दुनिया

क्या अमेरिकी लोकतंत्र के नए, उतावले बादशाह, शांति दूत डोनाल्ड ट्रम्प विश्व में क्रांतिकारी बदलाव लाने के लिए नायक की भूमिका में सफल होंगे, या उनका बड़बोलापन युद्ध और संघर्षों की नई इबारत लिखेगा? क्या अमेरिकन पूंजीवादी व्यवस्था एक नई ‘राष्ट्रीय समाजवादी मूल्य आधारित’ विचारधारा को अपनाने के लिए तैयार है।

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वर्ष 1947 में स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात, पाकिस्तान का पूर्वी भूभाग वर्ष 1971 में पृथक होकर स्वतंत्र देश के रूप में बांग्लादेश के नाम से स्थापित हुआ और विगत वर्ष 2024 में वही बांग्लादेश एक बार फिर पाकिस्तान की गोद में समाता हुआ दिख रहा है...

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"नानू, अनुमान लगाओ कि चौथा विश्व युद्ध कब शुरू होगा? कोई संभावना नहीं है प्रिय वीर! आने वाला विश्व युद्ध किसी को भी जीवित नहीं छोड़ेगा, जिससे तीसरा सीक्वल बन सके।"

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अब भारत को यह सत्य स्वीकार कर ही लेना चाहिए कि बांग्लादेश भारत की मैत्री परिधि से बाहर निकल चुका है। आज यह देश अपने ‘शत्रु’ पाकिस्तान के कट्टरपंथियों की गोद में जाकर बैठ गया है। वहां की न्यायपालिका, पुलिस, शासन-प्रशासन, चुनाव आयोग, विश्वविद्यालयों के कुलपति व सेना आदि सभी प्रमुख विभागों में भारत विरोधी तथा पाकिस्तान के पिट्ठू जमात-ए-इस्लामी संगठन के कार्यकर्ताओं की नियुक्ति हो चुकी है। 

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एक सवाल जो बार बार उठता रहता है, वह अभी भी उत्तर के इंतज़ार में है। क्या धर्म विशेष की कट्टर मान्यताएं, लोकतंत्री जीवन शैली के साथ कदम ताल नहीं कर सकतीं?

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अब जबकि अमेरिकी चुनावों में हिंदुओं के लिए डोनाल्ड ट्रम्प के मुखर समर्थन की गूंज बांग्लादेश में सुनाई देनी शुरू हो गई है तो वहां के राजनीतिक परिदृश्य पर वर्तमान में जारी उथल-पुथल को लेकर चिंताएं बढ़ गई हैं। वहां हो रही घटनाएं पड़ोसी देश पाकिस्तान के अशांत इतिहास के साथ समानताएं पैदा कर रही हैं...

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