साल 2025 तक टीबीमुक्त भारत का लक्ष्य और चुनौतियां


हमारे देश में पूरे विश्व की तुलना में सबसे ज्यादा टीबी के मरीज हैं। दुनियाभर के कुल 27 फीसदी मरीज भारत में ही हैं। सबसे ज्यादा दवा प्रतिरोधक टीबी मरीज भी भारत में ही हैं। अगर मरीजों को सही समय पर इलाज नहीं मिलता है तो एक सक्रिय मरीज साल में कम से कम 15 नए लोगों में संक्रमण पैदा कर सकता है जो कि एक चुनौतीपूर्ण स्थिति है। इसलिए, जरूरी है कि मरीजों की विशेष निगरानी हो और उनके संपर्क में आने वाले लोगों की भी जांच कराई जाए। सरकार द्वारा राष्ट्रीय क्षय रोग उन्मूलन कार्यक्रम के तहत टीबी की रोकथाम के लिए विभिन्न स्तरों पर तमाम प्रयास किए जा रहे हैं। लेकिन, जरूरत है जमीनी स्तर पर काम करने की, जिससे सरकार के प्रयासों को सफलता में बदला जा सके।

यदि उत्तर प्रदेश की बात की जाए तो यह प्रदेश देशभर में टीबी के मामलों में सबसे आगे है। प्रदेश में टीबी की रोकथाम के लिए आगरा में राज्य क्षय रोग प्रशिक्षण और प्रदर्शन केंद्र काम कर रहा है। इसके साथ ही, पूरे उत्तर प्रदेश में 75 जिला टीबी केंद्र हैं। लगभग एक हजार के आसपास टीबी इकाइयां हैं। लगभग दो हजार से ज्यादा मान्यताप्राप्त सूक्ष्म जांच केंद्र हैं। इनके अलावा नेशनल रेफरेन्सेस लेबोरेटरी, नेशनल जालमा इंस्टिट्यूट फॉर लेप्रोसी एंड अदर मायकोबैक्टीरियल डिसीजिस भी टीबी उन्मूलन के लिए काम कर रहे हैं। इसके अलावा, प्रदेश में दो इंटरमीडिएट रिफरेन्स लेबोरेटरी आगरा और लखनऊ में स्थापित हैं। इन दोनों केंद्रों के साथ-साथ अलीगढ़ के एएमयू, बनारस के बीएचयू और मेरठ व गोरखपुर में भी प्रयोगशालाएं काम कर रही हैं। इसी प्रकार की व्यवस्था देश के हर राज्य में हैं। ये सभी केंद्र देश को टीबीमुक्त बनाने में लगे हुए हैं।

सरकार विभिन्न जगहों पर काफी पैसा भी खर्च कर रही लेकिन निचले क्रम के एनटीईपी, एनएचएम और आउटसोर्सिंग के अंतर्गत काम कर रहे कर्मचारियों को काफी कम वेतन मिलता है। यह वेतन विसंगति देश के हर राज्य में है। इस विसंगति को दूर करने के लिए केन्द्र और राज्य सरकारों को अतिरिक्त प्रयास करने की जरूरत है। राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत चल रहे राष्ट्रीय क्षय रोग उन्मूलन कार्यक्रम में सम्पूर्ण देश में हजारों लैब टैक्नीशियन और अन्य कर्मचारी संविदा पर काम कर रहे हैं। ये सभी लैब टेक्नीशियन राष्ट्रीय क्षय रोग उन्मूलन कार्यक्रम के तहत चल रहीं नेशनल रेफरेन्स लेबोरेटरी, इंटरमीडिएट रेफरेन्स लेबोरेटरी, विभिन्न कल्चर एंड डीएसटी लैब्स और हजारों प्राथमिक और सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों में काम कर रहे हैं। इन लैब्स में सभी लैब टेक्नीशियनों को मायकोबैक्टीरियम ट्यूबरक्लोसिस के एक्सटेंसीवेली ड्रग रेजिस्टेंस स्ट्रेन को भी डील करना पड़ता है, जो कि अत्यंत खतरनाक है। पूरे देश में हजारों लैब टैक्नीशियन अपनी जान का जोखिम उठाकर देश को साल 2025 तक टीबीमुक्त करने की दिशा में अपना अमूल्य योगदान दे रहे हैं। लैब टैक्नीशियन को लैब में काम करते समय और मरीज के संपर्क में आते समय टीबी से संक्रमण का खतरा बना रहता है। इसलिए, समस्त कर्मचारियों का सरकार द्वारा स्वास्थ्य और दुर्घटना बीमा कराया जाना चाहिए।

राष्ट्रीय क्षय रोग उन्मूलन कार्यक्रम के तहत संविदा पर काम कर रहे लैब टेक्नीशियन या अन्य संविदा कर्मचारियों के लिए सरकार को एक ऐसी नीति बनानी चाहिए जिससे कि उन्हें भी नियमित कर्मचारियों की भांति टीबी की चपेट में आने पर या मृत्यु हो जाने पर पीड़ित परिवार को आर्थिक मदद मुहैया कराने और परिवार में से किसी परिजन को सरकारी नौकरी देने का प्रावधान हो ताकि इस कार्यक्रम के तहत काम कर रहे सभी संविदा कर्मचारियों के मानवाधिकारों की रक्षा हो सके।

सरकार निक्षय पोषण योजना के जरिए टीबी के मरीजों को हर महीने 500 रुपये पोषण के लिए दे रही है। इसके साथ ही टीबी मरीजों को पहचान करने वालों को भी सरकार इनाम राशि दे रही है। यह भी सरकार का टीबीमुक्त भारत की दिशा में एक बहुत बड़ा कदम है। इसके साथ ही सरकार ने प्राइवेट डॉक्टर और मेडिकल स्टोर के लिए टीबी मरीजों से सम्बंधित दिशानिर्देश जारी किए हैं। इन दिशानिर्देशों के अंतर्गत हर प्राइवेट डॉक्टर को मरीजों की जानकारी सरकार को देनी होती है। साथ ही साथ, दवाइयां बेचने वाले दुकानदारों को मरीजों की दवाई से सम्बंधित लेखा-जोखा सरकार को देना होता है। अगर इन दिशानिर्देशों का उल्लंघन होता है तो दोषियों पर जुर्माना और सजा हो सकती है। इसके अलावा सरकार प्रधानमंत्री टीबीमुक्त भारत अभियान के तहत लोगों और सामजिक संस्थाओं को निक्षयमित्र बनाकर टीबी मरीजों को गोद लेने के लिए प्रेरित कर रही है ताकि मरीजों को सही पोषण और उनका ख्याल रखा जा सके।

इसके अलावा, सरकार को विभिन्न टीमों के माध्यम से साल के 365 दिन सक्रिय क्षय रोग खोज अभियान चलाकर इसे जन-आन्दोलन बनाना चाहिए। क्षय रोग खोज अभियान में स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं, विभिन्न एनजीओ और सामजिक संस्थाओं या संगठनों को शामिल किया जाना चाहिए। इससे देश के कोने-कोने से टीबी के मरीजों का पता लगाया जा सके और उसे सही समय पर उपचार दिया जा सके। तभी देश साल 2025 तक टीबीमुक्त भारत के लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है। कहा जाए तो भारत देश के लिए 2025 तक टीबीमुक्त भारत का लक्ष्य एक बहुत बडी चुनौती है। लेकिन, सकारात्मकता और कड़ी मेहनत से इस लक्ष्य को आसानी से प्राप्त भी किया जा सकता है।



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