विविधा और व्यंग्य

क्या आपने कभी सोचा है कि हम कब से चीज़ों को सुधारने के बजाय फेंकना ज़्यादा पसंद करने लगे हैं? एक ज़माना था जब एक टूटी कुर्सी को ठीक किया जाता था, फटे कपड़ों को सिला जाता था और रिश्तों की डोर को गांठ लगाकर मज़बूत किया जाता था। लेकिन, आज की भागदौड़ भरी आधुनिक ज़िंदगी में 'यूज़ एंड थ्रो', यानी इस्तेमाल करो और फेंको, की मानसिकता सिर्फ़ बाज़ार के सामान तक सीमित नहीं रही, बल्कि ये हमारे पारिवारिक और सामाजिक रिश्तों में भी गहरी पैठ बना चुकी है।

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उम्रदराज होना, बाल सफेद होना, कोई अभिशाप नहीं बल्कि तजुर्बे से मिला एक विशेषाधिकार है। आजकल युवा वर्ग बुजुर्गों को गरिया रहा है, बेघर कर रहा है, अमानवीय व्यवहार कर रहा है, यह भूलकर कि जो पैदा हुआ है वह स्वर्गवासी होने से पहले इस दयनीय अवस्था से जरूर गुजरेगा।

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संयुक्त परिवारों के बुजुर्ग आजकल लड़कों की शादी करने से घबराने लगे हैं। उन्हें बहुओं का खौफ सता रहा है। उधर, नौकरी कर रहे युवा अकेले रहना पसंद करने लगे हैं, शादियों के बंधन से मुक्त ‘लिव-इन रिलेशन’ में, अंजाम जो भी हो। सात जन्मों का बंधन सात साल चल जाए तो शादी सफल मानी जा रही है।

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अंदाज लगाइए दस हजार वर्ष पूर्व गुफा से बाहर निकले आदि मानव ने सर्व प्रथम किस इंसानी जिस्म के अंग को ढका होगा और क्यों?

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भारतीय ज्ञान, परंपरा, सभ्यता और संस्कार के कारण ही पूरी दुनिया में भारत की एक अलग पहचान बनी हुई है। यह देश हमेशा ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ के आदर्श का अनुयायी रहा है और यहां पग-पग पर धर्मसम्मत आदर्शो की चर्चा की जाती रही है,,,

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पिछले दो दशकों में हमने एक पूरी जमात को गुम होते देखा है। वह जमात जो हमें हंसाती थी, गुदगुदाती थी, और सोचने पर मजबूर करती थी। व्यंग्यकार, कार्टूनिस्ट, और हास्य के बादशाह अब धीरे-धीरे लुप्त होते जा रहे हैं...

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