त्र्यम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग में विराजमान हैं ‘त्रिदेव’


बारह ज्योतिर्लिगों में से एक त्र्यम्बकेश्वर प्राचीन हिन्दू मंदिर है, जो भारत के महाराष्ट्र स्थित नासिक जिले की त्र्यम्बकेश्वर तहसील के त्र्यम्बक शहर में स्थित है। यह मंदिर नासिक शहर से 28 किमीदूर है। भगवान शिव को समर्पित त्र्यम्बकेश्वर मंदिर शिव के उन 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है, जिन्हें भारत में सबसे पवित्र और वास्तविक माना जाता है।

मुगल शासकों द्वारा ध्वस्त कराए गए हिंदू धर्मस्थलों में त्र्यम्बकेश्वर मंदिर भी था। साल 1690 में औरंगजेब की सेना ने मंदिर के अंदर जाकर शिवलिंग को तोड़ दिया। मंदिर को भी काफी क्षति पहुंचाई गई थी और इसके ऊपर मस्जिद का गुंबद बना दिया था।साल1751 में मराठों का फिर से नासिक पर आधिपत्य हो गया औरतब इस मंदिर का पुनर्निर्माण कराया गया। वर्तमान मंदिर का निर्माण पेशवा बालाजी बाजीराव ने कराया था। अठाहरवीं सदी मेंइस मंदिर के निर्माण कार्य में लगभग 16 लाख रुपये खर्च किए गए थे।निश्चित रूप से, उस समय यह काफी बड़ी रकम थी।

यह मंदिर ब्रह्मगिरि पर्वत के शीर्ष पर है। यहां तक पहुंचने के लिए सात सौ चौड़ी-चौड़ी सीढ़ियां हैं। इन सीढ़ियों पर चढ़ने के दौरान‘रामकुण्ड’ और ‘लक्ष्मणकुण्ड’ मिलते हैं और शिखर के ऊपर पहुंचने पर गोमुख से निकलती हुई भगवती गोदावरी के दर्शन प्राप्त होते हैं।

शिव महापुराण के मुताबिक, एक बार ब्रह्मा और विष्णु के मध्य सृष्टि के वर्चस्व को लेकर एक विवाद हो गया। उनकी परीक्षा लेने के लिए, शिव ने एक विशाल अंतहीन प्रकाश स्तम्भज्योतिर्लिंग को सृष्टि के तीनों लोकों से पार कर दिया।

ब्रह्मा और विष्णु दोनों अपने अपने मार्ग चुनकर इस प्रकाश के अंत को खोजने के लिए ऊपर और नीचे की ओर चल दिए। ब्रह्मा ने झूठ कहा कि उन्हें प्रकाश का अंत मिल गया है जबकि विष्णु ने अपनी हार स्वीकार कर ली। उसके पश्चात, शिव एक दूसरे प्रकाश स्तंभ के रूप में प्रकट हुए और ब्रह्मा को श्राप दिया की तुम्हें किसी भी समारोह में स्थान नहीं मिलेगा जबकि विष्णु अनंतकाल तक पूजे जाएंगे।

माना जाता है कि ज्योतिर्लिंग मंदिर वे स्थान हैं, जहां से शिव प्रकाश के एक तेजस्वी स्तंभ के रूप में प्रकट हुए थे। मूल रूप से शिव के 64 ज्योतिर्लिंग है जिनमे से 12 को बहुत शुभ और पवित्र माना जाता है। इन बारह ज्योतिर्लिंग में प्रत्येक का नाम इनके इष्ट देव पर रखा गया है जो शिव के विभिन्न स्वरूपों का वर्णन करते हैं।इन सभी स्थलों पर, मुख्य छवि शिवलिंग की है, जो अनादि और अनन्त के प्रकाश स्तंभ को दर्शाती है और शिव की अनंत प्रकृति का वर्णन करती है।

इन बारह ज्योतिर्लिंगों में गुजरात के सोमनाथ, आंध्र प्रदेश के श्रीसैलम स्थित मल्लिकार्जुन, मध्य प्रदेश के उज्जैन स्थित महाकालेश्वर व ओम्कारेश्वर, हिमालय के केदारनाथ, महाराष्ट्र के भीमाशंकर व गृष्णेश्वर, वाराणसी स्थित विश्वनाथ, त्र्यम्बकेश्वर, वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग, देवघर में देवगढ़, गुजरात के द्वारका स्थित नागेश्वर औरतमिलनाडु के रामेश्वरम स्थित रामेश्वर शामिल हैं।

पानी के ज्यादा उपयोग के कारण त्र्यम्बकेश्वरका शिवलिंग नष्ट होने लगा है। इस लिंग के चारों ओर एक रत्नजड़ित मुकुट रखा गया है, जिसे त्रिदेव के सोने के मुखौटे के ऊपर रखा गया है।कहा जाता है यह मुकुट महाभारत काल का है। इसमे हीरे, पन्ने और कई कीमती रत्न जड़े हुए हैं। इस मुकुट को केवल सोमवार के दिन दिखाया जाता है।

त्र्यम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग में ब्रह्मा, विष्‍णु और महेश तीनों ही एक साथ विराजमान हैं जो यहां की सबसे अनोखी और असामान्य विशेषता है, क्योकि अन्य सभी ज्योतिर्लिंगों में भगवान शिव ही विराजमान है।

गोदावरी नदी किनारे स्थित इस मंदिर का निर्माण काले पत्थरों से किया गया है। मंदिर की वास्तुकला बहुत आकर्षक है। इस मंदिर में कालसर्प शांति, त्रिपिंडी विधि और नारायण नागबलि आदि की पूजाएं कराई जाती हैं। इनका आयोजन भक्तगण अलग-अलग मनोकामनाओं को पूर्ण कराने के लिए कराते हैं।

त्र्यम्बकेश्वर मंदिर की भव्य इमारत सिंधु-आर्य शैली का उत्कृष्ट उदाहरण है। मंदिर के अंदर एक गर्भगृह है, जिसमेंप्रवेश करने के पश्चात शिवलिंग का केवल आर्घा दिखाई देता है, लिंग नहीं।

यदि ध्यान से देखा जाए तो आर्घा के अंदर एक-एक इंच के तीन लिंग दिखाई देते हैं। इन लिंगों को त्रिदेव यानी ब्रह्मा, विष्णु और महेश का अवतार माना जाता है। प्रातः काल में होने वाली पूजा के बाद इस आर्घा पर चांदी का पंचमुखी मुकुट चढ़ा दिया जाता है।

दंतकथाओं के मुताबिक,त्र्यम्बक गौतम ऋषि की तपोभूमि हुआ करती थी। उनके ऊपर लगे गोहत्या के पाप से मुक्ति पाने के लिए उन्होंने शिव का कठोर तप किया और उनसे यह वरदान मांगा कि वे यहां‘गंगा’ अवतरित कर दें। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर शिव ने दक्षिण की गंगा अर्थात गोदावरी नदी को यहां अवतरित कर दिया।

गोदावरी के आने के साथ ही, गौतम ऋषि द्वारा प्रार्थना करने के बाद, शिव ने इस मंदिर में विराजमान होना स्वीकार कर लिया। शिव को त्रिनेत्र भी कहा जाता है। उनके यहां विराजमान होने के कारण इस जगह को त्र्यम्बक, यानी तीन नेत्रों वाले, के नाम से जाना जाने लगा। उज्जैन और ओंकारेश्वर की ही भांति त्र्यम्बकेश्वर महाराज को भी इस गांव का राजा माना जाता है। इसलिए, हर सोमवार को त्र्यम्बकेश्वर के राजा अपनी प्रजा का हाल जानने के लिए नगर भ्रमण के लिए निकलते हैं।

इस भ्रमण के दौरान त्र्यम्बकेश्वर महाराज के पंचमुखी सोने के मुखौटे को पालकी में बैठाकर गांव में घुमाया जाता है। फिर, कुशावर्त तीर्थ स्थित घाट पर स्नान कराया जाता है। इसके बाद मुखौटे को वापस मंदिर में लाकर हीरे-जड़ित स्वर्ण मुकुट पहना दिया जाता है।

यह भी कहा जाता है कि ब्रह्मगिरि पर्वत से गोदावरी नदी बार-बार लुप्त हो जाया करती थी। गोदावरी के पलायन को रोकने के लिए गौतम ऋषि ने एक कुशा की मदद से गोदावरी को बंधन में बांध दिया। उसके बाद से ही इस कुंड में हमेशा पानी रहता है। इसी कुंड को ही कुशावर्त तीर्थ के नाम से जाना जाता है। कुंभ स्नान के समय शैव अखाड़े इसी कुंड में शाही स्नान करते हैं।

देश-विदेश के सभी क्षेत्रो से पर्यटक और श्रद्धालु इस मंदिर के दर्शन करने आते है। सालभर यहां भीड़ इकठ्ठा होती है। श्रद्धालुओ के ठहरने के लिए यहां उचित स्थानों की व्यवस्था है। त्र्यम्बक में पर्यटकों को रुकने के लिए सस्ते और महंगे होटल व गेस्टहाउस उपलब्ध हैं।

यात्रियों के लिए रोडवेज बसों की सुविधा उपलब्ध है। यहां जाने के लिए टैक्सी का भी उपयोग किया जा सकता है। त्र्यम्बकेश्वर शहर में कोई रेलवे स्टेशन नहीं है। नासिक शहर का रेलवे स्टेशन ही इसका निकटवर्ती है। त्र्यम्बकेश्वर से यह करीब 177 किमी दूर है। निकटवर्ती हवाई अड्डा भी नासिक में ही है। त्र्यम्बकेश्वर से यह हवाई अड्डा 31 किमी दूर है।



Related Items

  1. ट्रंप की नई साज़िश भारत के लिए शिकंजा है या सुनहरा मौक़ा!

  1. भारत के पड़ोस में बढ़ती सियासी अस्थिरता

  1. प्राइवेट सेक्टर बन चुका है भारत की अर्थव्यवस्था का धड़कता इंजन




Mediabharti