युवावस्था का साथी और बुढ़ापे का सहारा है त्रिफला

त्रिफला का तात्पर्य तीन फल हरड़, बहेड़ा तथा आंवला से है। इन तीनों फलों को विभिन्न अनुपात में मिलाने से एक चूर्ण बनाया जाता है जो कई बीमारियों से हमें बचाता है।

इन फलों में से एक हरड़ त्रिदोष यानी वात, पित्त और कफ को दूर करने वाली होती है। यह श्वास, खांसी, प्रमेह, बवासीर, कुष्ठ, पेट के कीड़े, उल्टी, हिचकी, खुजली, पथरी तथा आंखों के लिए बेहद लाभकारी है। जबकि, बहेड़ा आंखों और बालों के लिए बहुत हितकारी होता है। तीसरा फल यानी आंवला के लाभ तो सर्वविदित हैं। आंवला को पूरे आयुर्वेद का आधार माना जाता है।

इन तीनों की गुठली निकालकर, सम सात्रा में मिलाए जाने के बाद इसे त्रिफला चूर्ण कहा जाता है। इनकी विषम मात्राएं लेकर भी कई तरह के योग बनाए जाते हैं।

त्रिफला का चूर्ण शरीर को सम्पूर्ण रोगों से मुक्त कर स्फूर्ति, कांति, सौन्दर्य एवं बल प्रदान करता है। इसके नियमित सेवन से स्मरण शक्ति तथा नेत्र ज्योति बढ़ती है और बाल शीघ्र सफेद नहीं होते हैं। इसे यौवन का साथी तथा बुढ़ापे का सहारा भी माना जाता है।



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