फर्ज़ी डायबिटीज़ इलाज से लेकर सियासी रिश्वतों तक, हनी ट्रैप से लेकर क्रिप्टो ठगी तक, आज का भारत एक धोखाधड़ी के मेले में बदल चुका है, जहां ईमान की जगह चालाकी फल-फूल रही है। हर क्लिक के पीछे कोई जाल है, हर वादा एक फ़रेब।
गृहिणियां ‘ऑनलाइन जॉब्स’ के नाम पर ठगी का शिकार हो रही हैं, कारोबारी साइबर माफ़िया से लुट रहे हैं, और युवा प्रेमी ‘डिजिटल ब्लैकमेल’ में फंस रहे हैं। संसद से लेकर प्राइवेट क्लीनिक तक, सड़ांध गहरी है, कभी आध्यात्मिक संपदा के लिए मशहूर भारत अब ‘स्कैम फैक्ट्री ऑफ द वर्ल्ड’ बनने की राह पर है।
भारत का ठगी उद्योग सिर्फ़ ज़िंदा नहीं, बल्कि तेज़ी से फैल रही है। सरकारी और साइबर सुरक्षा रिपोर्टों के अनुसार, 2025 के अंत तक भारतीय ₹20,000 करोड़ से ज़्यादा रकम केवल ऑनलाइन ठगी में गंवा देंगे, यह पिछले वर्ष की तुलना में 200 फीसदी वृद्धि है। वे ही डिजिटल औज़ार, यूपीआई, सोशल मीडिया, इंस्टेंट पेमेंट और स्मार्टफ़ोन, जो डिजिटल क्रांति की पहचान थे, अब ठगों के हथियार बन चुके हैं।
एक साधारण मैसेज, ‘आपका केवाईसी एक्सपायर हो रहा है’, या कोई जादुई जॉब ऑफर, आपकी तबाही की शुरुआत हो सकता है। गृहिणियां ‘ऑनलाइन टास्क’ के झांसे में फंसती हैं, छात्र ‘प्रोसेसिंग फ़ीस’ देकर नौकरियों के जाल में जाते हैं, और बैंकर्स-इंजीनियर्स तक एआई जेनरेटेड स्कैम में उलझ रहे हैं।
एक अरब से ज़्यादा यूपीआई यूज़र का डेटा अब ठगों की मछली पकड़ने की झील बन चुका है। एक क्यूआर कोड स्कैन करते ही खाता साफ़, एक फर्ज़ी लिंक पर क्लिक करते ही हज़ारों रुपये गायब। अनुमान है कि 2025 में एक लाख से ज़्यादा यूपीआई स्कैम मामलों में ₹3,000 करोड़ का नुकसान होगा।
आम आदमी औसतन ₹1,000 से ₹5,000 तक गंवाता है, पर करोड़ों पीड़ित जब एक साथ जुड़ते हैं, तो यह नुकसान पहाड़ बन जाता है। पुलिस मुश्किल से 20 फीसदी रकम ही ट्रेस कर पाती है; बाकी ‘म्यूल अकाउंट’ के ज़रिए विदेशी सर्वरों पर गायब हो जाती है। पुराने पोन्ज़ी स्कीम अब डिजिटल रूप में लौट आए हैं, फर्ज़ी ट्रेडिंग ऐप, क्रिप्टो कॉइन और एआई बॉट्स ‘डबल इनकम’ का सपना दिखाकर जेबें खाली कर रहे हैं। 2025 में ऐसे 30,000 से ज़्यादा इन्वेस्टमेंट स्कैम हुए और ₹1,500 करोड़ डूब गए।
पिछले कुछ खुलासों ने बताया कि इन ठगी नेटवर्क के धागे दक्षिण-पूर्व एशिया से जुड़े हैं। म्यांमार और कंबोडिया के फर्ज़ी कॉल सेंटरों से भारतीय बोलने वाले गैंग 24 घंटे लोगों को लूटते हैं। डीपफेक सीईओ, ‘वेरिफाइड’ वेबसाइट और नकली इंफ्लुएंसर पीड़ितों को भरोसा दिलाते हैं, जब तक उन्हें सच्चाई का एहसास होता है, सर्वर बंद हो चुके होते हैं और पैसा गायब।
सिर्फ़ दिल्ली में ही ₹300–400 करोड़ डिजिटल इन्वेस्टमेंट ठगी में गंवाए गए, लेकिन रिकवरी 20 फीसदी से भी कम रही। शर्म और संसाधनों की कमी के चलते अधिकांश केस बिना आवाज़ के दफन हो जाते हैं।
कंप्यूटर विशेषज्ञ चतुर्भुज तिवारी कहते हैं, “सबसे डरावनी ठगी है ‘डिजिटल अरेस्ट स्कैम’। किसी वर्दीधारी अफसर का वीडियो कॉल आता है, जैसे असली पुलिस स्टेशन में बैठा हो, दीवार पर बैज, मेज़ पर फाइलें, और कहता है, ‘आप मनी लॉन्ड्रिंग के आरोप में जांच के अधीन हैं।’ सारा दृश्य असली लगता है, पर यह पूरा डिजिटल झूठ होता है।” ठग ‘सीबीआई’ या पुलिस बनकर फर्ज़ी वारंट भेजते हैं और ‘ज़मानत’ के नाम पर लाखों रुपये वसूलते हैं। 2025 में 80,000 से ज़्यादा भारतीय इस स्कैम में फंसे और ₹6,000 करोड़ गंवा बैठे।
बेरोज़गारी और असुरक्षा के दौर में जॉब स्कैम महामारी बन चुके हैं। 2025 में 20,000 से ज़्यादा लोगों ने व्हाट्सएप और लिंक्डइन पर फर्ज़ी जॉब ऑफर के चलते पैसा गंवाया। ठग कंपनियों के लोगो क्लोन करते हैं, मानव संसाधन प्रोफाइल बनाते हैं, और ‘ट्रेनिंग फीस’ या ‘वेरिफिकेशन चार्ज’ मांगते हैं।
सामाजिक कार्यकर्ता मुक्ता बताती हैं, “अब शिक्षा जगत भी अछूता नहीं। एक मशहूर कोचिंग संस्थान के नाम पर साइबर ठगों ने ₹800 करोड़ ठग लिए। हर गिरफ्तारी के बाद दस नए रिक्रूटर उभर आते हैं, और अब तो एआई चैटबॉट इंटरव्यू तक लेते हैं ताकि ठगी असली लगे।”
ऑनलाइन विवाह बाज़ार में भी हज़ारों महिलाएं फर्ज़ी दूल्हों के जाल में फंस रही हैं। एनआरआई, डॉक्टर या सीईओ बनकर ठग लाखों रुपये ऐंठ लेते हैं। एआई से एडिट की गई तस्वीरें, विदेशी लहज़े की नकली बातचीत, और फिर ‘वीज़ा’, ‘कस्टम’ या ‘मेडिकल’ का बहाना, ठगी पूरी हो जाती है। अकेले 2025 में ₹1,000 करोड़ से ज़्यादा ऐसे मामलों में गंवाए गए। कई केस शर्म या डर के कारण सामने नहीं आते हैं।
एआई अब ठगों का सबसे बड़ा हथियार है। 2025 में 15,000 वॉइस-क्लोनिंग स्कैम दर्ज हुए, पिछले साल की तुलना में दोगुना। सोचिए, आपकी बेटी की आवाज़ में कॉल आता है, ‘पापा, मैं मुसीबत में हूं, तुरंत पैसे भेजो।’ आवाज़ नकली, डर असली।
डीपफेक ने सच और झूठ की सरहद मिटा दी है। ठग सीईओ, अफ़सरों और सेलिब्रिटीज़ की आवाज़ें क्लोन करके पैसे मांगते हैं। एक केस में टेलीकॉम टायकून की आवाज़ से करोड़ों निकलवा लिए गए। सालभर में ऐसे स्कैम से ₹1,000 करोड़ से ज़्यादा का नुकसान हुआ।
इन सबका असर केवल आर्थिक नहीं, मानसिक भी है, डिप्रेशन, पैरानॉया और समाज से दूरी। एक पीड़ित का कहना है, “उन्होंने सिर्फ़ मेरा पैसा नहीं लूटा, मेरा भरोसा भी मार दिया।”
तकनीक ने हमें ताक़त दी थी, लेकिन जागरूकता के बिना वही ताक़त अब असहायता का प्रतीक बन गई है। आज ‘डिजिटल इंडिया’ के चमकते पर्दे के पीछे ‘स्कैमिस्तान’ की स्याही गहराती जा रही है।






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