नवनिर्वाचित अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा कुछ भारतीयों को ‘लज्जित’ कर लगातार अपने सैनिक विमानों से भारत वापस भेजा जा रहा है। अपने अमेरिकी दौरे के दौरान पीएम नरेंद्र मोदी ने इस मसले पर जहां अमेरिकी प्रशासन के साथ सहयोग की बात की, वहीं विपक्षी इसकी आलोचना कर रहे हैं।
लेकिन, इस मामले में प्रधानमंत्री मोदी का मत ‘सही’ प्रतीत होता है। यद्यपि, एक बड़ा वर्ग इससे सहमत नहीं दिख रहा है। वरन्, वास्तविकता की कसौटी पर यदि इसे परखें तो अमेरिकी राष्ट्रपति का ‘धन्यवाद’ ही किया जाना चाहिए।
कोई भी देश, कभी भी यह नहीं चाहेगा कि किसी भी देश के नागरिक अवैध रूप से उसके यहां प्रवेश करें। भारत भी नहीं चाहता कि हमारे यहां रोहिंग्या या बाग्लादेशी या पाकिस्तानी नागरिक अवैध रूप से घुसें। ठीक इसी तरह, अमेरिका भी नहीं चाहता है कि उसके यहां किसी भी देश से अवैध नागरिक इस तरह प्रवेश करें। मानव तस्करी जैसे तंत्र को तोड़ने के लिए भी ये कदम बहुत जरूरी हैं। पीएम मोदी ने इसका समर्थन इसी संदर्भ में ज्यादा किया है।
दूसरी नजर से देखा जाए तो दुनिया के सामने ऐसी नजीर पेश करने के लिए उसकी तारीफ ही की जानी चाहिए। अमेरिका की इस नीति से भारतवासियों के ज्ञानचक्षु खोलने तथा वास्तविकता की कसौटी को परखने का एक अवसर मिला है। स्वदेश, राज्य तथा परिवार के प्रति निष्ठा भाव रखने के बजाय गैरजरूरी विदेश की ओर आकर्षित होकर अपने परिवार से विमुख होना किसी आपदा से कम नहीं है।
वर्तमान वैश्वीकरण के युग में भारत का युवा नागरिक अपने जीवन में नित नवीन तकनीकी में पारंगत होने तथा अपने व्यवसायिक जीवन में उन्नति करने की अभिलाषा से अमेरिका, इंग्लैंड और यूरोप जैसे विकसित राष्ट्रों में येन-केन-प्रकारेण पहुंचकर अपना निवास तथा व्यवसाय स्थापित करने का प्रयास कर रहे हैं। ऐसा करते हुए, वे अपने संस्कारों को विस्मृत कर, अपने दायित्वों का त्याग कर, अपने वृद्ध माता-पिता की परवाह किए बिना अवैध तरीके से विदेश जाने का प्रयास करते हैं।
इसके विपरीत, युवा वर्ग अपनी व्यवसायिक अकांक्षा की पूर्ति के लिए यदि विदेश में अपने माता-पिता को साथ ले भी जाते हैं, तो इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि वे अपने आपको वहां के समाज में कितना ढाल पाते हैं। अपनेआपको ढाल न पाने की स्थिति में वे यहां वापस भी आते हैं और यहां उनकी देखभाल के लिए कोई नहीं होता है।
आज यह स्थिति पूरे विश्व के अधिकांश परिवारों की होती जा रही है। यदि भविष्य में भी, इसी प्रकार की स्थिति बनी रही तो इस आपदा का आप सिर्फ अंदाज ही लगा सकते हैं।
प्रत्येक भारतवासी के लिए यह अमेरिकी नीति इस गहन चिंतन का अवसर प्रदान करती है कि भारतीयों को अपने देश के प्रति समर्पण की भावना को जागृत तो करना ही चाहिए, साथ ही, प्रत्येक भारतवासी का यह कर्तव्य भी है कि वह अपने ज्ञान, कौशल तथा नवाचारों का स्वदेश उत्थान के लिए उपयोग करके, अपने देशप्रेम व मातृ-पितृभक्ति की भावना को भी सिद्ध करें।
(लेखक आईआईएमटी विश्वविद्यालय के कुलाधिपति हैं। यहां व्यक्त विचार उनके स्वयं के हैं।)
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