संपादकीय

जून में हुए लोकसभा चुनावों में हार के बाद, क्या सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी ने हरियाणा और महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में वांछित राजनीतिक लाभ प्राप्त करते हुए अपने कथानक और रणनीति में सुधार किया है? क्या आने वाले दिल्ली चुनावों में ध्रुवीकरण का नया मंत्र, ‘बटेंगे तो कटेंगे’ और भी धारदार और सटीक होगा, और भाजपा के लिए फायदे का सौदा बनेगा...

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वर्ष 2025 हमें अधिकारों के शोरगुल से ऊपर उठकर कर्तव्य की शांत शक्ति को अपनाने के लिए प्रेरित करता है। आकांक्षाओं से भरे राष्ट्र में, एक सामंजस्यपूर्ण समाज केवल एक सपना नहीं है, बल्कि एक सामूहिक जिम्मेदारी है। इसके लिए, अब अपने फोकस में बदलाव की आवश्यकता है। व्यक्तिगत अधिकारों से साझा दायित्वों की ओर तथा व्यक्तिगत लाभ की खोज से नागरिक गुणों की खेती की ओर चलने का समय आ गया है...

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पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह अब नहीं हैं। जब हम बहुत छोटे थे तो उनके दस्तखत नोट पर दिखते थे। घर के किसी बड़े ने बताया था कि जिसके दस्तखत नोट पर होते हैं, वह बहुत ‘बड़ा’ आदमी होता है। उसे ‘गवर्नर’ कहते हैं। हम बहुत खुश होते थे कि कभी हम भी ‘गवर्नर’ ही बनेंगे। फिर बैठकर सभी नोटों पर साइन किया करेंगे। खैर! यह बचपन की बात है। जब थोड़े बड़े हुए तो पता चला कि मनमोहन सिंह एक बेहतरीन अर्थशास्त्री हैं। बाद में एक बेहतरीन वित्त मंत्री बने। इंटरनेट पर घूम रहा उनका ‘बायोडाटा’ बताता है कि उनके जैसा आदमी न कभी हुआ है, और न होगा।

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धार्मिक स्थलों पर गतिविधियां और आध्यात्मिक नेताओं की आबादी चिंताजनक रूप से बेतहाशा बढ़ रही हैं। अदालतों में धार्मिक मसलों का अंबार लग गया है...

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बांग्लादेश की घटनाओं के बाद हमें सावधान हो जाना चाहिए। कम्युनिस्ट तो सिस्टम को नहीं तोड़ पाए, लेकिन फंडामेंटलिस्ट मानसिकता वाले तत्व लोकतंत्र को संविधान द्वारा दिए गए अधिकारों से ही उसको ध्वस्त करने पर आमादा हैं।

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हालिया तीन राज्यों में हुए चुनावों के बहाने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भाजपा कार्यकर्ताओं ने बताया है कि ऐसे लड़े जाते हैं चुनाव...

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