नाला बन गई है यमुना, पानी हुआ जहरीला...!

 

बीस लाख से अधिक लोगों का शहर आगरा सरकारी लापरवाही और गलत प्राथमिकताओं का जीता-जागता सबूत और असफलता की बेहतरीन मिसाल है।

करीब 135 किलोमीटर लंबी गंगाजल पाइपलाइन से हालिया संकट कुछ हद तक नियंत्रित हुआ है, मगर शहर की जीवनदायिनी, पावन यमुना नदी का गला घोंटकर, आगरा के पर्यावरण को तबाह कर दिया गया है। नदी किनारे खड़ी बेहतरीन  मुगलकालीन इमारतें अब पर्यावरणीय खतरे में हैं।

देवी मां के रूप में पूजी जाने वाली यमुना आज एक नाला बन गई है। इसका पानी ज़हरीला हो गया है, और इसकी सहायक नदियां, उठनगन, खारी, पार्वती, कार्बन आदि, लगभग ख़त्म हो चुकी हैं। ताज महल की छांव में, शहर का जल संकट पारिस्थितिकी की अनदेखी और शहरी बदइंतजामी की एक भयावह तस्वीर पेश करता है।

पर्यावरणविद डॉ. देवाशीष भट्टाचार्य के अनुसार, "यमुना नदी की दुर्दशा तंत्र के नाकाम होने की कहानी है। ऊपर की ओर, ओखला बैराज इसके प्रवाह का अधिकांश हिस्सा दूसरी ओर मोड़ देता है, जिससे आगरा में एक कंकाल जैसी धारा रह जाती है। नीचे की ओर, नदी एक ज़हरीले कूड़ेदान में बदल जाती है, जो दिल्ली और हरियाणा से आने वाले अनुपचारित सीवेज और औद्योगिक कचरे से भरी हुई है। घाटों पर रसायनयुक्त झाग तैर रहे हैं, और इसकी सतह पर मरी हुई मछलियां दिखती हैं, जो पारिस्थितिकी तंत्र के पतन की एक कठोर याद दिलाती हैं। नदी की सहायक नदियां, जो कभी महत्वपूर्ण धमनियां हुआ करती थीं, अतिक्रमण और उदासीनता के बोझ तले लुप्त हो चुकी हैं। इससे भूजल पुनर्भरण और भी कम हो गया है। यमुना, जिसने कभी आगरा के अतीत को आकार दिया था, अब इसके भविष्य को सूखने का ख़तरा है।"

नदी के उस पार, आगरा के ऐतिहासिक तालाब, जो कभी जीवन और जीविका के जीवंत केंद्र थे, विलुप्त हो रहे हैं। रिवर कनेक्ट अभियान के सदस्य चतुर्भुज तिवारी कहते हैं, "जिले में लगभग 1000 तालाब थे, जो कभी मानसून की बारिश का पानी इकट्ठा करते थे और सूखे महीनों में पड़ोस के इलाकों को सहारा देते थे। ये तालाब अब कंक्रीट के नीचे दबे हुए हैं या कचरे से भर गए हैं। शहर के सांस्कृतिक और पारिस्थितिक ताने-बाने में उकेरे गए ये जल निकाय अनियंत्रित शहरीकरण और नागरिक उपेक्षा का शिकार हो गए हैं। जहां कभी पानी नीले आसमान की परछाई दिखाता था, वहां अब बंजर टीले धूप में तप रहे हैं, जिससे शहर की निर्भरता पहले से ही तनावग्रस्त यमुना और घटते तालाब, पोखर, बावड़ी पर और बढ़ गई है। कीठम झील जो अंग्रेजों ने आगरा की ग्रीष्मकालीन जरूरतों को पूरा करने के लिए बनाई गई थी, वह सुविधा मथुरा रिफाइनरी को मिल रही है।"

आगरा के निवासियों के लिए इसके नतीजे डरावने हैं। शहर का जल उपभोग व मांग-आपूर्ति आगरा जल संस्थान के लिए चुनौती है। नल घंटों तक सूखे रहते हैं। पं. महेश शुक्ला कहते हैं कि झुग्गियों और ट्रांस यमुना कॉलोनी में, महिलाएं सामुदायिक पंपों पर घंटों कतार में खड़ी रहती हैं, जबकि जिले के किसान अपनी फसलों को सूखते हुए देखने को मजबूर हो जाते हैं, क्योंकि बोरवेल सूख जाते हैं या जल स्तर गिर जाता है। ज़हरीले पानी से बीमारियां भी फैलती हैं, जिससे शहर की मुश्किलें और बढ़ रही हैं।

यहां तक कि आगरा का नायाब रत्न ताजमहल भी इससे अछूता नहीं है। हरित कार्यकर्ता पद्मिनी अय्यर के अनुसार, सूखी, प्रदूषित यमुना ताज की लकड़ी की नींव को कमज़ोर कर रही है, जिससे स्मारक की संरचनात्मक अखंडता और इससे जुड़ी पर्यटन अर्थव्यवस्था पर ख़तरा मंडरा रहा है। सर्किट हाउस के तालाबों और शाहजहां गार्डन को  अब नहरी पानी नहीं मिल रहा है, उक्खर्रा माइनर, शमशाबाद रोड पर अतिक्रमणों के बोझ तले मर चुकी है।"

यमुना भक्त ज्योति खंडेलवाल कहती हैं, "सभी ब्लॉकों में जल स्तर लगातार पाताल लोक की ओर बढ़ रहा है, फ्लोराइड और अन्य ज़हरीले रसायनों की वजह से कई गांवों में लोग बेबस, बीमार और कुबड़े हो रहे हैं, हरियाली सूख रही है, चंबल नदी भी पानी के लिए तरस रही है, लेकिन जन प्रतिनिधियों को कोई फ़िक्र नहीं है।"

रिवर कनेक्ट कैंपेन के सदस्य कहते हैं कि यमुना की सफाई के लिए अंतर्राज्यीय सहयोग की ज़रूरत है, जिसमें दिल्ली में सख़्त अपशिष्ट नियंत्रण, गाद निकालने के ज़रिए सहायक नदियों को पुनर्जीवित करना और अवैध रेत खनन पर लगाम लगाना शामिल है। स्थानीय स्तर पर, आगरा नगर निगम अतिक्रमण हटाकर, गाद निकालकर और वर्षा जल संचयन को बढ़ावा देकर सामुदायिक तालाबों को पुनर्जीवित कर सकता है।

आगरा सिविल सोसाइटी के संयोजक अनिल शर्मा का कहना है कि शहर में वाटर हार्वेस्टिंग, छत पर संग्रह प्रणाली और जन जागरूकता अभियान भूजल तनाव को कम कर सकते हैं, जबकि किसान ड्रिप सिंचाई जैसे जल-कुशल तरीकों को अपना सकते हैं।

माना जा रहा है कि सामूहिक इच्छाशक्ति और योगी सरकार की निर्णायक कार्रवाई से, आगरा अपने हालात बदल सकता है, इससे पहले कि इसकी विरासत धूल में मिल जाए।



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