चीन की विस्तारवादी नीति से सतर्क रहे भारत

प्रारम्भ से ही चीन की विदेश नीति विस्तारवादी प्रकृति की रही है। इसके अनुरूप वह भारत के लद्दाख व पूर्वोत्तर प्रदेशों पर आधिपत्य के लिए अपनी गिद्ध दृष्टि से निरन्तर अवसर की प्रतीक्षा में रहा है।

अपनी इसी विस्तारवादी नीति के अन्तर्गत ही चीन ने वर्ष 1962 में उपरोक्त दोनों स्थानों पर आक्रमण करके 45 हजार वर्ग मील से भी अधिक भारतीय भूमि पर अपना अधिकार स्थापित कर लिया था।

इससे पूर्व, उसने तिब्बत की जनता पर अत्याचार करके, उसे भी अपने अधिकार क्षेत्र में ले लिया था और इतना ही नहीं, इसके चलते, वहां के धर्मगुरू दलाई लामा को भी भारत में शरण लेने के लिए विवश होना पड़ा था।

हम अपने अथक प्रयासों के पश्चात भी, अपनी मातृभूमि को अभी तक चीन से मुक्त नहीं करा पाए हैं। मौजूदा दौर में चीन, भारत में विस्तार के लिए सीमाओं पर युद्ध जैसा माहौल बनाकर रखता है।

वर्तमान में चीन के साथ व्यापार में भारत को करीब 85 बिलियन डॉलर का व्यापारिक घाटा प्रतिवर्ष सहन करना पड़ रहा है और भविष्य इस घाटे की 100 बिलियन डॉलर होने की आशंका है। भारत, चीन से अधिकांशत: आयात, इलेक्ट्रोनिक एवं मशीनरी के रूप में कर रहा है जबकि भारत का निर्यात केवल मिनरल, कॉपर, एलॉय एवं खादी तक ही सीमित है।

दूसरी ओर, चीन व पाकिस्तान के मध्य घनिष्ठता का होना, भविष्य में भारत के लिए कष्टदायी सिद्ध होगा। इसका साक्ष्य यह है कि पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर का एक विशाल भूभाग, पाकिस्तान ने चीन को भेंट स्वरूप प्रदान कर दिया है, जहां पर चीन अपने नागरिकों को स्थायी निवास प्रदान करके, उद्योग धंधे स्थापित कर रहा है।

बदले में चीन, पाकिस्तान को आधुनिक हथियारों का निर्यात करने वाला सबसे बड़ा निर्यातक देश बन गया है। पाकिस्तान ने भी चीन के सुरक्षाबलों को अपने देश में आने की अनुमति प्रदान कर रखी है।

वर्तमान में बांग्लादेश भी भारत का मित्र देश नहीं रहा है और वहां भी पाकिस्तान जैसी ही स्थिति उत्पन्न हो गई है। अब पाकिस्तानी नागरिक, वहां बिना वीजा के आवागमन कर सकते हैं और उन्मुक्त व्यापार स्थापित कर सकते हैं। पाकिस्तान के माध्यम से बांग्लादेश पर भी चीन का प्रभाव स्थापित हो रहा है। चीन ने वहां पर एक हवाई अड्डे का निर्माण कार्य प्रारम्भ कर दिया है।

बांग्लादेश की सेना के कमांडर, वाकर-उस-जमान, शेख हसीना के रिश्तेदार हैं, उनको भी पद से हटाने का प्रयास शुरू हो चुका है। ऐसा होने पर वहां की फौज भी पूरी तरह से भारत विरोधी हो जाएगी।

उपरोक्त परिदृश्य से लगता है कि चीन, कई दिशाओं से भारत को अपनी गिरफ्त में लेने की तैयारी कर रहा है। हमें चीन से संघर्ष के सिए सदैव ही तत्पर रहना होगा, क्योंकि चीन कभी भी विश्वासघात कर सकता है। हमें अपनी विदेश नीति पर और अधिक गंभीर होना होगा। बांग्लादेश में, चीन जितना अधिक मजबूत होगा, हमारे पूर्वोत्तर राज्यों के लिए यह उतना ही अधिक हानिकारक होगा।

अब हमें यह भी ध्यान रखना है कि यदि चीन के साथ भारत का संघर्ष होता है तो हमें अकेले भी चीन से संघर्ष करना पड़ सकता है।

(लेखक आईआईएमटी विश्वविद्यालय के कुलाधिपति हैं और यहां व्यक्त विचार उनके स्वयं के हैं।)



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