वैवाहिक बंधनों में छटपटाहट, बेडरूम बन रहे खूनी युद्ध के मैदान...


क्या हमारे बेडरूम ख़ून से सने जंग के मैदान बन रहे हैं? कभी बीवियां ईंटों से शौहर का सर कुचल देती हैं, तो कहीं आशिक लाश को सीमेंट के ड्रम में छिपा देता है। हिंदुस्तान की नई मोहब्बत अब धोखे और दरिंदगी की स्क्रिप्ट बन चुकी है। हर मुस्कुराते सेल्फी वाले जोड़े के पीछे छिपी हो सकती है कोई सीक्रेट चैट, कोई भषड़ भरा ग़ुस्सा, या कोई पहले से लिखा हुआ क़त्ल का प्लान। जैसे-जैसे एक्स्ट्रा-मैरिटल अफेयर बढ़ रहे हैं, वैसे-वैसे बढ़ रहा है एक नया क्राइम ऑफ़ पैशन, जहां प्यार मरता नहीं, मार देता है।

एक जागरूक समाज सेविका बताती हैं, "सोशल मीडिया पर जो गंदा खेल चल रहा है उससे परिवारों में विघटन हो रहा है और स्त्री पुरुष भटक रहे हैं। कुछ लोग बड़े स्तर पर सोशल मीडिया को दोस्ती और अवैध संबंधों के लिए प्रयोग कर रहे हैं। पकड़े जाने पर केवल फेसबुक और व्हाट्सएप चैट का नाम लेते हैं।"

अंग्रेजी में पढ़ें : Extra-marital affairs fuel deadly violence

सामाजिक कार्यकर्ता विद्या के मुताबिक, "चमकती-दमकते आधुनिक रिश्तों के नीचे एक तूफ़ान मचल रहा है। जो शुरुआत में ख़्वाहिश होती है, वो अक्सर लाश पर ख़त्म होती है। मुल्कभर में पति या पत्नी को उनके सीक्रेट पार्टनर द्वारा मारे जाने की कहानियां यह खौफ़नाक हक़ीक़त से वाकिफ करा रही हैं। इश्क़ और पागलपन के बीच की लकीर ग़ायब हो रही है। आज़ादी अगर बे-लगाम हो जाए, तो इज़्ज़त और रिश्ते दोनों तबाह हो जाते हैं। क्या हम असल में सांस्कृतिक आज़ादी देख रहे हैं या शादी की नैतिक बुनियाद का बिखराव?"

आज का हिंदुस्तान एक नए साये से जूझ रहा है, अवैध रिश्तों से उपजे राक्षसी जुर्मों का सिलसिला...। पटना से लेकर मुंबई, मेरठ से जयपुर तक, हर जगह किसी न किसी प्रेमी-प्रेमिका की साज़िश उजागर हो रही है। घर की दीवारों के भीतर छिपा प्यार अब ख़ूनी अंजाम तक पहुंच रहा है। सामाजिक कार्यकर्ता पद्मिनी अय्यर पूछती हैं कि क्या बढ़ती यौन उदारता इस हिंसक सिलसिले को हवा दे रही है।

उदाहरण देखिए। बिहार के वैशाली में प्रियंका देवी ने मार्च 2025 में अपने शौहर मिथिलेश पासवान का सिर ईंट से कुचल दिया, गला रेत दिया और फिर उसका लिंग काट डाला। मेरठ में मुस्कान और उसके आशिक साहिल ने सौरभ राजपूत का क़त्ल कर उसकी लाश सीमेंट के ड्रम में ठूंस दी। जयपुर में गोपाली देवी और दीनदयाल ने धन्नालाल को लोहे की सरिया से पीट-पीटकर मारा और जंगल में जलाने की कोशिश की। औरैया की प्रगति यादव ने शादी के कुछ ही हफ़्तों बाद अपने प्रेमी अनुराग के साथ सुपारी देकर दिलीप को मरवा दिया। मुंबई में रंजू चौहान ने अपने प्रेमी शाहरुख़ की मदद से अपने पति को सोते वक्त गला घोंट कर मार डाला।

हर वारदात में हैरान करने वाली बेरहमी है। हरियाणा की रविना राव और सुरेश राघव ने अपने शौहर की लाश नहर में फेंकी, जबकि मेघालय में हनीमून के दौरान सोनम रघुवंशी ने अपने पति राजा को मरवाने का इल्ज़ाम झेला। दक्षिण भारत में ट्यूटर से इश्क़ करने वाली बीवी ने ज़हर देकर पति का काम तमाम कर दिया। कत्ल की कहानियों में अब इश्क़ और इंतेक़ाम एक ही सिक्के के दो रुख़ बन चुके हैं।

एनसीआरबी के आंकड़े भी यही कहते हैं। अवैध रिश्ते, अब 6-10 फीसदी हत्याओं के पीछे की वजह हैं। 2020 में ऐसे लगभग 1,740 केस थे, जो 2021 में बढ़कर 3,000 से ऊपर पहुंच गए। 2022 में ‘लव अफेयर’ से जुड़े 2,031 मर्डर हुए — 3.9 फीसदी की बढ़ोतरी और इस साल के शुरुआती डेटा बताते हैं कि ये ट्रेंड और तेज़ी पकड़ रहा है।

क्या इसका कारण ‘ओपन सेक्स कल्चर’ है? कुछ हद तक हां। साल 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने व्यभिचार को अपराध की श्रेणी से बाहर किया, जिससे डेटिंग ऐप और मोबाइल आज़ादी ने रिश्तों में नई आज़ादी दी, लेकिन बेकाबू भी बना दिया। मेट्रो शहरों में वैश्विक जीवनशैली और महिलाओं की आर्थिक स्वतंत्रता ने परंपरागत रिश्तों से टकराव पैदा किया।

कभी जिस समाज में औरतें घरेलू हिंसा की शिकार मानी जाती थीं, अब वही आंकड़े बताते हैं कि कई बार वही ‘प्लानर’ या ‘कातिल’ भी बन रही हैं। इस ट्रेंड को केवल ‘मोबाइल और मॉडर्निटी’ से नहीं समझा जा सकता। समाज अब ऐसे मोड़ पर है जहां प्यार ‘कमिटमेंट’ नहीं, ‘कंज़्यूमर प्रोडक्ट’ बन चुका है। जब तक दिलचस्पी बरकरार है, रिश्ता चलता है; जैसे ही भावनात्मक निवेश खत्म होता है, रिश्ता हिंसा या धोखे में बदल जाता है। 

मोहब्बत सिर्फ़ जिस्म की आज़ादी का सवाल नहीं, ज़िम्मेदारी का भी है। जब रिश्ते संवेदनशीलता खो देते हैं तो जुनून ज़हर बन जाता है। डिजिटल युग की यह मोहब्बत केवल ‘स्वाइप और चैट’ की नहीं रह गई, यह अब वजूद, शक और नियंत्रण की जंग बन चुकी है। आख़िर में सवाल यही है कि क्या आज़ादी सिर्फ़ जिस्म की होनी चाहिए, या ज़िम्मेदारी की भी? प्यार अगर तमीज़ खो दे तो जुनून ज़हर बन जाता है। हिंदुस्तान को अब मोहब्बत और मर्ज़ी के बीच की लकीर पर फिर से सोचने की ज़रूरत है, वरना इश्क़ आजादी की नहीं, इंतक़ाम की दास्तां लिखेगा।



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