सांपों के लिए भयमुक्त स्थान है श्री गरुड़ गोविन्द मंदिर

मथुरा से दिल्ली जाते समय राष्ट्रीय राजमार्ग-2 पर छटीकरा के निकट श्री गरुड़ गोविन्द भगवान श्रीकृष्ण की विहार स्थली है। यह छटीकरा स्थित वृंदावन के सबसे पुराने मंदिरों में से एक है।

कहा जाता है कि एक दिन भगवान श्रीकृष्ण गौचारण करते हुए अपने सखाओं के साथ यहां खेल रहे थे। बाल क्रीड़ा करते हुए श्रीदामा सखा को गरुड़ बनाकर और उनकी पीठ पर स्वयं बैठकर इस प्रकार खेलने लगे मानो स्वयं लक्ष्मीपति नारायण गरुड़ की पीठ पर सवार हों।

रामावतार में जब भगवान श्री राम मेघनाद द्वारा नागपाश में बंधकर असहाय जैसे हो गए, उस समय देवर्षि नारद से संवाद पाकर गरुड़ वहां उपस्थित हुए। उनको देखते ही नाग श्रीराम को छोड़कर भाग गए। इससे गरुड़ को श्रीराम की शक्ति में संदेह हो गया।

बाद में महात्मा काकभुषुण्डी के सत्संग एवं तत्पश्चात श्रीकृष्ण लीला के समय श्रीकृष्ण दर्शन से उनका वह संदेह दूर हो गया। जहां उन्होंने गौ, गोप एवं गऊओं के पालन करने वाले श्री गोविन्द का दर्शन किया था, उस स्थान को गरुड़ गोविन्द कहा जाता है। उस समय श्रीकृष्ण ने उनके कंधे पर आरोहण कर उन्हें आश्वासन दिया था।

भगवान गरुड़ गोविंद एवं लक्ष्मी की स्थापना आज से लगभग 5000 वर्ष पूर्व भगवान श्री कृष्ण के प्रपौत्र एवं अनिरुद्ध के पुत्र मथुराधीश राजा वज्रनाभ के द्वारा आचार्य गर्ग मुनि के सानिध्य में कराई गई मानी जाती है।

गरुड़ गोविंद मंदिर स्थित मूर्ति में गरुड़ के पृष्ठ भाग पर भगवान गोविंद अर्थात भगवान नारायण विराजमान हैं। उनके चरणों में भगवान श्रीकृष्ण की पटरानियां सत्यभामा एवं रुक्मिणी की अद्भुत छवियां हैं। भगवान नारायण इस मंदिर में द्वादश भुज स्वरूप में स्थित हैं। इस मंदिर के बारे में एक प्राचीन कहावत भी है - “आठ हाथ को मंदिर, जामे बारह हाथ को ठाकुर।“ ठाकुरजी के वाम अंग में लक्ष्मी विराजमान हैं।

पौराणिक कथाओं के अनुसार, श्रीकृष्ण ने कालिय नाग को अपना आशीर्वाद दिया कि इस स्थान के भीतर कभी भी किसी भी सांप प्रजाति को गरुड़ का भय नहीं होगा। यही कारण है कि यह मंदिर सर्प दोष एवं कालसर्पयोग के निवारण एवं अनुष्ठानों के लिए विश्वविख्यात है। देशभर के लोग इस पूजा के लिए यहां आते हैं। गरुड़ अदिति और कश्यप के पुत्र थे।

हिंदू मान्यताओं के अनुसार, कालसर्प योग एक ऐसी स्थिति है जिसमें एक व्यक्ति अधिक नकारात्मक बन जाता है और वह दूसरों के बीच अपने को हीनता का शिकार समझता है। अवसाद भी इसी स्थिति का एक हिस्सा है।

एक किंवदंती के अनुसार, गढ़चार्य के निर्देश पर वज्रनाभ द्वारा हजारों साल पहले मूल देवता का निर्माण किया गया था। माना जाता है कि मंदिर का निर्माण वहीं किया गया था, जहां भगवान विष्णु के वाहक गरुड़ ने वृंदावन में उनकी प्रार्थना की थी। उन्हें मंदिर के अंदर आने की अनुमति नहीं दी गई थी। भगवान कृष्ण ने भी गरुड़ को यहां विशेष रूप से गोविंद देव का आशीर्वाद दिया था। भगवान कृष्ण गरुड़ की सवारी करते हैं।

देवउठान एकादशी के दिन पचकोसी परिक्रमा में प्रभु श्री गरुण गोविन्द के दर्शन का विशेष महत्व है। मंदिर सुबह साढ़े चार बजे से दोपहर साढ़े तीन बजे तक और शाम को साढ़े चार बजे से रात के 10 बजे तक दर्शनों के लिए खुला रहता है।

वृंदावन में यह मंदिर आगरा हवाई अड्डे से 54 किमी दूर है और वृंदावन, गोवर्धन और मथुरा के भौगोलिक केंद्र में छटीकारा नाम के गांव में स्थित है।

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