जीवों के लिये बराबर परिश्रम करते हैं महापुरूष
मथुरा । जयगुरुदेव आश्रम में वार्षिक भण्ड़ारा सत्संग-मेला के तीसरे दिन सतीश चन्द ने बताया कि महापुरुष की मौज जिस भी जीव पर हो जाती है उसको सद्गति मिल जाती है। बाबा जयगुरुदेव महाराज वहीं पहुँचे। दादा गुरु अपनी गाय के लिए घास-काटकर लाते थे। महापुरुषों के जीवन-चरित्र बहुत कम पढ़ने व सुनने को मिल पाता है। महापुरुष जीवों के लिए बराबर परिश्रम करते रहते हैं।उन्होंने कहा कि बाबा जयगुरुदेव जी महाराज ने अपने गाय-बछड़ो को पूरा प्यार दिया। बेचने से मना किया और कहा कि ये अपने मौत मरकर अच्छे संस्कारी परिवार में जन्म लंेगे, इनमें देवत्व व साधु वृत्तियाँ होगीं। बाबा जयगुरुदेव महाराज के आध्यात्मिक क्रान्ति, शाकाहार-सदाचार, मद्यनिषेध का दिव्य प्रकाश पूरे विश्व में फैल रहा है। आज हर जाति, धर्म के लोग धर्म-कर्म की परिभाषा भूल चुके है। धर्म-कर्म तराजू के दो पलड़े है। पहले इन दोनों के जोड़ा चलते थे। कर्म से गिरे तो धर्म ने ठीक कर दिया, धर्म से गिरे तो कर्म ने ठीक कर दिया। लेकिन आज धर्म-कर्म चला गया और पाप बहुत बढ़ गया है।उपदेशक डाॅ. करूणाकान्त मिश्रा ने कहा कि जहां ँ आप रह रहे हैं मृत्युलोक है। ये आपका, किसी का कोई स्थान, चीज नहीं है। यहाँ उस प्रकार से रहना चाहिए जैसे रिश्तेदार रिश्तेदारी में आते हैं तो सब चीजें शरीर रक्षा के लिये उपयोग में लेते हैं और जब जाने लगते हंै तो छोड़ के चल देते हंै। ऐसे यहाँ भी रहना चाहिए कि ये सब चीजों को शरीर की रक्षा के लिए उपयोग में लायें और ये समझो की हमारा कुछ है ही नहीं। मोह, सकल ब्याधियों की मूल है, समुद्र है, उसमें डूब गये, अब बिना महापुरुषों के नहीं निकल सकते। पहले से ही अपने घर पहुँचने की आशा बनाये रखें और प्रभु की याद बराबर करते रहे, जिससे मौत के समय मालिक याद आ जाए। मेले में लगभग एक दर्जन दहेजरहित विवाह सम्पन्न हुये। श्रद्धालुओं के आने का क्रम जारी है। आज मध्यरात्रि से मन्दिर में पूजन व प्रसाद का वितरण षुरू है।