अयोध्या और वाराणसी के लोकसभा चुनाव परिणामों पर संतों की राय


उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव के जो भी चुनावी परिणाम आए हैं, वे जनता द्वारा लिया गया अंतिम फैसला है। जनता के निर्णय की सदैव प्रशंसा ही की जानी चाहिए। लेकिन, अयोध्या और वाराणसी के परिणामों पर जरूर चिंतन किए जाने की आवश्यकता है।

अयोध्या में भगवान श्रीराम की मूर्ति में प्राण प्रतिष्ठा किया जाना निश्चित रूप से एक महान कार्य था। परंतु, आश्चर्य की बात यह है कि स्थानीय संत समाज इस पर एक अलग ही राय व्यक्त कर रहा है। किसी भी महान कार्य को यदि निश्छल भाव से व विधि विधान के साथ किया जाए तो उसके परिणाम निश्चित ही सकरात्मक, शुभ व फलदायी होते हैं। भगवान श्रीराम का मानव स्वरूप में अवतरण जन मानस के लिए एक आशीर्वाद था।

अयोध्या, रामटेक, चित्रकूट, नासिक और रामेश्वरम, ऐसे प्रमुख स्थल हैं जो श्रीराम के जीवन से सीधे-सीधे जुड़े हैं और इन्हीं स्थानों पर लोकसभा के चुनावी परिणाम का विपरीत आना बीजेपी के लिए निःसन्देह अत्यधिक हतप्रभ करने वाला है।

कम से कम, पिछले एक दशक के दौरान, नरेंद्र मोदी ने स्वयं को एक श्रेष्ठ कूटनीतिज्ञ, बहुमुखी प्रतिभा सम्पन्न तथा कुशल नेतृत्वकर्ता के रूप में साबित किया है। उन्होंने अपने पिछले 10 वर्षों के कार्यकाल में देश के उत्थान के लिए कई गौरवपूर्ण कार्य किए हैं। वाराणसी की जनता ने वर्ष 2014 में उनको सहृदयता के साथ समर्थन दिया और साल 2019 के चुनावों में तो पांच लाख से ज्यादा के विशाल अंतर से विजयश्री दिलाई। लेकिन, ऐसे कर्मठ नेतृत्व को वर्ष 2024 के लोकसभा चुनावों में मात्र 1 लाख 52 हजार वोटों से ही विजयश्री का मिलना, वास्तव में गहन चिंता तथा मंथन का विषय है।

अयोध्या में बीजेपी के उम्मीदवार की पराजय होना वास्तव में अचम्भित करने वाली घटना रही। जब कुछ संतों व धार्मिक गुरुओं से इस बारे में पूछा तो कई अलग तरह के तर्क सामने आए। कुछ मुख्य बिन्दुओं को यहां इंगित करने का प्रयास किया गया है...

1. भगवान श्री राम के अंतिम समय में जब यमराज उन्हें लेने के लिए पृथ्वी पर आए तो श्रीराम ने उनके साथ जाने से पहले अयोध्या के राजा के रूप में हनुमान का राज्याभिषेक किया और उनको अमरत्व का वरदान दिया। आज भी अयोध्या के राजा अंजनीपुत्र हनुमान ही हैं। लेकिन, जब श्रीराम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा कराई जा रही थी तो उस समय वहां के मठाधीशों द्वारा रामभक्त हनुमान की अवहेलना की गई। इतना ही नहीं, जानकारों के अनुसार, यहां स्थापित मूर्ति के खंडित होने का  दावा किया गया है।

2. अयोध्या में स्थापित श्रीराम की मूर्ति काले पत्थर से निर्मित है, जबकि उनका प्रिय रंग श्वेत है। अतः उनकी मूर्ति भी उसी रंग में निर्मित होनी चाहिए थी।

3. हिन्दू संस्कृति में मठाधीश शंकराचार्य की पदवी अत्यधिक श्रेष्ठ व पवित्र मानी जाती है और उनका ईश्वर सदृश आदर किया जाता है, परन्तु अयोध्या में चारों शंकराचार्यों की अवहेलना क्यों की गई, यह एक बड़ा सवाल है।

4. प्राण प्रतिष्ठा का संकल्प लेने वाले युगल दम्पति का छह दिन तक सतत रूप से पूजा में उपस्थित रहने के पश्चात भी भगवान श्री राम के चक्षुओं पर से पट्टी का अनावरण करते समय उपस्थित न होना भी एक जिज्ञासापूर्ण प्रश्न है।

5. अखण्ड ज्योति में प्राण प्रतिष्ठा की पूर्व संध्या में आग लगना एक बहुत बड़ा अपशकुन माना जा रहा है। वह भी सम्भवतया मंदिर समिति की लापरवाही के कारण हुआ।

इन त्रुटियों को श्रीराम मंदिर कमेटी के सदस्यों, विद्वजनों तथा पुजारियों द्वारा क्यों दूर नहीं किया गया, यह चिंतन का विषय है।

(लेखक आईआईएमटी विश्वविद्यालय के कुलाधिपति हैं और यहां व्यक्त विचार उनके स्वयं के हैं)



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