क्या आपने कभी सोचा है कि हम कब से चीज़ों को सुधारने के बजाय फेंकना ज़्यादा पसंद करने लगे हैं? एक ज़माना था जब एक टूटी कुर्सी को ठीक किया जाता था, फटे कपड़ों को सिला जाता था और रिश्तों की डोर को गांठ लगाकर मज़बूत किया जाता था। लेकिन, आज की भागदौड़ भरी आधुनिक ज़िंदगी में 'यूज़ एंड थ्रो', यानी इस्तेमाल करो और फेंको, की मानसिकता सिर्फ़ बाज़ार के सामान तक सीमित नहीं रही, बल्कि ये हमारे पारिवारिक और सामाजिक रिश्तों में भी गहरी पैठ बना चुकी है।
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