समय पर पहचानने से संभव है जन्मजात बहरेपन का इलाज


आज के समय में ऐसे कई कारक हैं जो हमारी सुनने की क्षमता को प्रभावित करते हैं। आधुनिक जीवनशैली का हिस्सा बन चुके ईयर फोन और डीजे जैसी उपकरण कानों के लिए बेहद नुकसानदेह हैं।

बधिरता यानी बहरापन एक बड़ी समस्या है, जिसके विषय में जागरूकता अतिआवश्यक है। कान बहना, ऊंची आवाज में संगीत सुनना व बुढ़ापा आदि श्रवण संबंधी समस्याओं के कई कारण हैं। इस बारे में जागरूकता लाकर और श्रवण संबंधी समस्या होने पर इसके जल्द उपचार के साथ समस्याओं से बचा जा सकता है। आज श्रवण संबंधी समस्याओं के लिए कई उपकरण भी मौजूद हैं, जिससे इसका इलाज संभव है। इसलिए जरूरी है कि बहरेपन को जल्दी-जल्दी पहचानें और इसका इलाज कराएं।

सबसे पहले बहरापन पहचानने के लिए नवजात शिशु की जांच कराई जानी चाहिए। अब हमारे पास ऐसी मशीनें हैं, जिन्हें लगाते ही पता चल जाता है कि बच्चे में बहरापन है या नहीं। एक आकलन के अनुसार दो फीसदी बच्चों में बहरापन पैदा होने के साथ ही होता है। कुछ बच्चों में यह बहुत ज्यादा होता है।

मां की आवज सुनकर न मुस्काराना और तीन से छह महीने में शिशु का आवाज की दिशा में गर्दन नहीं घुमाना, हां-हूं जैसी आवाज न करना या तेज आवाज पर शिशु द्वारा प्रतिक्रिया न करना बहरेपन की प्रमुख निशानियां हैं। अगर बच्चे में बहरापन की या कम सुनने की शिकायत है तो हियरिंग ऐड या कॉकलियर इम्प्लांट लगाया जाता है।

वृद्धावस्था में लोगों को हियरिंग टेस्ट की जरूरत होती है। यह ग्रुप 65 से 75 साल की उम्र का है जिनमें सुनने की क्षमता कम होने लगती है। बुजुर्गों में सुनने की क्षमता उम्र के साथ कम होना सामान्य है। इसके लिए विशेषज्ञ को दिखाएं और सुनने की क्षमता की जांच कराएं। विशेषज्ञ की परामर्श से ही हियरिंग ऐड का प्रयोग करें।

बात न सुन पाना, अक्सर दोबारा बोलने के लिए कहना, बात करने से कतराना, अकेले व अलग रहना और ज्यादा बोलना जिससे किसी की बात न सुननी पड़े आदि बुजुर्गों में बधिरता के लक्षण हैं।

बुजुर्गों में सुनने की समस्या और न बढ़े इसके लिए कुछ सावधानियां रखनी जरूरी है। मोबाइल का इस्तेमाल कम करें, तेज आवाज में एक बार ही सुनने पर एक बार में ही कान पर असर हो सकता है। संगीत सुनने के लिए हेडफोन का इस्तेमाल न करें, हेडफोन से कान में दबाव बढ़ जाता है और हेडफेन से कानों को क्षति होती है।



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