दुनियाभर के पर्यटकों को आकर्षित करने वाला, स्मारकीय भव्यता का खजाना शहर आगरा, आध्यात्मिक शून्यता में डूबा हुआ है। यह शहर अपनी समृद्ध विरासत से बेखबर है। जब दुनिया विरासत की पवित्रता का जश्न मनाती है, तब आगरा की सड़कों पर उदासीनता तैरती है। इसकी ऐतिहासिक संपदा में निहित विरासत और समृद्धि पर कोई चर्चा नहीं होती है।
कभी इतिहास की जीवन रेखा रही यमुना नदी आज प्रदूषण के बीच बह रही है। पूरी तरह से परित्यक्त और भूली हुई नदी बनकर रह गई है। जंगल के सन्नाटे में एक उम्मीद की आवाज़ बने डॉ. देवाशीष भट्टाचार्य इस खामोश क्षय पर शोक व्यक्त करते हैं और विरासत के संरक्षकों से अपनी नींद से जागने और संरक्षण की आवश्यकता को अपनाने का आग्रह करते हैं।
Read in English: Unveiling heritage disgrace: A wake-up call for a ‘Cultural Amnesia’…
यह हृदय विदारक कहानी ताजमहल से आगे तक फैली हुई है। जहां कम लोकप्रिय चमत्कार गुमनामी के अंधेरे में पड़े हुए हैं। शहर के ये स्थापत्य रत्न खुद को अतिक्रमण से घुटते हुए पाते हैं और इनकी रक्षा के लिए नियुक्त किए गए संरक्षकों की उपेक्षा की कहानियां सुनाते हैं।
यह दुःख और उपेक्षा की कहानी है, जहां विरासत को आर्थिक प्रगति में बाधा डालने वाली बाधा के रूप में देखा जाता है, न कि शहर की आत्मा को समृद्ध करने वाले अमूल्य खजाने के रूप में। एक ऐसी जगह जहां पर्यटन फलता-फूलता तो है, लेकिन स्थानीय लोग खुद को अपने इतिहास से अलग पाते हैं।
आगरा में आम धारणा यह है कि ताजमहल और स्मारकों के लिए प्रदूषण के खतरे के कारण उद्योगों और रोजगार के अवसरों को भारी नुकसान हुआ है। दिसंबर 1996 में सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले ने सैकड़ों उद्योगों को हमेशा के लिए बंद करने पर मजबूर कर दिया। इसके परिणामस्वरूप आर्थिक गतिविधियां बाधित हुईं। ज़्यादातर लोगों को लगता है कि राज्य में मौजूदा सत्तारूढ़ व्यवस्था मुगल आगरा और उसके इतिहास के खिलाफ़ काफ़ी पक्षपाती है।
इसके अलावा, स्थानीय पर्यटन निकाय, होटल व्यवसायी और ट्रैवल एजेंट, स्थानीय नागरिकों के दिलों में गर्व की भावना पैदा करने के लिए शायद ही कभी गतिविधियां आयोजित करते हैं। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण औपचारिक रूप से कुछ गतिविधियां जरूर आयोजित करता है, लेकिन सांस्कृतिक बंधनों को मज़बूत करने के लिए कुछ और करता हुआ दिखाई नहीं देता है।
विरासत संरक्षणवादी डॉ. मुकुल पंड्या कहते हैं कि संचार की खाई गहरी और अंधेरी है। आर्थिक दबावों और पर्यटन की कर्कशता की छाया में, आगरा के नागरिकों पर थकान की भावना छाई हुई है, जो उनके चारों ओर मौजूद रहस्यमय अतीत से उनका जुड़ाव खत्म कर रही है। ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व की जुगलबंदी मौन बनी हुई है, जो लोगों के दैनिक संघर्षों में डूब गई है।
दुनियाभर में हमारी विरासत के सार को याद किया जा रहा है। ऐसे में आगरा और उसके निवासियों के लिए यह जरूरी है कि वे इस आह्वान पर ध्यान दें, उदासीनता से ऊपर उठें और अपने गौरवशाली अतीत के अनुरूप गौरव और जुनून को पुनः प्राप्त करें।
बगैर इतिहास के कोई भी समाज स्थिर और जमीन से जुड़ा नहीं रह सकता। समय आ गया है कि संप्रेषण की इस खाई को पाटा जाए, जागरूकता को बढ़ावा दिया जाए और गर्व की लौ को प्रज्वलित किया जाए, क्योंकि हमारी विरासत के संरक्षण में ही हमारी पहचान, हमारे सार, हमारी विरासत का संरक्षण निहित है।
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