विविधा और व्यंग्य

पिछले दो दशकों में हमने एक पूरी जमात को गुम होते देखा है। वह जमात जो हमें हंसाती थी, गुदगुदाती थी, और सोचने पर मजबूर करती थी। व्यंग्यकार, कार्टूनिस्ट, और हास्य के बादशाह अब धीरे-धीरे लुप्त होते जा रहे हैं...

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ज़ेलेंस्की को एक ऐसे कुत्ते की तरह देखा गया, जो न घर का रहा न घाट का, और ट्रंप को उस चालाक बंदर की तरह, जो दो लड़ती बिल्लियों को न्याय दिलाने के बहाने पूरी रोटी हड़प जाता है।

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आज, जबकि दुनिया गुलाबों और चॉकलेट के साथ ‘वैलेंटाइन डे’ मना रही है, तब ताजमहल का शहर आगरा मोहब्बत की नई परिभाषा और एक ऐसी दास्तां लिखना चाहता है जो क्षणभंगुर इशारों और व्यावसायिक दिखावों से परे है।

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शहरों में शोर का ऐसा बवंडर उठ रहा है कि अब चैन की सांस लेना भी चुनौती बन गया है। दिन हो या रात, हर ओर गूंजती अलग-अलग ध्वनियां मानो एक शोरगुल की करामात रच रही हैं। चुनावी प्रचार से लेकर धार्मिक उत्सवों और शादियों तक, हर आयोजन में ध्वनि प्रदूषण के नए रिकॉर्ड बनते जा रहे हैं।

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हर नई टेक्नोलॉजी अपने साथ खतरों का एक पूरा पिटारा लेकर आती है। शुरुआत में हर कोई इंटरनेट आधारित गैजेट्स और तकनीकों से इतना विस्मित और मुग्ध हो गया था कि लगा अलादीन का चमत्कारी चिराग हाथ लग गया हो। जैसे-जैसे मोबाइल फोन सुलभ, सुविधाजनक, और सस्ते हुए, इंटरनेट के आभासी मकड़जाल ने सबको अपनी गिरफ्त में ले लिया। आज एक नया भस्मासुर का अवतार हमारे सम्मुख है, और हमें समझ नहीं आ रहा है इसकी काट क्या है...

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पूरे विश्व का माहौल नए साल पर हर बार खुशनुमा होता है। हर देश में अपने-अपने तरीके से अंग्रेजी नववर्ष का स्वागत किया जाता है...

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