मौजूदा दौर के दौरान विश्व राजनीति में तीन महाशक्तियों अमेरिका, रूस और चीन का दबदबा है। चौथी महाशक्ति कौन बने, उसके लिए भारत प्रबल दावेदार हो सकता है।
प्रथम महाशक्ति, अमेरिका 36.2 ट्रिलियन डॉलर के अत्यधिक कर्ज के कारण आर्थिक रूप से गम्भीर संकट में है। इसलिए, ट्रंप अपनी आर्थिक स्थिति को सुधारने के लिए विश्व के अन्य देशों पर विभिन्न प्रकार के कर लगाने का प्रयास करते रहे हैं। द्वितीय महाशक्ति रूस अपने पड़ोसी यूक्रेन के साथ युद्ध में फंसा हुआ है।
तृतीय महाशक्ति चीन ने इन सब परिस्थितियों का सबसे ज्यादा लाभ उठाया है। रूस से ‘मित्रता’ के चलते आज चीन, अमेरिका को आंखें दिखाने की हिमाकत कर सकता है। साथ ही, चीन अपनी आगामी योजना में अब भारत को तथा उसके चहुंओर स्थापित देशों, यथा - नेपाल, भूटान, म्यांमार, बांग्लादेश, मालदीव, श्रीलंका, पाकिस्तान, अफगानिस्तान व मारीशस आदि पर अपना प्रभुत्व स्थापित करने का प्रयास करता रहा है।
उपरोक्त तथ्यों पर यदि ध्यान दिया जाए तो भारत का भविष्य संकट में नजर आता है। इस संकट से पार पाने के लिए भारत को विश्व की चौथी महाशक्ति बनने का प्रयास करना चाहिए। भारत विश्व का सर्वाधिक वृहद उद्योग का केन्द्र हैं, जिस पर चीन के साथ-साथ अन्य समस्त देश भी लाभ लेने का प्रयास कर रहे हैं। भारत को यह प्रयास करना चाहिए कि वह मित्र देशों के साथ व्यापार को बढ़ाए। भारत को अपनी कूटनीतिपूर्ण रणनीति से इस दिशा में बढ़ना होगा।
हाल ही में, रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने भारत, रूस और चीन को सामूहिक रूप से कार्य करने का सुझाव दिया था। रूस की इस पहल का, भारत को स्वागत करना चाहिए और रूस की सहायता लेकर चीन से अपने आन्तरिक संबंधो को सुदृढ़ करने का प्रयास करते हुए स्वयं को एक महाशक्ति के रूप में स्थापित करने की चेष्टा करनी चाहिए।
इस कार्य के सफल निष्पादन के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक महत्वपूर्ण निर्णय यह लेना होगा कि भारत-रूस-चीन के गठबंधन को सशक्त करने के लिए एक चतुर राजनीतिज्ञ को इस कार्य में संलग्न करें। एक ऐसा नेता जिसकी सर्वमान्य स्वीकार्यता इन देशों में हो। एक ऐसा नेता जो गोंद की तरह इन तीन देशों को जोड़ने का काम कर सके।
फिलहाल, तो यह दूर की कौड़ी लगता है लेकिन भविष्य किसने देखा है। और, तेजी से बदलते वैश्विक परिदृश्य में इन देशों की यह जरूरत भी है। इसके कम से कम दो बड़े फायदे हो सकते हैं। पहला यह कि
भारत को विश्व की चौथी महाशक्ति के रूप में स्थापित होने में मदद मिलेगी और हमारे ऊपर से चीन का खतरा कुछ हद तक कम होगा। दूसरा, यह कि दुनिया में अमेरिका की दादागिरी को समाप्त करने के लिए एक संगठन बनेगा जो न केवल जनसाख्यिकीय रूप से बल्कि आर्थिक और सैन्य रूप से भी ताकतवर होगा।
(लेखक आईआईएमटी विश्वविद्यालय के कुलाधिपति हैं। यहां व्यक्त विचार उनके स्वयं के हैं।)
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