असली प्रगति के लिए पहले दिल और दिमाग हो दुरुस्त

भारत में विकास की दिशा में तेजी से कदम बढ़ाए जा रहे हैं, लेकिन क्या सिर्फ सड़कों और हवाई अड्डों की गिनती बढ़ाने से हमारा समाज वास्तव में प्रगति कर रहा है? क्या जुमलेबाजी, बड़बोलापन, चालबाजी, और ड्रामेबाजी से हम अपने लक्ष्यों को प्राप्त कर सकते हैं? नहीं, असली प्रगति तभी होगी जब हम अपने दिल और दिमाग को दुरुस्त करेंगे।

लोकतांत्रिक मूल्यों का पालन, कानून का शासन, त्वरित न्याय, जवाबदेही, और संविधान का सम्मान - ये हैं वास्तविक प्रगति के स्तंभ। जब तक हम इन मूल्यों को अपने जीवन में नहीं अपनाएंगे, तब तक हमारा समाज वास्तव में प्रगति नहीं कर सकता।

Read in English: Essential Fusion of Heart and Mind in India's Development

चूंकि, भारत भौतिक अवसंरचना विकास में भारी निवेश कर रहा है, इसलिए आधुनिक उदार, लोकतांत्रिक सामाजिक-सांस्कृतिक सॉफ्ट अवसंरचना के निर्माण के महत्व को पहचानना आवश्यक है। देश का पुरातन शासन मॉडल, सामंती मानसिकता और अभिजात वर्ग की पक्षधर रवैया रचनात्मकता, प्रयोग और प्रगति में बाधा डालते है। भारत को सही मायने में बदलने के लिए, हमें मतदाताओं में मनोवृत्ति और व्यवहारिक परिवर्तनों को प्राथमिकता देनी चाहिए।

वर्तमान स्थिति बेहद चिंताजनक है। सुविधाओं और क्षमताओं में महत्वपूर्ण निवेश के बावजूद, परिणाम असंतोषजनक हैं। शहर रहने लायक नहीं रह गए हैं, नदियां बुरी तरह प्रदूषित हैं और महिलाओं के खिलाफ अपराध लगातार बढ़ रहे हैं। शैक्षिक और स्वास्थ्य सेवा प्रणालियों में जवाबदेही की कमी है, जबकि नौकरशाही की उदासीनता सभी स्तरों पर व्याप्त है। यह एक स्पष्ट संकेत है कि केवल भौतिक अवसंरचना युक्त विकास ही पर्याप्त नहीं है।

एक मानवीय और सभ्य समाज बनाने के लिए, भारत को अपने शासन मॉडल में बदलाव करने और सामाजिक रूप से प्रासंगिक और जन-सशक्त राजनीतिक और न्यायिक प्रणालियों को विकसित करने में निवेश करने की आवश्यकता है। इसके लिए मानसिकता में मूलभूत बदलाव की आवश्यकता है, सामंती और अभिजात वर्ग के प्रति झुकाव से हटकर अधिक समावेशी और लोकतांत्रिक दृष्टिकोण की ओर।

मोदी के नेतृत्व वाली मौजूदा एनडीए सरकार बौद्धिक क्षितिज को व्यापक बनाने और मनोवृत्ति तथा व्यवहार में बदलाव लाने में विफल रही है, जिससे प्रगति भी बाधित हो रही है। अंतर्निहित सामाजिक व सांस्कृतिक मुद्दों को संबोधित किए बिना केवल सड़कें, हवाई अड्डे और संस्थान बनाने से वांछित परिणाम नहीं मिलेंगे।

भारत को अपनी मानव पूंजी विकसित करने, नागरिक भावना की संस्कृति को बढ़ावा देने, कानून के शासन के प्रति सम्मान और जवाबदेही पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है।

ऐसी बात नहीं है कि निराशा बहुत गहरी हो गई हो। कई प्रयासों के माध्यम से इस लक्ष्य को अभी भी प्राप्त किया जा सकता है, बशर्ते, शिक्षा में सुधार किया जाए। आलोचनात्मक सोच, रचनात्मकता और समावेशिता पर जोर दिया जाए। सामाजिक जागरूकता के लिए अभियान चलाए जाएं। लैंगिक समानता, पर्यावरण चेतना और नागरिक जिम्मेदारी को बढ़ावा दिया जाए।

न्यायिक सुधार पर काम किया जाए। न्याय तक पहुंच, पारदर्शिता और जवाबदेही को सुनिश्चित किया जाए। स्थानीय शासन को सशक्त बनाने और सहभागी लोकतंत्र को प्रोत्साहित करने के जरूरत है। नए प्रयोगों और नवाचारों को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। रचनात्मकता और जोखिम लेने की संस्कृति को बढ़ावा दिया जाना चाहिए।

सामाजिक-सांस्कृतिक बुनियादी ढांचे के विकास को प्राथमिकता देकर, भारत सतत प्रगति के लिए एक ठोस आधार तैयार कर सकता है। इसके लिए नीति निर्माताओं, नागरिक समाज और व्यक्तियों के सामूहिक प्रयास की आवश्यकता है ताकि मौजूदा मानसिकता को चुनौती दी जा सके और अधिक समावेशी, लोकतांत्रिक और मानवीय समाज की दिशा में काम किया जा सके। तभी भारत वास्तव में एक आधुनिक, उदार और लोकतांत्रिक राष्ट्र बन सकता है।

लेकिन, यक्ष प्रश्न यही है, क्या वर्तमान राजनैतिक दलों में इसके लिए जरूरी बौद्धिक सामर्थ्य, लोकतांत्रिक सोच और दर्शन है जो इस अहम जिम्मेदारी का संकल्प के साथ निर्वहन कर सकें।

Related Items

  1. चौंकानेवाली रही है पिछले दशक में भारत की विकास यात्रा

  1. ट्रंप का यू-टर्न और भारत-अमेरिकी रिश्तों की सामरिक वास्तविकता

  1. वैश्विक व्यापार संघर्ष के बीच आत्मनिर्भर भारत की राह



Mediabharti