं, बल्कि पर्यावरण के अनुकूल, किफ़ायती, त्वरित और प्रासंगिक भी साबित हो रहे हैं। वे वास्तविक समय में संवाद की सुविधा देते हैं, संपर्क बढ़ाते हैं और मुक्त अभिव्यक्ति के लिए शक्तिशाली उपकरण के रूप में काम करते हैं। उपभोक्ता इसे पसंद कर रहे हैं।

मुख्यधारा के अख़बार और पारंपरिक मीडिया आउटलेट अब तरह-तरह के दबावों की गर्मी महसूस कर रहे हैं और प्रासंगिकता के संकट का सामना कर रहे हैं। अधिकांश के पास अपने स्वयं के सोशल मीडिया हैंडल और व्हाट्सएप ग्रुप हैं, जिनकी व्यापक पहुंच है।

सामाजिक कार्यकर्ता पद्मिनी अय्यर कहती हैं कि तथाकथित राष्ट्रीय मीडिया अब सूचना के एकमात्र गेट कीपर होने का दावा नहीं कर सकता है। समाचार के लिए अधिक से अधिक लोग वैकल्पिक मीडिया की ओर रुख कर रहे हैं। पारंपरिक मॉडल - जहां प्रिंट मीडिया विज्ञापन और संपादकीय निर्णयों पर हावी था, अब पुराना हो गया है।

सूचना देने के अपने कर्तव्य को पूरा करने के बजाय, कई समाचार पत्र सिर्फ विज्ञापन के साधन के रूप में काम कर रहे हैं। पत्रकारिता की शुचिता पर सतही लाभ को प्राथमिकता दे रहे हैं। फोकस में यह बदलाव हमारे समाज में मीडिया की भूमिका के बारे में महत्वपूर्ण सवाल उठाता है।

जब समाचार पत्र आपको फैंसी कारों, खूबसूरत कपड़ों, पांचसितारा विला और कीमती हीरों के विज्ञापनों से भर देते हैं, तो सोचें कि लोकप्रिय समाचार पत्रों के कितने पाठक वास्तव में उन विलासिता की वस्तुओं को खरीद सकते हैं, जो उनके पन्नों पर भरी पड़ी हैं? ये विज्ञापन आम नागरिकों के रोजमर्रा के जीवन से मेल नहीं खाते हैं, जो अक्सर उनके सामने प्रस्तुत की जाने वाली सामग्री से दूर महसूस करते हैं।

कई पारंपरिक आउटलेट में सनसनीखेज और पूर्वाग्रह दर्शकों को अलगाववाद की दिशा में धकेलते हैं और अलग-थलग कर देते हैं। इससे सूचना के लिए वैकल्पिक रास्ते तलाशना अनिवार्य हो जाता है, ये कहना है सोशल एक्टिविस्ट मुक्ता गुप्ता का। मुक्ता कहती हैं कि आजकल मीडिया कॉन्फ्रेंसे में इनफ्लुएंसर्स को तबज्ज़ो दी जाने लगी है, क्योंकि डिजिटल मीडिया का प्रभाव व्यापक और तुरत है।

इसके अलावा, सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म उपयोगकर्ताओं को सशक्त बनाते हैं। वे सूचना साझा करने की प्रक्रिया का लोकतंत्रीकरण करते हैं, उन लोगों को आवाज़ देते हैं, जिन्हें पारंपरिक रूप से मुख्यधारा की कहानियों में हाशिए पर रखा गया है या अनदेखा किया गया है।

आज हम सोशल मीडिया की बदौलत छोटे शहरों और ग्रामीण इलाकों से व्यापक कवरेज देखते हैं। सामग्री निर्माण में महिलाओं के प्रतिनिधित्व और भागीदारी ने मीडिया देखने वालों को आश्चर्यचकित कर दिया है। खाने के शौकीनों को खूब मज़ा आ रहा है। प्रभावशाली लोगों और सामग्री निर्माताओं द्वारा सोशल मीडिया पर उत्पादों और सेवाओं की समीक्षा ने मुख्यधारा के मीडिया में राय थोपने या पेड न्यूज मतलब भुगतान किए गए विचारों को बढ़ावा देने, बेअसर करने या किनारे करने में मदद की है। यह ऐसे युग में विशेष रूप से प्रासंगिक है, जहां प्रामाणिकता और पारदर्शिता की सामाजिक मांग पहले से कहीं अधिक है।

व्यक्तियों द्वारा अपनी कहानियां साझा करने की क्षमता एक अधिक समावेशी संवाद को बढ़ावा दे सकती है, जो समाज के विविध अनुभवों को दर्शाता है। हालांकि, यह शक्ति चुनौतियों के साथ आती है, जिसमें गलत सूचना का प्रसार और प्रभाव भी शामिल है। इससे इन प्लेटफ़ॉर्म के ज़िम्मेदार उपयोग को बढ़ावा देने वाले उपायों के लिए कार्रवाई करने का आह्वान आवश्यक हो जाता है।

हमें सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म की न केवल समाचार के स्रोत के रूप में बल्कि डिजिटल अखाड़े या सार्वजनिक चौकों के रूप में वकालत करने की आवश्यकता है, जहां विचारों का स्वतंत्र रूप से आदान-प्रदान किया जा सकता है। इन प्लेटफ़ॉर्म को अधिक मज़बूत तथ्य-जांच प्रक्रियाओं या विश्वसनीय स्रोतों को बढ़ाने के लिए डिज़ाइन किए गए एल्गोरिदम को लागू करके बेहतर बनाया जा सकता है और उनके सकारात्मक पहलुओं को बढ़ाने के लिए विनियमित किया जा सकता है।

इसके अलावा, पारंपरिक मीडिया के व्यवसाय मॉडल को चुनौती देने का समय आ गया है। यदि विज्ञापनदाता समाचार पत्रों और समाचार चैनलों में कथानक को निर्देशित करना जारी रखते हैं, तो उन्हें अपने दृष्टिकोण पर पुनर्विचार करना चाहिए। वह दिन अब दूर नहीं, जब समाचार पत्रों को अपने पाठकों को वित्तीय रूप से प्रोत्साहित करने की आवश्यकता हो सकती है। यह स्वीकार करते हुए कि पाठक पक्षपातपूर्ण सामग्री का उपभोग करने के लिए मुआवजे के हकदार हैं, ठीक उसी तरह जैसे वे गुणवत्तापूर्ण, निष्पक्ष रिपोर्टिंग के हकदार हैं।

मुख्यधारा का मीडिया अब सोशल मीडिया से प्रतिस्पर्धा नहीं कर रहा है, बल्कि तालमेल बैठा रहा है और पार्टनरशिप कर रहा है। अधिक सूचित समाज की हमारी खोज में सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म की वकालत करना आवश्यक है। वे जुड़ाव के लिए एक रास्ता प्रदान करते हैं, वास्तविक समय के मुद्दों को संबोधित करते हैं, और मुख्यधारा के मीडिया में अनसुनी आवाज़ों को एक आवाज देता है।

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