अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा अपने तीखे बयानों, टैरिफ बढ़ाने और साम्राज्यवादी मंसूबों से भारत को मुश्किल में खड़ा करने का असफल प्रयास किया गया है। उनका विश्व व्यापार संगठन से मुंह मोड़ना और दुनिया पर अमेरिका की हुकूमत थोपने का प्रयास बताता है कि वह बिना सवाल-जवाब के वफादारी चाहते हैं।
ट्रंप प्रशासन द्वारा भारत से व्यापार संतुलन के नाम पर कई वस्तुओं पर टैरिफ बढ़ाया गया है। प्राथमिकताओं की सामान्यीकृत प्रणाली का लाभ समाप्त करना, एच1-बी वीज़ा पर पाबंदियां और पाकिस्तानी नेतृत्व को तवज्जो देना, ये संकेत हैं कि अमेरिका भारत को एक समान भागीदार नहीं, बल्कि एक डूबती हुई अर्थव्यवस्था मानता है।
Read in English: After Trump’s insults and tariffs, India must stand firm…
पाकिस्तान जैसे देश शायद इस नए उपनिवेशवादी ढांचे को मान लें, लेकिन भारत, जिसकी सभ्यता और संस्कृति गहरी है, को अब डटकर जवाब देना ही होगा। इस वक्त विपक्ष ने जो कथ्य तय किया है, उसके मुताबिक मोदी सरकार अपने ही बनाए जाल में फंस चुकी है। अब उसे साहसी कदम उठाने की जरूरत है। रायता बिखेरा है तो समेटने कोई और नहीं आएगा?
ट्रंप का अहंकारी रवैया और ‘डील’ की बातें भारत की पश्चिमी देशों पर निर्भरता को तो उजागर करती ही हैं, वहीं बीजेपी, जो अमेरिका में रहने वाले भारतीयों के दबाव में है, स्पष्ट बोलने से कतराती है। ये भ्रष्ट उच्चवर्गीय, नेताओं, नौकरशाहों के खानदानी, भारतीय-अमेरिकी वहां शानदार जिंदगी जीते हैं, लेकिन उनकी स्थित कुली जैसी ही रहती है। अगर भारतीयों में आत्मसम्मान है, तो उन्हें अमेरिका छोड़कर भारत लौटना चाहिए और यहां अपनी प्रतिभा और नवाचारों से नई नींव रखकर देश को बुलंदियों तक ले जाना चाहिए।
मोदी सरकार डर और दबाव में क्यों है? अमेरिका से आर्थिक जवाबी कार्रवाई का डर कोई बहाना नहीं हो सकता। भारत की पश्चिमी बाजारों, तकनीक और पैसे पर निर्भरता खुद की बनाई कमजोरी है। भारत का असली दर्शन—आत्मनिर्भरता, चतुराई और मजबूती—को अपनाने का वक्त है। लेकिन सरकार कर प्रणाली को सुधारने, पूंजी निर्माण को बढ़ाने या देशी प्रतिभा को मौका देने में नाकाम रही है। सादगी और बचत, जो भारतीय संस्कृति का हिस्सा हैं, नीतियों में दिखाई नहीं देते। इसके बजाय, सरकार पश्चिमी निर्यात-आधारित मॉडल को थामे हुए है, जो आत्मघाती है।
बीजेपी और आरएसएस को चाहिए कि वह जनता को लामबंद करें और अमेरिका की पाकिस्तान के प्रति पक्षपाती नीति का विरोध करें, जो एक आतंकवादी कारखाना है। ट्रंप की मर्जी, वह चाहे जो करे, लेकिन इंडिया को भी ‘भारत पहले’ की नीति अपनाने का हौसला दिखाना होगा। अमेरिकी धौंस के आगे घुटने टेकने का अब वक्त नहीं है।
भारत को ब्रिक्स देशों—ब्राजील, रूस, चीन, दक्षिण अफ्रीका—के साथ मजबूत रिश्ते बनाने चाहिए। चीन के साथ तनाव सीमा विवाद की वजह से है, इसको दूरदर्शिता और समझदारी से सुलझाने के गंभीर प्रयास हों। ब्रिक्स में आर्थिक सहयोग भारत को मजबूत कर सकता है। मोदी को अब दिखाना होगा कि वह भारत को इस अनिश्चितता से निकाल सकते हैं। देश को अपनी राह खुद बनानी होगी, न कि पश्चिमी रास्तों पर चलना होगा।
अब भारत को एक नया विकास मॉडल अपनाना होगा, जो निर्यात या विदेशी निवेश के बजाय घरेलू मांग, स्वदेशी उत्पादन, और स्थानीय उद्यमों पर आधारित हो। इससे न केवल आत्मनिर्भरता को बढ़ावा मिलेगा, बल्कि युवाओं को रोजगार, किसानों को बाजार और छोटे व्यवसायों को संरक्षण मिलेगा।
भारत का विकास मॉडल अब अंदर की ओर उन्मुख हो, जहां 140 करोड़ लोग, संसाधन और उद्यमशीलता देश की ताकत बनें। पश्चिमी मॉडल जो निर्यात और विदेशी धन आहरणों पर आधारित है, न टिकाऊ है और न ही भरोसेमंद। महात्मा गांधी की आत्मनिर्भरता, ग्राम स्वराज, नैतिक बल, सस्ती अर्थव्यवस्था और सामुदायिक विकास की सोच को वापस लाने की जरूरत है। यह सोच भारत की आत्मा के करीब हैं।
दुनियाभर में बसे भारतीयों को अपनी आवाज बुलंद करनी चाहिए। उन्हें विदेशी मूल्य व्यवस्था में घुलने की बजाय भारत के हितों को बढ़ावा देना चाहिए। ‘विश्व गुरु’ का नारा तब तक खोखला है, जब तक भारत बाहरी दबाव और आंतरिक असहमतियों के आगे नत मस्तक होता रहेगा। मोदी को अब साहस और एकता के साथ नेतृत्व करना चाहिए।
ट्रंप की हरकतें एक चेतावनी हैं। भारत को सावधानी से और बंटवारे से बचते हुए नए रास्ते तलाशने होंगे। ब्रिक्स के साथ गठजोड़, आत्मनिर्भरता और जनता की ताकत से भारत मजबूत हो सकता है। मोदी को साबित करना होगा कि 140 करोड़ का देश न असहाय है, न दिशाहीन। अब आधे-अधूरे कदमों का वक्त नहीं—भारत को साहस और सपने चाहिए।
भारत अब विकल्पों के मोड़ पर खड़ा है—या तो वह पुरानी निर्भरता की राह पर चले, या फिर अपनी नई राह खुद बनाए। मोदी सरकार को अब यह साबित करना होगा कि 140 करोड़ की आबादी वाला देश न कमजोर है, न भ्रमित—बल्कि भविष्य का निर्माता है।
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