विविधा और व्यंग्य

हाल ही में ग्रेटर नोएडा में एक दिल दहलाने वाली घटना ने तथाकथित आधुनिक भारतीय समाज की काली सच्चाई को प्रकाशित किया है। 28 वर्षीय निक्की को उनके पति और ससुराल वालों ने 36 लाख रुपये की दहेज मांग के लिए क्रूरता से प्रताड़ित कर जला दिया। यह भयावह घटना 21 अगस्त को हुई, जिसे निक्की के छह साल के बेटे ने अपनी आंखों से देखा, जिसने बताया कि उसकी मां पर कोई पदार्थ डाला गया, थप्पड़ मारा गया और फिर जिंदा जला दिया गया...

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रात के सन्नाटे में जब घरों की रोशनी बुझ जाती है, तब भी लाखों युवाओं की आंखें चमकती स्क्रीन पर टिकी रहती हैं। अनगिनत नोटिफिकेशन्स की खनक मानसिक जंजीर बन चुकी है...

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साल 1973 में जब बॉबी फिल्म आई थी, करोड़ों बूढ़े और जवानों में करेंट आ गया था। सोलह वर्ष में प्यार हो जाने से जूली को पहचान मिली। किशोरावस्था के प्यार और रोमांस के किस्से सदियों से आकर्षित करते रहे हैं।

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आज के युवा पति, नीले प्लास्टिक ड्रम और सीमेंट के बोरों से डरते हैं, मानो ये कोई जानलेवा संकेत बन गए हों। वहीं, संयुक्त परिवारों की बुजुर्ग सासें अब शादी के बर्तन नहीं, ‘कटोरे’ इस डर से खरीद रही हैं कि बहू अब केवल रसोई तक सीमित नहीं रही, बल्कि उसके इरादे कहीं और हैं।

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बॉलीवुड फिल्मों ने गोरेपन को लेकर इतनी भ्रांतियां पैदा कर दीं हैं कि हर दिन टनों फेयर एंड लवली क्रीमें खप जाती हैं। गोरे होने के चक्कर में तरह-तरह के नुस्खे आजमाए जाते हैं। "गोरे रंग पे न इतना गुमान कर," “गोरी तेरा गांव बड़ा प्यारा” जैसे गीत बनाए जाते हैं। सांवले रंग की वजह से बच्चों के नाम कालिया, कालीचरण, भूरा, आदि रखे जाते हैं। श्री कृष्ण भी मैय्या से पूछते हैं, “राधा क्यों गोरी, मैं क्यों काला?” सच में भारतीय समाज में रंग भेद का अभिशाप युगों से चल रहा है।

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अश्लील गालियों से सामना भारत के हर क्षेत्र में करना पड़ता है। हर भाषा में वही, महिला के जननांगों को केंद्रित करते हुए भद्दे, अश्लील जुमले! अपने बृज क्षेत्र में शादियों में ‘गारी’ गाने के रिवाज ने इसे मान्यता का प्रमाण पत्र दे दिया है।

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