सर्वविदित है कि इस संसार के रचयिता और पालनहार भगवान श्री कृष्ण ही हैं। श्री कृष्ण नाम एक है, परन्तु रूप अनेक हैं। श्री कृष्ण, यशोदा एवं देवकी के लिए पुत्र, राधा के लिए प्रियतम, गोप-गोपियों, सुदामा और अर्जुन के लिए सखा, कंस के लिए निकन्दन, मीरा के कृष्ण, अपने भक्तों के जनार्दन अथवा पालनहार, दक्षिण भारत में गोविंदा। तात्पर्य यह कि जिस भक्त ने, जिस भाव से उनका भजन किया, वह उसे उसी रूप में, उसे प्राप्त हुए। अभिप्राय यह कि श्री कृण के अनेक रूप है, परन्तु वह एक ही परमपिता परमात्मा हैं।
भगवान श्री कृष्ण ही एक ऐसे ईश्वर हैं, जिन्होंने मानवीय रूप में अवतरित होकर पृथ्वी पर अपनी इह लीलाओं के द्वारा प्रति क्षण स्वयं के ईश्वर होने का प्रमाण जनमानस को दिया। सर्वप्रथम, मथुरा की कारागार में देवकीनन्दन के रूप में जन्म लेकर, कारागार में रक्षकों को गहन निद्रा में पहुंचाकर, पिता वसुदेव के द्वारा छाज में ले जाते हुए उफनती यमुना को शांत कराया और नन्द बाबा के घर पहुंचकर मां यशोदा के आंचल में अपनी बाल लीलाएं की। उन्होंने 14 वर्ष की अल्पायु तक विभिन्न चमत्कार किए यथा - राक्षसी पूतना, ताड़का, नरकासुर, शकटासुर और कालिया नाग का दमन किया। मां यशोदा को अपने मुख में समस्त ब्रह्माण्ड के दर्शन कराए, गोवर्धन पर्वत को अपनी कनिष्ठ अंगुली पर धारणकर देवराज इन्द्र के दंभ को चकनाचूर किया। मथुरा नरेश कंस का वध करके अपने पिता वसुदेव को कारागार से मुक्त कराया और अपने नाना को मथुरा की राजगद्दी पर शोभायमान कराया।
श्री कृष्ण ने अपनी युवावस्था में पांडवों को उनका सम्मान प्राप्त कराने के लिए महाभारत युद्ध की सम्पूर्ण बिसात अपनी चतुराई से तैयार की। सम्पूर्ण महाभारत में एक विशिष्ट तथ्य यह था कि श्री कृष्ण ने प्रत्यक्ष रूप से स्वयं कुछ न करके भी अपने चातुर्य से सब कुछ करा दिया। कौरवों का दमन कराया, गांधारी के वरदान स्वरूप दुर्योधन के सम्पूर्ण शरीर को वज्र के समान होने से पूर्व ही उसकी जंघा को कमजोर करने के लिए उस भाग को उसकी माता के वरदान की शक्ति से दूर कर दिया, जो कि बाद में उसकी मृत्यु का कारण बना। सभी को उन्होंने उनके कर्मों के अनुसार ही परिणाम प्रदान दिया। यही ईश्वरीय न्याय है।
श्री कृष्ण की बांसुरी की ध्वनि को सुनकर गोकुल, मथुरा और वृंदावन के समस्त जन उनके वश में हो जाते थे। रुक्मिणी, जामवती, सत्यभामा और यमुना ने श्री कृष्ण से विवाह करने के लिए तपस्या की। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर उन्होंने उनसे विवाह किया। इनके अतिरिक्त कांलिंदी, चित्रागंदा, भद्रा और लक्ष्मणा, ये सभी श्री कृष्ण की अन्य रानियां थीं।
श्री कृष्ण ने अपनी सभी लीलाएं मानवीय रूप धारण करके की। उनके द्वारा की गई प्रत्येक लीला, संसार के प्रत्येक व्यक्ति को कर्म करने का उपदेश देती है और यह भी शिक्षा देती है कि सत्कर्मों के द्वारा ही ईश्वर की प्राप्ति सम्भव है।
श्री कृष्ण के तीन नाम ‘जनार्दन‘, ‘देवकीनन्दन‘, ‘कंसनिकंदन‘, इनको जो भक्त प्रतिदिन जपता है, उससे भगवान अवश्य ही प्रसन्न होते है तथा उसका कल्याण भी करते हैं।
(लेखक आईआईएमटी विश्वविद्यालय के कुलाधिपति हैं और यहां व्यक्त विचार उनके स्वयं के हैं)
Related Items
ट्रंप की नई साज़िश भारत के लिए शिकंजा है या सुनहरा मौक़ा!
भारत के पड़ोस में बढ़ती सियासी अस्थिरता
प्राइवेट सेक्टर बन चुका है भारत की अर्थव्यवस्था का धड़कता इंजन