भारत को स्वतंत्रता यूं ही प्राप्त नहीं हुई है। अपने रक्त से असंख्य क्रांतिवीरों ने भारत माता का अभिषेक किया है। स्वतंत्रता का उद्देश्य सम्मुख रख वे हंसते-हंसते फांसी पर झूले हैं। वह दौर ही दूसरा था। गुलामी और अत्याचार के बीच न डिगने का संकल्प अटल था। यही संकल्प और अनथक प्रयासों की परिणति आज स्वतंत्र भारत के रूप में हमारे समक्ष है। मातृभूमि की स्वतंत्रता के लिए सर्वोच्च बलिदान देने वाले ऐसे ही एक वीर थे... राजेंद्र नाथ लाहिड़ी...
राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी काकोरी की घटना में शामिल थे। ब्रिटिश सरकार उनसे इतनी सशंकित थी कि उन्हें समय से पूर्व ही फांसी पर चढ़ा दिया गया। राजेन्द्र नाथ लाहिड़ी का जन्म 29 जून 1901 को बंगाल के पबना जिले में हुआ। इनके पिता का नाम क्षिति मोहन लाहिड़ी और मां का नाम बसंत कुमारी था। वर्ष 1909 में इनका परिवार बंगाल से वाराणसी आ गया। राजेंद्र नाथ की पढ़ाई वाराणसी में हुई। देशप्रेम की भावना उनमें बचपन से ही थी। इसका एक कारण उनके घर का परिवेश भी था। राजेंद्र नाथ के पिता और भाई अनुशीलन समिति के सदस्य थे। वे गुप्त रूप से समिति कार्यों में योगदान देते थे। इन्हीं सब घटनाओं का प्रभाव राजेन्द्र नाथ पर भी पड़ा। इतिहास विषय में स्नातकोत्तर करने के लिए राजेन्द्र नाथ ने काशी हिंदू विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया। संयोग से वहां उनकी भेंट शचीन्द्र नाथ सान्याल से हुई और यहीं से उनके क्रांतिकारी जीवन की नींव पड़ी।
शचीन्द्र नाथ सान्याल के संपर्क में आने के बाद राजेन्द्र नाथ लाहिड़ी अनुशीलन समिति काशी के सशस्त्र विभाग के प्रभारी भी बनाए गए। काकोरी की घटना में राजेन्द्र नाथ लाहिड़ी का प्रमुख योगदान था। रामप्रसाद बिस्मिल के घर हुई योजना बैठक में राजेन्द्र नाथ भी सम्मिलित हुए। योजनानुसार राजेन्द्र नाथ ने काकोरी से ट्रेन छूटते ही उसे रोक लिया। 9 अगस्त 1925 को काकोरी की घटना हुई। काकोरी प्रकरण के बाद राजेन्द्र नाथ कलकत्ता चले गए। यहां एक प्रशिक्षण के दौरान हुई असावधानी के बाद पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया। उन पर मुकदमा दायर किया और दस वर्ष की सजा हुई। अपील करने के बाद यह घटकर पांच वर्ष कर दी गई। इसके बाद ब्रिटिश सरकार ने दल के सभी प्रमुख क्रान्तिकारियों पर मुकदमा दायर किया और लंबी न्यायिक कार्यवाही चली। राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खां समेत राजेन्द्र नाथ लाहिड़ी को भी फांसी की सजा हुई। लेकिन, उन्हें अन्य साथियों से पूर्व 17 दिसंबर को ही फांसी पर चढ़ा दिया गया।
फांसी की सुबह राजेन्द्र नाथ लाहिड़ी ने व्यायाम और दैनिक आराधना की। जेलर यह देखकर आश्चर्यचकित रह गए। राजेंद्र नाथ लाहिड़ी ने फांसी से पूर्व जो कहा, उसे पढ़कर हृदय उस क्रांतिवीर के प्रति, कृतज्ञता से भर उठता है और प्रत्येक भारतीय, उनकी वीरता को प्रणाम करने के लिए, विवश हो जाता है। राजेन्द्र नाथ ने कहा–“मैं मरने नहीं जा रहा अपितु भारत को स्वतंत्र कराने के लिए पुनर्जन्म लेने जा रहा हूं।” प्रतिवर्ष इस दिन उनकी स्मृति में राजेन्द्र नाथ लाहिड़ी बलिदान दिवस मनाया जाता है। राजेन्द्र नाथ का बलिदान आने वाली कई पीढ़ियों को प्रेरित करता रहेगा।
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