दिव्य व्यक्तित्व की धनी हैं ये पौराणिक पंचकन्याएं...


हिंदू शास्त्रों में पांच ऐसी महिलाओं का उल्लेख है, जिनका विवाह हुआ, लेकिन वे कन्याएं मानी गईं हैं। पौराणिक साहित्य में रावण की पत्नी मंदोदरी, बाली की पत्नी तारा, गौतम ऋषि की पत्नी अहिल्या, पांडु की पत्नी कुंती और पांडवों की पत्नी द्रौपदी को ‘पंचकन्या’ का दर्जा दिया गया है। इन पांचों स्त्रियों को दिव्य माना गया है।

अहिल्या को इन पंचकन्याओं में सबसे प्रमुख माना जाता है। कई दस्तावेजों में यह उल्लिखित है कि अहिल्या को स्वयं ब्रह्मा ने बनाया, वहीं कुछ दस्तावोजों के अनुसार, उनका संबंध सोम वंश से था। अहिल्या की खूबसूरती से स्वयं इन्द्र भी खुद को बचा नहीं पाए और एक बार उन्होंने ऐसा किया जिसका खामियाजा स्वयं अहिल्या को भुगतना पड़ा।

देवराज इन्द्र ने अहिल्या के पति गौतम ऋषि का वेश धर उनके आश्रम में प्रवेश कर अहिल्या के सामने प्रणय निवेदन किया। जब गौतम ऋषि ने इन्द्र को अपने ही वेश में अपने आश्रम से निकलते हुए देखा तब वह सारी बात समझ गए। क्रोधावेग में उन्होंने अपनी पत्नी अहिल्या को पत्थर बन जाने का श्राप दिया। लेकिन, अहिल्या द्वारा क्षमा याचना के बाद ऋषि ने कहा कि जब तक स्वयं भगवान राम अपने पैरों से उन्हें नहीं छुएंगे, तब तक अहिल्या इंसानी रूप धारण नहीं कर पाएगी। यह श्राप देकर गौतम ऋषि तप करने के लिए हिमालय की ओर प्रस्थान कर गए।

फिर वह समय आया जब गुरु विश्वामित्र के साथ विचरण करते हुए राम गौतम ऋषि के सुनसान पड़े आश्रम पहुंचे। वहां उन्हें अहिल्या रूपी पत्थर को देखा। विश्वामित्र ने राम को सारी घटना बताई, जिसे सुनकर राम ने अहिल्या का उद्धार किया।

किष्किंधा की महारानी और बाली की पत्नी तारा का पंचकन्याओं में दूसरा स्थान है। कुछ ग्रंथों के अनुसार तारा, बृहस्पति की पौत्री थी तो कुछ के अनुसार समुद्र मंथन के समय निकली मणियों में से एक मणि तारा थी। तारा इतनी खूबसूरत थी कि देवता और असुर सभी उनसे विवाह करना चाहते थे।

बाली और सुषेण समुद्र मंथन के दौरान देवताओं के सहायक के तौर पर मौजूद थे। जब तारा क्षीर सागर से निकली तब दोनों ने ही उनसे विवाह करने की इच्छा प्रकट की। बाली, तारा के दाहिनी तरफ खड़ा था और सुषेण उनकी बायीं ओर। तब विष्णु ने इस समस्या का हल किया कि जो व्यक्ति कन्या की दाहिनी ओर खड़ा होता है वह उसका पति और बायीं ओर खड़ा होने वाला उसका पिता होता है। ऐसे में बाली को तारा का पति घोषित किया गया।

असुरों के साथ युद्ध के दौरान बाली के मृत्यु को प्राप्त जैसी अफवाह उड़ने पर सुग्रीव ने बाली की पत्नी के साथ विवाह कर खुद को किष्किंधा का सम्राट घोषित कर दिया। लेकिन, जब बाली वापस आया तब उसने अपने भाई से राज्य और अपनी पत्नी को हासिल करने के लिए आक्रमण कर दिया। बाली ने सुग्रीव को अपने राज्य से बाहर कर दिया। जब सुग्रीव को राम का साथ प्राप्त हुआ तब उसने वापस आकर फिर बाली को युद्ध के लिए ललकारा।

तारा समझ गई कि सुग्रीव के पास अकेले बाली का सामना करने की ताकत नहीं है, इसलिए हो न हो उसे राम का समर्थन प्राप्त हुआ है। उसने बाली को समझाने की कोशिश भी की लेकिन बाली ने समझा कि सुग्रीव को बचाने के लिए तारा उसका पक्ष ले रही है। बाली ने तारा का त्याग कर दिया और सुग्रीव से युद्ध करने चला गया।

जब राम की सहायता से सुग्रीव ने बाली का वध किया तो मृत्यु शैया पर रहते हुए बाली ने अपने भाई सुग्रीव से कहा कि वह हर मामले में तारा का सुझाव अवश्य ले। तारा के परामर्श के बिना कोई भी कदम उठाना भारी पड़ सकता है।

पंचकन्याओं में तीसरा नाम है मंदोदरी। मंदोदरी ने रावण को हर बुरा काम करने से रोका। हिन्दू धर्म से जुड़े दस्तावेजों में मंदोदरी को एक ऐसी स्त्री के रूप में दर्शाया गया है जो हमेशा सत्य के मार्ग पर चली। मंदोदरी, असुर राजा मयासुर और हेमा नामक अप्सरा की पुत्री थी। मंदोदरी की सुंदरता पर मुग्ध होकर रावण ने उससे विवाह किया था।

मंदोदरी हमेशा रावण को यही सलाह देती थी कि बुराई के मार्ग को त्यागकर सत्य की शरण में आ जाए, लेकिन अपनी ताकत पर गुमान करने वाले रावण ने कभी मंदोदरी की बात को गंभीरता से नहीं लिया। रावण की मृत्यु के पश्चात, भगवान राम के कहने पर विभीषण ने मंदोदरी से विवाह किया।

पंचकन्या के रूप में चौथा नाम कुंती का आता है। हस्तिनापुर के राजा पांडु की पत्नी और तीन ज्येष्ठ पांडवों की माता, कुंती को ऋषि दुर्वासा ने एक ऐसा मंत्र दिया था, जिसके अनुसार वह जिस भी देवता का ध्यानकर उस मंत्र का जाप करेंगी, वह देवता उन्हें पुत्र रत्न प्रदान करेगा।

कुंती को जिज्ञासावश इस मंत्र के प्रभावों का परीक्षण करना था। इसलिए, एक दिन उन्होंने भगवान सूर्य का ध्यानकर मंत्र का जाप किया। मंत्र के प्रभाव से सूर्य देव प्रकट हुए और कुंती को एक पुत्र प्रदान किया। वह पुत्र कर्ण था, लेकिन उस समय कुंती अविवाहित थी इसलिए उन्हें कर्ण का त्याग करना पड़ा।

बाद में, एक स्वयंवर में कुंती और पांडु का विवाह हुआ। पांडु को एक ऋषि द्वारा यह श्राप मिला हुआ था कि जब भी वह किसी स्त्री का स्पर्श करेगा, उसकी मृत्यु हो जाएगी। पांडु की मृत्यु के पश्चात कुंती ने धर्म देव को याद कर उनसे युद्धिष्ठिर, वायु देव से भीम और इन्द्र देव से अर्जुन को प्राप्त किया।

द्रौपदी भी पंच कन्याओं में से एक हैं। द्रौपदी राजा द्रुपद की पुत्री तथा अत्यंत साहसी, धैर्यवान, और पवित्र स्त्री थी। द्रौपदी भगवान श्री कृष्ण की सखी तथा पांच पांडवों की पत्नी थी। द्रौपदी का व्यक्तित्व काफी मजबूत था। स्वयंवर के दौरान अर्जुन को अपना पति स्वीकार करने वाली द्रौपदी को कुंती के कहने पर पांचों भाइयों की पत्नी बनकर रहना पड़ा।

प्रत्येक पांडव से द्रौपदी को एक-एक पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। चौपड़ के खेल में हारने के बाद जब पांडवों को अज्ञातवास और वनवास की सजा हुई, तब द्रौपदी ने भी उनके साथ सजा का पालन किया।

कुरुक्षेत्र के युद्ध में अपने पुत्र, पिता और भाई को खोने वाली द्रौपदी को कुछ ग्रंथों में मां काली तो कुछ में धन की देवी लक्ष्मी का अवतार भी कहा जाता है।



Related Items

  1. हजार साल बाद आया है हिंदू पुनर्जागरण का नया दौर...

  1. अग्निदेव और उनकी ‘स्वाहा’ के साथ विवाह की कहानी

  1. सिर्फ इमारतें ही नहीं, साहित्य और स्वतंत्रता संग्राम का भी गढ़ रहा है आगरा




Mediabharti