बुजुर्गों में ही नहीं बल्कि बच्चों में भी होता है मोतियाबिंद


अक्सर लोगों को लगता है कि मोतियाबिंद केवल बड़े-बुजुर्गों को ही होता है, लेकिन यह बीमारी बच्चों को भी हो सकती है। सफेद मोतिया या मोतियाबिंद बच्चों में दृष्टिहीनता होने का एक बड़ा कारण है।

सफेद मोतिया होने पर बच्चे की आंख का लेंस प्रभावित होता है, उसमें धुंधलापन या सफेदी आ जाती है और बच्चे की दृष्टि प्रभावित हो जाती है। बच्चों में मोतियाबिंद 13 से 15 साल तक के बच्चों में होता है। हर 10 हजार बच्चों में जो 10वां बच्चा होता है उसमें मोतियाबिंद की समस्या हो सकता है।

बच्चों में मोतियाबिंद होने के कई कारण हो सकते हैं। इनमें आनुवांशिक, रेडिएशन से अधिक संपर्क व प्रभाव, डाउन सिंड्रोम जैसी बीमारियां, संक्रमण, कुछ स्टेरॉयड, गर्भावस्था के दौरान रूबेला या चिकनपॉक्स जैसे संक्रमण या आंख पर किसी भी तरह की चोट हो सकती है।

आंख की पुतली पर टॉर्च की रोशनी पड़ने पर जब यह सफेद दिखने लगे, धूप में जाने पर बच्चा इसे सहन नहीं कर पाता हो और आंख बंद कर लेता है, आंख में तिरछापन, आंखों में थरकन यानी रोशनी अंदर नहीं पहुंचती और आंख गति करती रहती है, देखने में परेशानी और बच्चे द्वारा आंख को मलना व बच्चे द्वारा किसी वस्तु को देखने पर वस्तु के चारों ओर प्रकाश का घेरा दिखना आदि बच्चों में मोतियाबिंद होने के प्रमुख लक्षण हैं।

मोतियाबिंद के लक्षण उभरने के बाद डॉक्टर के पास जाने पर वह आंख में एक ड्रॉप डालेंगे। यह पुतली फैलाने की दवा होती है। उसके बाद पता चलेगा कि बच्चे में मोतिया है या नहीं। इसलिए, बच्चे का जन्म हो तो डॉक्टर से इसकी जांच जरूर करवाएं। जिससे आने वाले समय में बच्चे को कोई इस तरह की समस्या न हो।

मोतियाबिंद की जल्दी से जल्दी पहचान कर इसका इलाज किया जाना चाहिए। बच्चे को चश्मा या लेंस दें तो उनकी आंख की रोशनी को पूरी तरह से बचा सकते हैं। लेकिन, अगर देर करेंगे तो बच्चों की आंख में टेढ़ापन हो सकता है और आंख की थिरकन भी नहीं रुक पाएगी। आगे चल कर यह अंधता में भी बदल सकता है। कहने का तात्पर्य यह है कि यदि मोतियाबिंद को सही समय पर पहचान कर बच्चे को सही समय पर इलाज मिल पाए तो उसकी दृष्टि को बचाया जा सकता है।



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