संपादकीय

देशभर में अब यह सामान्य बात हो गई है कि चुनावी प्रक्रिया के दौरान प्रत्येक पार्टी और उसके नेता जनता को लुभाने के लिए अनेक अव्यावहारिक प्रलोभन देने लगते हैं। क्या इस प्रकार का प्रचलन एक ईमानदार जीवन जीने को तत्पर जनता के साथ न्याय है...

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आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन चंद्रबाबू नायडू और तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन द्वारा नागरिकों से अधिक बच्चे पैदा करने के आह्वान ने आर्थिक, सामाजिक और नैतिक चिंताओं को छूते हुए एक नई बहस छेड़ दी है।  ध्यान रहे, दक्षिणी राज्यों में उच्च जन्म दर को प्रोत्साहित करने के विचार के पक्ष में काफी नेता मैदान में उतर आए हैं...

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क्या दुनिया के लोकतांत्रिक देश वर्तमान में नेतृत्व संकट से जूझ रहे हैं? ऐसा लगता है कि लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं को चलाने या मार्गदर्शन करने वाले प्रेरक नेताओं की कमी का खामियाजा जनता भुगत रही है।

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लोकतंत्र को प्रभावी ढंग से चलाने के लिए एक प्रशिक्षित और प्रतिभाशाली संसदीय ढांचा और प्रणाली की आवश्यकता होती है और इस ढांचे व तंत्र को बनाने के लिए पूर्ण प्रशिक्षित राजनेताओं की...। एक स्वस्थ लोकतंत्र में चुने हुए जन प्रतिनिधि यदि पढ़े-लिखे, सुसंस्कृत और प्रतिभाशाली हों तो उस देश को तरक्की के रास्ते पर जाने से कोई नहीं रोक सकता है।

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दिल्ली की बागडोर अब आतिशी के हाथों में हैं और उन्होंने खुद को केजरीवाल का ‘भरत’ घोषित कर उनकी खड़ाऊं सत्ता के सिंहासन पर रख दी हैं। अब आगामी चुनावों में उनका मुकाबला पहले की तरह प्रदेश में नेतृत्वविहीन भाजपा से होना है...

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भारत सरकार द्वारा ‘एक राष्ट्र-एक चुनाव’ के लिए जोर देने से उन महत्वपूर्ण मुद्दों की अनदेखी हो रही है, जिन पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है। एकल चुनाव प्रारूप को अपनाने से पहले, समान अवसर सुनिश्चित करने के लिए व्यापक चुनावी सुधार आवश्यक हैं। 

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