मौजूदा समय में जब पूरे देश पर चुनावी बुखार चढ़ा हुआ है तो दोहे और व्यंग्य को समेटे कुमार अतुल का नया कविता संग्रह ‘पोल डांस’ बेहद प्रासंगिक हो चला है। मौजूदा सियासत की विसंगतियों पर इसमें करारा व्यंग्य किया गया है।
एक बानगी देखिए...
“परदेसी घर आ गया जनता कहे पुकार..., पांच साल के बाद फिर उमड़ पड़ा है प्यार।
एक दिखाए बाटली, एक दिखाए नोट..., असमंजस में हम पड़ें डालें किसको वोट।।“
ठीक इसी प्रकार...
“दारू की दरिया बही, वादों की बरसात..., लतखोरी जी खा रहे दो मुर्गों की लात।
राजपुत्र राजा बने..., बने चोर का चोर, नेतासुत नेता बने इसमें कैसा शोर।।“
महज 150 रुपये की कीमत वाला यह संग्रह ऐसे ही कई राजनीतिक तंज समेटे हुए बेहद पठनीय है।
इससे पहले, मेट्रोपॉलिटन संस्कृति की संवेदनहीनता की पोल खोलता उनका काव्य संग्रह ‘महानगर’ खासा चर्चित हुआ था। साहित्य जगत में इस संग्रह को कफी तारीफें मिली थीं।
कुमार अतुल कई दशकों से पत्रकारिता में सक्रिय हैं। वह आकाशवाणी के लिए लगभग एक दशक तक स्क्रिप्ट राइटिंग भी कर चुके हैं। विविध विषयों पर उनके सैकड़ों लेख, कहानियां, गज़लें व कविताएं प्रकाशित होते रहे हैं।
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