महाभारत के समय में रंगमंच का प्रभाव अपने शिखर पर था। नाट्य कला और अभिनय के महाभारत में अनेक वर्णन मिलते हैं।
विराट पर्व में ऐसा ही एक वर्णन मिलता है। अपने अज्ञातवास के दिनों में अर्जुन वृहण्णला बनकर राजकुमारी उत्तरा को गीत, रंगमंच, वादन एवं नर्तन की शिक्षा देते हैं।
मनोरंजन उद्योग पर्व में भी ऐसा ही एक उल्लेख मिलता है। श्रीकृष्ण दुर्योधन के पास युधिष्ठिर के प्रतिनिधि बनकर गए, जहां उनके स्वागत में रंगमंच पर गायन, वादन और नृत्य के बड़े कार्यक्रम आयोजित किए गए।
एक अन्य विवरण के अनुसार, श्रीकृष्ण के पुत्र प्रद्युम्न के विवाह के समय नगर में नट मंडली बुलाई गई जिसने ‘गंगावतरण’ नाटक का मंचन किया गया।
श्रीमद्भागवत पुराण के अनुसार विजयी श्रीकृष्ण का स्वागत द्वारिका में नागरिकों ने अभिनय मंचन के द्वारा किया।
हरिवंश पुराण के अनुसार तो कई मौकों पर आयोजित नाटकों में स्वयं श्रीकृष्ण, प्रद्युम्न व अन्य पारिवारिक सदस्यों ने चरित्रों का निर्वाह किया।
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