भारत में ऐसे हुई होम्योपैथी उपचार की शुरुआत...


भारत में होम्योपैथी का इतिहास एक फ्रांसीसी डॉ. होनिगबर्गर के नाम से जुड़ा हुआ है। वह महाराजा रणजीत सिंह के दरबार से जुड़े थे। वह साल 1829 में लाहौर पहुंचे और बाद में उन्हें पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह के इलाज के लिए आमंत्रित किया गया।

डॉ. होनिगबर्गर बाद में कलकत्ता गए और वहां अभ्यास शुरू किया, जहां उन्हें मुख्य रूप से 'कॉलेरा डॉक्टर' के नाम से जाना जाता था। इस तरह भारत में होम्योपैथी की शुरुआत 19वीं शताब्दी में हुई। यह उपचार पद्धति पहले बंगाल में फली-फूली, और फिर पूरे भारत में फैल गई।

वर्तमान में होम्योपैथी भारत में लोकप्रिय चिकित्सा प्रणालियों में से एक है। हमारा देश वैश्विक स्तर पर सबसे बड़ी होम्योपैथिक दवा निर्माताओं और निर्यातकों में से एक है।

पिछले कुछ समय से आयुष मंत्रालय ने भारत में होम्योपैथी के प्रोत्साहन के लिए कई प्रयास किए हैं। इन प्रयासों के कारण भारत की आबादी का एक बड़ा हिस्सा अब इलाज की इस प्रक्रिया को अपनाने लगा है।

होम्योपैथी केंद्रीय परिषद अधिनियम, 1973 के तहत होम्योपैथी अब भारत में एक मान्यताप्राप्त चिकित्सा प्रणाली है। इसे दवाओं की राष्ट्रीय प्रणाली के रूप में भी मान्यता प्राप्त है।

आम तौर पर, होम्योपैथी चिकित्सा रोगी के शरीर की उपचार प्रक्रिया को ट्रिगर करके काम करती है। यह इस विश्वास पर आधारित है कि हर व्यक्ति के लिए बीमारियों के अलग-अलग लक्षण होते हैं और उसी के अनुसार उसका इलाज किया जाना चाहिए।

इस पद्धति का मानता है कि प्राकृतिक अवयवों की खुराक के माध्यम से इन लक्षणों को उत्प्रेरण करके किसी भी बीमारी को ठीक किया जा सकता है। होम्योपैथी में सर्जरी का उपयोग नहीं होता है। आज, दुनियाभर में होम्योपैथिक उपचार पर बहुत से लोग निर्भर हैं।

होम्योपैथी के तहत माना जाता है कि प्रत्येक व्यक्ति अलग-अलग दवाओं और उपचारों के लिए एक अलग तरीके से प्रतिक्रिया करता है। लक्षणों और प्रतिक्रियाओं की यह विशिष्टता उनमें से प्रत्येक के लिए निर्धारित उपाय में अंतर लाती है।

होम्योपैथी को पूरी तरह से सुरक्षित माना जाता है क्योंकि यह शरीर के लिए हानिकारक तरीके से प्रतिक्रिया नहीं करता, बल्कि यह शरीर में पिछली बीमारियों और निर्धारित दवाओं की उचित और नियमित खुराक के साथ नए विकास की जांच करने में मदद करता है। होम्योपैथी को एक सुरक्षित उपचार माना जाता है क्योंकि यह बेहद कम मात्रा में दवा का उपयोग करता है और इसके बहुत कम दुष्प्रभाव होते हैं।

इसकी गैर-विषाक्तता बच्चों के उपचार के लिए इसे एक अच्छा विकल्प बनाती है। होम्योपैथी का एक अन्य लाभ इस उपचार की लागत है। होम्योपैथिक उपचार एलोपेथिक उपचार की तुलना में काफी सस्ते होते हैं और इनका इलाज काफी प्रभावी पाया गया है।



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