हमारे देश के हर राज्य में अनेक ऐसे प्राचीन मंदिर हैं, जिनका इतिहास भी काफी रोचक रहा है। राजस्थान के उदयपुर से 23 किमी दूर नागदा गांव में सास-बहू मंदिर के निर्माण की भी एक ऐसी ही रोचक कहानी है।
सास-बहू का मंदिर उदयपुर के प्रसिद्ध ऐतिहासिक और पर्यटन स्थलों में से एक है। दरअसल, यहां दो बड़े मुख्य मंदिर हैं। इनमें से पहला बहू का मंदिर, दूसरे सास के मंदिर से थोड़ा छोटा है। दसवीं सदी में निर्मित इस मंदिर की दीवारों को रामायण की विभिन्न कहानियों के साथ सजाया गया है। मूर्तियों को दो चरणों में इस तरह से व्यवस्थित किया गया है कि वे एक-दूसरे को घेरे रहती हैं।
सास-बहू के इस मंदिर में एक मंच पर त्रिमूर्ति यानी ब्रह्मा, विष्णु और महेश की छवियां खुदी हुई हैं, जबकि दूसरे मंच पर राम, बलराम और परशुराम के चित्र लगे हुए हैं। मंदिर के प्रवेश द्वार पर नक्काशीदार छत और बीच में कई खांचों वाली मेहराबें हैं। एक वेदी और एक मंडप दोनों संरचनाएं मंदिर की सामान्य विशेषताएं हैं।
करीब 1100 साल पहले इस मंदिर का निर्माण कच्छवाहा राजवंश के राजा महिपाल और रत्नपाल के कालखंड में करवाया गया था। मंदिर के प्रवेश-द्वार पर बने छज्जों पर महाभारत की पूरी कथा अंकित है, जबकि इन छज्जों से लगे बाएं स्तंभ पर शिव-पार्वती की प्रतिमाएं हैं। हालांकि, आज दोनों ही मंदिरों के गर्भगृहों में से देव प्रतिमाएं गायब हैं।
सास-बहू मंदिर पांच छोटे मंदिरों से घिरा हुआ है। सास के मंदिर में विशेष त्योहारों पर भगवान विष्णु की मूर्ति रखने के लिए सामने की जगह में एक तोरणद्वार है। इसके तीन दरवाजे तीन दिशाओं की ओर हैं, जबकि चौथा दरवाजा एक ऐसे कमरे में है जहां लोग नहीं जा सकते। मंदिर के प्रवेश द्वार पर, देवी सरस्वती, भगवान ब्रह्मा और भगवान विष्णु की मूर्तियां रखी गई हैं। मंदिर की दीवारों पर अद्भुत नक्काशी की गई है।
कहा जाता है कि मेवाड़ राजघराने की राजमाता ने यहां भगवान विष्णु का मंदिर और बहू ने शेषनाग के मंदिर का निर्माण कराया था। सास-बहू के द्वारा निर्माण कराए जाने के कारण ही इन मंदिरों को 'सास-बहू के मंदिर' के नाम से पुकारा जाता है।
बहू के मंदिर का सभामंडप अपने आप में अनूठा है। प्रत्येक स्तंभ पर एक पत्थर से निर्मित प्रतिमाएं लगी हुई हैं। मंदिर में लगी नारी प्रतिमाएं नारी सौंदर्य को दर्शाने के लिए उल्लेखनीय हैं। मंदिर के सामने भारी पत्थर से बना तोरण है, जिसमें तीन द्वार है।
इस मंदिर में भगवान विष्णु की 32 मीटर ऊंची और 22 मीटर चौड़ी प्रतिमा है। यह प्रतिमा सौ भुजाओं से युक्त है, इसलिए इस मंदिर को ‘सहस्त्रबाहु मंदिर’ के नाम से भी जाना जाता है। कुछ लोगों के अनुसार ‘सहस्त्रबाहु’ शब्द ही बाद में बिगड़कर ‘सास-बहू का मंदिर‘ बन गया। दोनों मंदिरों के बीच में ब्रह्मा का भी एक छोटा सा मंदिर है।
मंदिर के इतिहास की बात की जाए तो इतिहासकारों का मानना है कि सास-बहू के इन्हीं मंदिरों के आसपास मेवाड़ राजवंश की स्थापना हुई थी। कहते हैं कि दुर्ग पर जब मुगलों ने कब्जा कर लिया था तो सास-बहू के इस मंदिर को चूने और रेत से भरवाकर बंद करवा दिया गया था। मंदिर के अंदर विष्णु भगवान के अलावा शिव सहित कई पूजनीय देवताओं की मूर्तियों को मुगलों ने खंडित कर दिया, जिसके बाद से इस मंदिर का आकार रेत के पहाड़ की तरह लगने लगा। हालांकि, मुगलों के बाद भारत में जब अंग्रेज आए और पूरे देश पर कब्जा कर लिया, तब इस मंदिर को जनता के लिए वापस खुलवा दिया गया।
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